मांग में आई कमी से कॉरपोरेट टैक्स को घटा कर भारतीय अर्थव्यवस्था को नहीं उबारा जा सकता है। जानें, उपभोग का स्तर बढ़ाने के लिए सरकार को क्या स्ट्रैटजी अपनानी चाहिए।
कॉरपोरेट टैक्स को घटा कर भारतीय अर्थव्यवस्था में गहराई से जड़ जमा चुकी मांग में आई कमी की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है। बतौर एक निवेशक, जिसका दुनिया के कई देशों में निवेश करने का अनुभव है, मैं यह कह सकता हूं कि उपभोग दर में कमी आने पर अर्थव्यवस्था में सुधार लाने का और कोई दूसरा तरीका नहीं है। तरीका बस एक है और वह है उपभोग को बढ़ाना। कॉरपोरेट टैक्स में कमी लाना अर्थव्यवस्था में सुधार की गांरटी नहीं हो सकता।
पिछले साल 20 सितंबर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि कॉरपोरेट टैक्स रेट को कम कर के 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत पर लाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा था कि जिन मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों का रजिस्ट्रेशन 1 अक्टूबर, 2019 के बाद हुआ है, उन्हें महज 17 प्रतिशत टैक्स देना होगा। बहरहाल, निजी निवेश बेहद कम है और जीडीपी ग्रोथ भी फिर से नीचे जा रहा है। परिस्थितियां ऐसी हैं कि सरकार के लिए इस पर ध्यान देना जरूरी है। वैसे, मैं इस बात से सहमत हूं कि कॉरपोरेट टैक्स में कमी करना एक सकारात्मक कदम है और इसका अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा। इससे कंपनियां अपना निवेश बढ़ाएंगी और इससे बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरर यहां निवेश करने के लिए आकर्षित होंगे, जो अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर से प्रभावित हैं। टैक्स में कमी लाने से भारत एक टॉप इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन बन सकता है। टैक्स में इस कमी से कॉरपोरेट्स का मुनाफा बढ़ सकता है, उनके शेयर ज्यादा अट्रैक्टिव हो सकते हैं और सेंसेक्स व निफ्टी इंडेक्स में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
जो लोग टैक्स में कमी किए जाने का समर्थन कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि इससे भारत की छवि बदलेगी जो पहले सबसे ज्यादा टैक्स लेने वाले देशों में गिना जाता रहा है। उनका मानना है कि इससे निजी निवेश बढ़ेगा और इसके फलस्वरूप नौकरियां भी बढ़ेंगी, जिससे लोगों के पास खर्च करने के ज्यादा आय हो सकेगी। उनका यह भी मानना है कि टैक्स में कमी किए जाने से बाजार में चीजों और सेवाओं की कीमतें घटेंगी, जिससे उपभोग बढ़ेगा। लेकिन वास्तव में ऐसा काफी लंबे समय के दौरान ही संभव है और यह कॉरपोरेट्स की इच्छा पर आधारित है। कुल मिला कर, इससे अर्थव्यवस्था में आए ठहराव या मंदी की समस्या का निदान नहीं हो सकता, जिसका सामना अभी भारत कर रहा है।
रिजर्व बैंक ऑफ इडिया के अनुसार, भारत में कैपेसिटी यूटिलाइजेशन बहुत ही कम बढ़ा है। पिछले वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में 75 प्रतिशत से बढ़ कर यह चौथी तिमाही 76.1 प्रतिशत हुआ, जो कि बहुत ही कम है। ऐसे हालात में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कंपनियां कम उत्पादन वाले क्षेत्रों में निवेश करेंगी, जबकि पहले से चल रहे उद्यमों में क्षमता से कम उत्पादन हो रहा है। कॉरपोरेट्स निवेश करना शुरू करें और अपना विस्तार करें, इससे पहले हमें मांग को बढ़ाना होगा। बहरहाल, यह आकलन किया गया है कि कॉरपोरेट टैक्स में छूट देने से भारत की जीडीपी पर 0.7 प्रतिशत या कहें 1.45 ट्रिलियन रुपए का बोझ पड़ेगा। इससे सरकार की खर्च करने की क्षमता पर असर पड़ेगा, जिससे विकास पर असर पड़ेगा। टैक्स में इस कमी से भारत का वित्तीय घाटा और भी बढ़ेगा। इस तरह, यह साफ है कि कॉरपोरेट टैक्स में कमी करने से कोई फायदा नहीं होगा, जब तक कि उपभोक्ता की मांग नहीं बढ़े। मेरा मानना है कि आयकर की दरों में कमी करने और मौजूदा टैक्स स्लैब में बढ़ोत्तरी करने से लोगों के हाथ में इतना पैसा आएगा कि वे खर्च कर सकें।
साल 2018-2019 में टैक्स देने वालों की संख्या 84.6 मिलियन रही है। इसमें व्यक्तिगत आय वाले करदाता के साथ बिजनेस कंपनियां भी शामिल हैं। साल 2009-10 से टैक्स देने वालों की संख्या में 9.9 प्रतिशत की दर से हर साल वृद्धि हुई है। पिछले साल कुल 58.7 मिलियन इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों में से 55.3 मिलियन इंडिविजुअल्स हैं। इस तरह, व्यक्तिगत इनकम टैक्स फाइल करने वाले 94.3 प्रतिशत हैं। अगर हम इनकम टैक्स के अलावा दूसरे सभी टैक्स देने वालों की संख्या को देखें तो 84.6 मिलियन टैक्स देने वालों में से व्यक्तिगत टैक्स देने वालों की संख्या 84.6 मिलियन है।
वहीं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जितने लोग इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं, वे सभी टैक्स नहीं देते हैं। 55.3 मिलियन लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किए, उनमें 22.4 मिलियन लोगों ने कोई टैक्स नहीं दिया। इस तरह, जितने लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किए, उनमें सिर्फ 60 प्रतिशत ने ही टैक्स दिए। बावजूद इसे कम संख्या नहीं माना जा सकता है। इनमें से ज्यादातर परिवार शामिल हैं। भारत में नौकरी करने वालों में महिलाओं की भागीदारी कम है। अगर एक परिवार कम से कम 5 सदस्यों का भी माना जाए तो टैक्स देने वालों की संख्या ठीकठाक कही जा सकती है। टैक्स में कमी करने का सबसे ज्यादा फायदा तब होता है, जब निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों को इसमें शामिल किया जाए। इससे इनके पास खर्च करने लायक आमदनी बढ़ती है। जो उच्च आय वर्ग के लोग हैं, टैक्स में कमी करने से उन पर कोई असर नहीं पड़ता। इसलिए मेरा मानना है कि 12 लाख की सालाना व्यक्तिगत आमदनी पर टैक्स में छूट दी जाना चाहिए। इसका असर अर्थव्यवस्था पर बढ़िया होगा।
आमदनी में बढ़ोत्तरी होने पर कई तरह से फायदा होता है। जो लोग सबसे ज्यादा इनकम टैक्स दे रहे हैं, वे ही ज्यादा खरीददारी कर सकते हैं। इसलिए उन्हें अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहन देना जरूरी है। यह काम सरकार उनकी आय बढ़ा करके कर सकती है। वहीं, कॉरपोरेट टैक्स में कमी करने से लोगों को तभी फायदा हो सकता है, जब सामानों और सेवाओं की कीमतों में कमी की जाए।
बहरहाल, सारकार को टैक्स में कमी करते हुए सचेत रहने की जरूरत है, क्योंकि इसका असर अर्थव्यवस्था के दूरगामी विकास पर बहुत गहरा पड़ता है। टैक्स में कमी करने के साथ ही गैर-उत्पादक सरकारी खर्चे में भी कटौती की जानी चाहिए। अगर टैक्स में कमी करने के साथ सरकार अपने खर्च में कटौती नहीं करती तो इससे कर्ज लेने की जरूरत पड़ेगी, जिसका अर्थव्यवस्था के विकास पर बुरा असर पड़ेगा। इसलिए सरकार को इस मामले में व्यावहारिक और दूरदर्शितापूर्ण रवैया अपनाना चाहिए। एक ऐसी नाति अपनानी चाहिए जिससे निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों को टैक्स से छूट मिल सके। इससे उपभोग बढ़ेगा और भारत के आर्थिक विकास को मजबूती मिलेगी।
कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीइओ हैं और 'डीप डाइव विद एके' नाम के डेली शो के होस्ट भी हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का बेहतरीन कलेक्शन है। उन्होंने दुनिया के करीब 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा की है। वे एक टेक आंत्रप्रेन्योर हैं और पॉलिसी, टेक्नोलॉजी. इकोनॉमी और प्राचीन भारतीय दर्शन में गहरी रुचि रखते हैं। उन्होंने ज्यूरिख से इंजीनियरिंग में एमएस की डिग्री हासिल की है और लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए हैं।