पनामा पेपर्स केस (Panama Papers Case) में अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की बहू और एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय (Aishwarya Rai) से ईडी ने पूछताछ हुई है। ऐश्वर्या सोमवार को दिल्ली स्थित ED के दफ्तर में पहुंची थीं।
मुंबई। पनामा पेपर्स केस (Panama Papers Case) में अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की बहू और एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय (Aishwarya Rai) से ईडी ने करीब पांच घंटे तक पूछताछ की है। ऐश्वर्या सोमवार को दिल्ली स्थित ED के दफ्तर में पहुंची थीं। ऐश्वर्या ने ईडी के ढेर सारे सवालों का सामना किया।
बता दें कि ED के अधिकारी ऐश्वर्या राय से पूछे जाने वाले सवालों की सूची पहले ही तैयार कर चुके थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पनामा पेपर्स मामले में भारत के करीब 500 लोगों के शामिल होने की बात सामने आई थी। इनमें कई पॉलिटिशियन के अलावा एक्टर्स, खिलाड़ी और उद्योगपतियों के नाम शामिल हैं।
अभिषेक बच्चन से भी हो चुकी पूछताछ :
पनामा पेपर्स मामले में करीब महीनेभर पहले ही अभिषेक बच्चन भी ED ऑफिस पहुंचे थे। वे कुछ डॉक्यूमेंट्स भी ED अधिकारियों को सौंपे चुके हैं। ED सूत्रों की मानें तो जांच एजेंसी जल्द ही इस मामले में उनके पापा अमिताभ बच्चन को भी समन भेजने वाली है।
क्या है पनामा पेपर्स लीक मामला :
पनामा एक लैटिन अमेरिकी देश है, जहां लॉ फर्म मोसेक फोंसेका के एक करोड़ 10 लाख दस्तावेज लीक हुए थे। लीक दस्तावेज बताते हैं कि ताकतवर लोगों ने पनामा, वर्जिन आईलैंड और बहामास जैसे टैक्स हैवन देशों में बड़े पैमाने पर इन्वेस्टमेंट किया था। यहां ताकतवर और रसूखदार लोगों ने इसलिए निवेश किया, क्योंकि यहां टैक्स के नियम काफी आसान हैं और निवेश करने वाले लोगों की पहचान सीक्रेट रखी जाती है।
मोटी फीस के बदले वित्तीय मदद देती है मोसेक फोंसेका :
1977 में बनी मोसेक फोंसेका एक लॉ फर्म है, जिसके 35 देशों में ऑफिस है, लेकिन इसका हेडक्वार्टर पनामा में है। ये फर्म अलग-अलग देशों में ताकतवर औार अमीर लोगों से मोटी फीस लेकर उन्हें वित्तीय सलाह देती है। सलाह देने की आड़ में ये फर्म शैल कपंनी भी बनाती है। ये शैल कंपनीज सिर्फ दिखावे के लिए बनाई जाती हैं। इसे बनाने का मकसद होता है किसी भी कानूनी प्रक्रिया से बचना और पैसे को ठिकाने लगाना या फिर काले धन को सफेद करना।
ऐसे हुआ था खुलासा :
2016 में पनामा पेपर्स लीक का खुलासा इंटरनेशनल कन्सॉर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स यानी ICIJ ने किया था। ये दुनियाभर के खोजी पत्रकारों का अंतरराष्ट्रीय महासंघ है। इसमें 70 देशों के 370 पत्रकारों ने चार साल तक दस्तावेजों की पड़ताल की थी। इनमें कुछ भारतीय जर्नलिस्ट्स भी थे। इस कन्सॉर्टियम में ऐसे पत्रकार शामिल होते हैं, जो सरकारी कागजों को पढ़ सकते हैं।
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