हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। इसलिए प्रति वर्ष इस तिथि पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
उज्जैन. इस बार जन्माष्टमी 12 जुलाई, बुधवार को है। जन्माष्टमी पर दही हांडी फोड़ने की प्राचीन परंपरा भी है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी से जानिए क्या है इस परंपरा से जुड़ी कथा और लाइफ मैनेजमेंट…
ये है कहानी दही हांडी परंपरा की
बाल्यकाल के दौरान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ मिलकर लोगों के घरों में चुपके से घुस जाते हैं और माखन चुराकर अपने मित्रों को खिला देते हैं और स्वयं भी खाते थे। जब यह बात महिलाओं को पता चली तो उन्होंने माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया, जिससे श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके। लेकिन नटखट कृष्ण की समझदारी के आगे उनकी यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई। माखन चुराने के लिए श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और ऊंचाई पर लटकाई मटकी से दही और माखन चुरा लेते थे। इसी से प्रेरित होकर दही-हांडी का चलन शुरू हुआ।
ये है दही हांडी का लाइफ मैनेजमेंट
श्रीकृष्ण के माखन और दही चुराने खाने और सभी को बांटने के पीछे लाइफ मैनेजमेंट के कई सूत्र छिपे हैं। माखन एक तरह से धन का प्रतीक है। जब हमारे पास आवश्यकता से अधिक धन हो जाता है तो उसे हम संचित करते हैं। जबकि होना ये चाहिए कि धन अधिक होने पर पहले उसका कुछ भाग जरूरतमंदों को दान करें। श्रीकृष्ण माखन चुराकर पहले अपने उन मित्रों को खिलाते थे जो निर्धन थे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि आपके पास कोई वस्तु आवश्यकता से अधिक है तो पहले उसका दान करो, बाद में उसका संचय करो।
माखन और दही खाने से जुड़ा एक अन्य लाइफ मैनेजमेंट ये भी है कि बाल्यकाल में बच्चों को सही पोषण मिलना अति आवश्यक है। दूध, दही, माखन आदि चीजें खाने से बचपन से ही बच्चों का शरीर सुदृढ़ रहता है और वे आजीवन तंदुरुस्त बने रहते हैं।