Vishwamitra Jayanti 2021: जन्म से क्षत्रिय थे ब्रह्मर्षि विश्वामित्र, इनकी तपस्या से इंद्र भी हो गए थे भयभीत

धर्म ग्रंथों में सप्तऋषियों का वर्णन मिलता है। इस सप्तऋषियों में विश्वामित्र भी एक हैं। विश्वामित्र का वर्णन रामायण, महाभारत के साथ-साथ अन्य पुराणों में भी मिलता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को इनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 7 नवंबर, रविवार को है।

Asianet News Hindi | Published : Nov 7, 2021 5:50 AM IST

उज्जैन. विश्वामित्र को बहुत क्रोधी ऋषि कहा जाता है। सीता स्वयंवर में विश्वामित्र ही श्रीराम को अपने साथ ले गए थे। उन्होंने कई अस्त्र-शस्त्र भगवान श्रीराम को प्रदान किए थे। विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय थे, उन्होंने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी से ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया था। इंद्र ने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए मेनका नाम की अप्सरा को भेजा था। मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या भंग की और इससे शकुंतला नाम की की एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसका विवाह राजा चंद्रवंशी राजा दुष्यंत से हुआ था। इन्हीं के पुत्र का नाम भरत था जो चक्रवर्ती सम्राट हुए। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। आगे जानिए विश्वामित्र से जुड़ी और भी खास बातें…

जन्म से ही तय था उनका ब्रह्मर्षि बनना
विश्वामित्र के पिता का नाम राजा गाधि था। राजा गाधि की पुत्री सत्यवती का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना। किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा। यही कारण था कि क्षत्रिय होने के बाद भी विश्वामित्र ने ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया।

कैसे राजा से ब्रह्मर्षि बने विश्वामित्र?
राजा विश्वामित्र एक बार अपनी सेना सहित ऋषि वशिष्ठ के आश्रम पर पहुंचें। वहां ऋषि वशिष्ठ ने उनका सेना सहित बहुत आदर-सत्कार किया। राजा ने जब इसका रहस्य पूछा तो ऋषि ने कहा कि ये मेरी गाय नंदिनी कामधेनु की पुत्री है। इसी से हमें सबकुछ प्राप्त होता है। तब राजा विश्वामित्र ने बलपूर्वक नंदिनी गाय को अपने साथ ले जाने लगे। लेकिन ऋषि वशिष्ठ के तपोबल के आगे वे टिक नहीं पाए। तब राजा विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ से बदला लेने के लिए ब्रह्मर्षि बनने का फैसला किया।

Share this article
click me!