तंत्र शास्त्र के अनुसार इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी-देवता हैं। पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीक लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण है कि यक्ष-यक्षिणी की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास माने गए हैं।
उज्जैन. तंत्र शास्त्र के अनुसार इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी-देवता हैं। पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीक लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण है कि यक्ष-यक्षिणी की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास माने गए हैं।
यक्ष-यक्षिणी का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। इन्हें भगवान शिव के सेवक माना जाता है। इनके राजा यक्षराज कुबेर हैं, जो धन के स्वामी हैं। ये कुबेर रावण के भाई भी हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यक्ष-यक्षिणीयों के पास रहस्यमयी ताकत होती है।
जिस तरह धर्म ग्रंथों में 33 देवता बताए गए हैं, उसी तरह 64 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं। इनमें से निम्न 8 यक्षिणियां प्रमुख मानी जाती हैं। आगे जानिए इनके नाम और किस यक्षिणी की साधना करने से क्या फल मिलते हैं…
यह यक्षिणी सिद्ध होने के बाद साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।
ये यक्षिणी सिद्ध होने पर साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है, कि हर व्यक्ति उसके सम्मोहन पाश में बंध जाता है।
कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक में तेजस्विता आ जाती है। यह साधक की हर मनोकामना को पूरा करने में सहायक होती है।
यह साधक को पौरुष प्रदान करती है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है।
साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य मिलता है।
यह अपने साधक को आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है और हमेशा उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि ओर अग्रसर करती है।
नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था। यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है।
साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है और साधक की इच्छा होने पर सहायता करती है।