World Music Day पर 'ग़दर' जैसी फिल्मों के संगीतकार बोले- आज के दौर में म्यूजिक के नाम पर नंगापन परोसा जा रहा

आज के दौर में म्यूजिक इंडस्ट्री भी सुपरस्टार्स चला रहे हैं, उनकी मर्जी से ही म्यूजिक डायरेक्टर और सिंगर चुने जाते हैं : उत्तम सिंह

एंटरटेनमेंट डेस्क.  विश्व संगीत दिवस (World Music Day) पर एसडी बर्मन, मदन मोहन और श्री रामचंद्र जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम कर चुके और ' दिल तो पागल है' व ' ग़दर एक प्रेम कथा' जैसी फिल्मों में सुपरहिट संगीत दे चुके मशहूर वॉयलिनिस्ट और संगीत निर्देशक उत्तम सिंह (Uttam Singh) से एशियानेट के लिए आकाश खरे की बातचीत...

Q.  50 से लेकर 90 तक के दशक के गीतों में ऐसी कौन सी बात थी जिसके चलते उन गानों को आज भी हर उम्र के लोग पसंद करते हैं?

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A.   उस दौर का जो म्यूजिक था उसे सी रामचंद्र जी, आरडी बर्मन साहब, नौशाद साहब, शंकर-जयकिशन जी और कल्याणजी-आनंदजी जैसे लोग बना रहे थे। यह वह लोग हैं जो संगीत की दुनिया में तपस्या करके पहुंचे तब जाकर उन्होंने उस संगीत और उस मुकाम को हासिल किया। चाहे संगीत का मामला हो चाहे ज्ञान का, ये सभी संगीतकार बहुत गहरे थे। उनकी तालीम भी गहरी थी। दूसरा यह कि इनके साथ काम करने वाले लोगों को भी संगीत का गहरा ज्ञान था। फिर चाहे वह गीतकार हो या फिर गायक, एक्टर हो या फिर डायरेक्टर। तो कुल मिलाकर वह एक दौर ही अलग था। इसके अलावा बीते सौ साल में हिंदुस्तान की म्यूजिक इंडस्ट्री को हम एक दूसरी लता मंगेशकर नहीं दे पाए। और शायद ना ही कभी दे पाएंगे। ना कभी दूसरे किशोर कुमार आएंगे ना कभी दूसरे मोहम्मद रफी आएंगे। इनकी कॉपी बहुत आएंगे और आए भी हैं पर ओरिजिनल ओरिजिनल ही होते हैं। और यही वह लोग हैं जिनकी वजह है कि आजकल के बच्चे पुराने गाने रीमिक्स करके सुन रहे हैं। पर सुन तो वह पुराने गाने ही रहे हैं। बाकी जो सबसे बड़ी वजह है कि पुराने गाने लम्हों के गाने हुआ करते थे। वह संजीदगी के साथ बनाए हुए गाने हुआ करते थे। उनका जिंदगी में कुछ अर्थ होता था। आज के दौर में चाहे गाना के बोल हो, चाहे म्यूजिक हो सब में सिर्फ नंगापन रह गया है। मेरा गाना ' चिट्ठी ना कोई संदेश' आज भी बजता है। और लोग आज भी उससे जुड़े हुए हैं क्योंकि वह एक लम्हे का गाना है।

Q.  90 के दशक के बाद आपने, लता दीदी ने कई बड़े मशहूर कलाकारों ने काम करना कम कर दिया। इसकी क्या वजह है?

A.  जब गानों का स्टैंडर्ड गिर गया तो जो संगीत की समझ वाले लोग थे उन्होंने काम लेना काम कर दिया। अपनी बात करूं तो मेरे पास आज भी काम आ रहा है पर मैं वही काम कर रहा हूं जो मेरे लायक है। मैं नंगेपन को म्यूजिक नहीं दे सकता। यह मेरी कला है और मैं अपनी कला से कोई गंदा गाना नहीं बना सकता।

Q.  रीमिक्स गानों को किस तरह से देखते हैं?

A.  मैं ऐसे गानों को बहुत बुरी तरह से देखता हूं। यहां सिर्फ म्यूजिक डायरेक्टर की गलती नहीं है बल्कि फिल्म डायरेक्टर की भी गलती है कि वह एक अच्छे खासे गाने को बिगाड़ कर क्यों पेश कर रहा है। एक किस्सा है डायरेक्टर ओपी रल्हान का। 1966 में जब उनकी फिल्म फूल और पत्थर बहुत हिट हुई तो वह अपनी अगली फिल्म के म्यूजिक के लिए एसडी बर्मन साहब से काम करवाना चाहते थे। और इसके लिए वह एसडी बर्मन साहब के घर के सामने 2 महीने तक खड़े रहे। उनकी जिद को देखते हुए बर्मन साहब ने उनके साथ काम किया और वह दूसरे या तीसरे ऐसे डायरेक्टर होंगे जिनके लिए बर्मन साहब ने गाना गाया। वर्ना बर्मन साहब तो सिर्फ विमल राय के लिए ही गाना गाते थे। एक दौर में मैंने सुना था कि राज कपूर साहब को एक रिदम चाहिए थी जिसके लिए वह झोपड़पट्टी में गए थे। अर्थात यह है की जब किसी डायरेक्टर को फिल्म में अच्छा संगीत देना हो तो उसके लिए हर संभव कोशिश करता है। लेकिन कला से समझौता नहीं करता है। पर आज के दौर में ऐसे जिद्दी डायरेक्टर है नहीं। किसी को कुछ नया क्रिएट नही करना बस सब कुछ रीमिक्स और रीमेक करना है। बर्मन साहब और नय्यर साहब भी म्यूजिक का सोर्स लेते थे, पर आज के दौर में तो 100 पर्सेंट कॉपी किया जा रहा है। इसके अलावा जो प्रड्यूसर इसे प्रोड्यूस कर रहे हैं उनकी भी गलती है। देखा जाए तो आज लिरिक्स राइटर भी जानते हैं कि उनके पास कुछ नया है नहीं, तो उनको भी रीमिक्स से कोई तकलीफ नहीं होती।

Q.  क्या आपको लगता है कि आज म्यूजिक इंडस्ट्री पर कोई दवाब है?

A.  चार-पांच साल पहले की बात है मैं प्रड्यूसर कमल मुकुट जी के साथ स्टूडियो में बैठा था। म्यूजिक पर चर्चा करते हुए मैंने उनसे कहा कि आज हमारी इंडस्ट्री को क्या हो गया है यह कितनी बदल गई है। तो कमल जी मुझसे बोले कि ज्यादा नहीं बस थोड़ा सा चेंज हुआ है और वो चेंज यह हुआ है कि आप लोगों की जो इंडस्ट्री थी उसमें सरस्वती थी और आज की जो इंडस्ट्री है उसमें लक्ष्मी है। तो आज के दौर में सारा खेल लक्ष्मी का हो गया है। आज के वक्त में टीवी पर म्यूजिक सुपरस्टार बन रहे हैं जो एक साल बाद इतना कम लेते हैं की काम छोड़कर बैठ जाते हैं। अगले साल फिर कोई नया सिंगर आ जाता था। तो टीवी कभी भी आपको लॉग टर्म सक्सेस नही देती। बाकी इंडस्ट्री की बात करूं तो आज इंडस्ट्री न डायरेक्टर की है और न प्रोड्यूसर्स की। आज इंडस्ट्री एक्टर्स की है, सुपरस्टार्स की है। एक बड़ा एक्टर अपनी फिल्म में जो सिंगर चाहता है उसे सिलेक्ट करता है। जब एक्टर किसी फिल्म का म्यूजिक देगा तो कैसे म्यूजिक बेहतर होगा ? आप ही सोचिए।

Q.  आज के दौर में किसी कलाकार का काम पसंद करते हैं? नए कलाकारों को क्या सुझाव देना चाहेंगे? 

A.  माफ कीजिए, मैं आज के दौर के किसी भी कलाकार का काम नहीं सुनता तो इस बारे में नहीं बता सकता।बाकी आज के दौर के किसी कलाकार को मैं कोई सलाह नहीं देना चाहता क्योंकि वो मेरी सलाह मानेंगे ही नहीं। ये नई नस्ल के अंग्रेजी पसंद करने वाले बच्चे हैं इनसे मैं क्या ही बोलूं।

Q.  लता दीदी के साथ आपने काफी वक्त बिताया। उस बारे में कुछ बताइए?

A.  मैं उनको लता दीदी नहीं मानता था। मैं उनसे कहता था कि आप तो स्वयं सरस्वती हैं जिनके साथ मुझे काम करने, उठने-बैठने और उनके साथ खाना खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने उनके साथ कई फिल्मों और एल्बम पर काम किया है। रिकॉर्डिंग खत्म होने के बाद वो मुझसे अक्सर पूछती थीं कि कैसा गया और मैं उनसे कहता था कि दीदी आप गाती कहां हो आप तो गरजती हो। हैरानी की बात यह थी कि वह अक्सर रिकॉर्डिंग के बाद खाना खाने के बाद ठंडी कोल्ड्रिंक पिया करती थीं। जिस दौर में मैंने काम करना शुरू किया था उस दौर में हम यह अंदाजा भी नहीं लगा सकते थे कि लता दीदी के बिना इंडस्ट्री कैसे चलेगी। खैर, आज यह म्यूजिक इंडस्ट्री उनके बिना भी चल रही है। हां, वह बात अलग है कि अच्छी चल रही है कि बुरी चल रही है।

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