इस बार भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा 4 जुलाई दिन गुरुवार को निकाली जाएगी।
उज्जैन. इस बार भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा 4 जुलाई, गुरुवार को निकाली जाएगी। रथयात्रा में भगवान के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी होता है, लेकिन उनकी पत्नी रुक्मिणी या प्रेयसी राधा साथ नहीं होती हैं। इसका जवाब एक पौराणिक कथा में मिलता है, जो इस प्रकार है...
कथा कुछ इस प्रकार है... ''एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने महल में सो रहे थे। पास ही रुक्मिणी भी सो रही थीं। श्रीकृष्ण नींद में ही राधा का नाम लेने लगे। यह सुनकर रुक्मिणी अचंभित हो गईं। सुबह होने पर रुक्मिणी ने यह बात अन्य पटरानियों को बताकर कहा कि हमारी इतने सेवा, प्रेम और समर्पण के बाद भी स्वामी राधा को याद करना नहीं भूलते हैं।
इस बात का रहस्य जानने के लिए सभी रानियां माता रोहिणी के पास गईं और उनसे राधा और श्रीकृष्ण की लीला के बारे में जानना चाहाक्योंकि माता रोहिणी वृंदावन में राधा और श्रीकृष्ण की रास लीलाओं के बारे में बहुत अच्छे से जानती थीं। रानियों के आग्रह पर माता ने यह शर्त रखी कि मैं जब तक श्रीकृष्ण-राधा के प्रसंग को न सुना दूं, तब तक कोई भी कमरे के अंदर न आ पाए।इसके लिए श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा को द्वार पर निगरानी के लिए रखा गया। इसके बाद माता रोहिणी ने श्रीकृष्ण और राधा की लीला सुनानी शुरू की।कुछ समय बीतते ही सुभद्रा ने देखा कि उनके भाई बलराम और श्रीकृष्ण माता के कमरे की ओर चले आ रहे हैं।तब सुभद्रा ने किसी बहाने उन्हें माता के कमरे में जाने से रोका किंतु कमरे के दरवाजे पर खड़े होने पर भी श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा को श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला का प्रसंग सुनाई दे रहा था।
तीनों राधा के नाम और श्रीकृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम व भक्ति भावना को सुनकर इतने भाव-भोर हो गए कि उनके शरीर गलने लगे,उनके हाथ-पैर आदि अदृश्य हो गए।यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र गलकर लंबे आकार में हो गया।इसी दौरान वहां से देवर्षि नारद का गुजरना हुआ।वह भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के अलौकिक स्वरूप के दर्शन कर अभिभूत हो गए। किंतु तीनों नारद को देखकर अपने मूल स्वरूप में आ गए, यह सोचकर कि नारद ने संभवत: यह दृश्य न देखा हो।किंतु नारद मुनि ने तीनों से प्रार्थना की कि मैंने अभी आपके जिस स्वरूप के दर्शन किए हैं, उसी स्वरूप के दर्शन कलयुग में सभी भक्तों को भी हो।तब भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा ने नारद की विनय को मानकर ऐसा करना स्वीकार किया।यही कारण है कि धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं में भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण और राधा का दिव्य युगल स्वरुप मानकर उनकेसाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की अधूरी बनी काष्ठ यानी लकड़ी की प्रतिमाओं के साथ रथयात्रा निकालने की परंपरा है।''