घर पर ही इन 5 चीजों से बना सकते हैं वैदिक राखी, जानिए इसका महत्व और फायदे

इस बार 3 अगस्त, सोमवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। वैसे तो बाजार में कई तरह की आधुनिक राखियां उपलब्ध हैं, लेकिन पुराने समय की राखियां बिल्कुल अलग होती थीं। मान्यता है कि पुराने समय में रक्षासूत्र बनाने के लिए रोग प्रतिरोधक औषधियों का उपयोग किया जाता था।

उज्जैन. मान्यता है कि पुराने समय में रक्षासूत्र बनाने के लिए रोग प्रतिरोधक औषधियों का उपयोग किया जाता था। रक्षासूत्र बनाने के लिए दूर्वा, केसर, चंदन, सरसों और चावल का उपयोग होता था। इन चीजों को लाल कपड़े में बांधकर एक छोटी सी पोटली बनाई जाती थी। इस पोटली को रेशमी धागे से कलाई पर बांधा जाता था। इस प्रकार बनने वाली राखी को वैदिक राखी भी कहा जाता है।

मौसमी बीमारियां रहती हैं दूर
रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है, ये समय वर्षा ऋतु का है। बारिश के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कई सूक्ष्म कीटाणु वातावरण में पनप जाते हैं। वैदिक राखी से इन कीटाणुओं से बचाव हो सकता है। पुराने समय में इस प्रकार यह सूत्र शरीर की रक्षा भी करता था।

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शास्त्रों में लिखा है कि-
सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम्।
सकृत्कृतेनाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत्॥

इस श्लोक का अर्थ यह है कि धारण किए हुए इस रक्षासूत्र से सभी रोगों का और अशुभ समय का अंत होता है। इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्षभर मनुष्य रक्षित हो जाता है।

क्या है इन चीजों का महत्व?
दूर्वा-
दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बांध बांधते हैं, उसके प्रति हमारी भावना यह होती है कि उन्हें गणेशजी की कृपा प्राप्त हो और उनके सभी विघ्नों का नाश हो जाए।

अक्षत - अक्षत यानी चावल स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। ये शरीर को शक्ति देते हैं। अक्षत का एक अर्थ यह भी है कि हमारी श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो, कभी भी टूटे नहीं और प्रेम सदा बना रहे।

केसर- केसर की प्रकृति गर्म होती है, बारिश की ठंडी बौछारों और इसके बाद आने वाले सर्दी के मौसम से रक्षा के लिए केसर की आवश्यकता होती है।

चंदन- चंदन की प्रकृति शीतल होती है और यह सुगंध देता है। इसका संकेत यह है कि हमारे मस्तिष्क की शीतलता बनी रहे, मन शांत रहे और कभी तनाव ना हो। साथ ही, परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।

सरसों के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है यानी इससे यह संकेत मिलता है कि हम हमारे दुर्गुणों को, परेशानियों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण यानी तेजस्वी बनें।

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