
बिजनेस डेस्क। देश में टैक्स का चलन काफी पुराना है। इसमें समय समय बदलाव होता रहा है। 1949 से लेकर 2021 तक के बीच में टैक्स स्लैब (Income Tax Slab) में काफी बदलाव देखने को मिली है। कभी 10 हजार रुपए की कमाई पर चार पैसे का टैक्स लगता था। अब 2.5 लाख रुपए की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं लगता है। एक फरवरी 2022 को देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) देश का बजट 2022 (Budget 2022) पेश करने वाली हैं। आम टैक्सपेयर्स (Taxpayers) एक बार फिर से उम्मीदें लगा रहा है कि टैक्स पर राहत मिले। उससे पहले इस बात को जान लेते हैं कि आखिर बीते 73 सालों में टैक्स स्लैब की सूरत किस तरह से बदली है।
1949-50: सबसे पहले जॉन मथाई ने दी थी राहत
वित्त वर्ष 1949-50 में मिनिस्टर ऑफ फाइनेंस जॉन मथाई थे। उन्होंने सबसे पहले टैक्स स्लैब में बड़ा बदलाव किया था। उस समय 10 हजार रुपए तक की सालाना कमाई पर एक आना यानी चार पैसे तक का टैक्स लगता था, जिसमें कटौती करते हुए 3 पैसे कर दिया गया था, इसका मतलब यह है कि एक पैसे की राहत दी गई थी। वहीं 10 हजार रुपए से ज्यादा सालाना कमाई करने वालों को 2 आना टैक्स देना पड़ा था, जिसे 1.9 आना कर दिया गया था।
1974-75: 6 हजार तक सालाना कमाई टैक्स फ्री
इस समय देश के फाइनेंस मिनिस्टर वाईबी चवन थे। अगर कहा कि यह उनका आखिरी बजट था तो गलत नहीं होगा। उन्होंने अपने इस आखिरी बजट काल में सालाना 6 हजार रुपए कमाई करने वालों को बजट से बाहर कर दिया। वहीं उन्होंने मार्जिनल टैक्स 97.75 फीसदी को घटाकर 75 फीसदी कर दिया। साथ ही सभी कैटेगिरी पर एक समान 10 फीसदी का सरचार्ज लगाया। जो उस समय एक बड़ा कदम था।
1985-86: टैक्स स्लैब को 8 से घटाकर 4 किया गया
अभी तक देश में टैक्स स्लैब में 8 लेवल थे, जिसे इस साल फाइनेंस मिनिस्ट वीपी सिंह ने घटाकर 4 कर दिया। वहीं दूसरी ओर फाइनेंस मिनिस्टर ने टैक्स फ्री के दायरे में इजाफा कर दिया। अब 16 हजार तक कमाई करने वालों को टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया। वहीं मार्जिनल टैक्स रेट को 61.87 फीसदी कम कर 50 फीसदी कर दिया गया।
1992-93 और 1994-95: मनमोहन दौर ने बदला देश
इस दौर को फाइनेंस मिनिस्ट्री के तौर पर मनमोहन दौर कहा जाता है। जिसने देश के आर्थिक दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया। पहले बात करते हैं 1992-93 बजट की बात करते हैं। 35 हजार की सालाना कमाई करने वाले टैक्स स्लैब से बाहर कर दिया। उसके बाद तीन स्लैब रखे। 30 से 50 हजार पर 20 फीसदी, 50 हजार से एक लाख तक 30 फीसदी टैक्स लगाया।
1994-95 बजट में स्लैब में बदलाव किया गया। स्लैब तीन ही रखे गए, लेकिन पहले में 35 से 60 हजार वालों पर 20 फीसदी टैक्स, 60 हजार से 1.2 लाख तक 30 फीसदी टैक्स और 1.2 लाख से अधिक कमाने वालों पर 40 फीसदी टैक्स लगाया।
1997-98 और 2005-06: चिदंबरम का ड्रीम बजट
1997-98 के बजट को देश का ड्रीम बजट भी कहा जाता है। यह चिदंबरम का वो दौर था, जिसने देश की आर्थिक दृष्टिकोण में बदलाव देखने को मिला। वित्त वर्ष 1997-98 के बजट में टैक्स की दरों को 10, 20 और 30 फीसदी किया गया। 40 से 60 हजार रुपए की सालाना कमाई करने वालों को 10 फीसदी, 60 हजार से 1.5 लाख तक 20 फीसदी तक और 1.5 लाख रुपए से ज्यादा की कमाई करने वालों को 30 फीसदी के दायरे में रखा गया।
वहीं उन्होंने 2005-06 के बजट में एक लाख तक कमाने वालों को टैक्स फ्री कर दिया गया। 1 से 1.5 लाख रुपए तक की कमाई वालों को 10 फीसदी, 1.5 लाख से 2.5 लाख वालों पर 20 फीसदी और 2.5 लाख से ज्यादा की कमाई पर 30 फीसदी टैक्स लगाया गया है।
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2010-11 और 2012-13: फिर शुरू हुआ प्रणब युग
यूपीए सरकार के आखिरी पांच सालों में प्रणब युग का आगमन हुआ। पहले बात 2010-11 बजट की करते हैं। जिसमें 1.6 लाख रुपए की कमाई करने वालों पर कोई टैक्स नहीं था। उसके बाद 1.6 लाख से 5 लाख तक कमाई पर 10 फीसदी, 5 से 8 लाख पर 20 फीसदी और 8 लाख से ज्यादा पर 30 फीसदी टैक्स का प्रावधान किया गया।
उसके बाद प्रणब मुखर्जी ने 2012-13 में टैक्स स्लैब में बदलाव किया। 2 लाख तक की सलाना कमाई करने वालों को टैक्स स्लैब से बाहर किया गया जो एक बड़ा कदम था। उसके बाद 2 से 5 लाख वालों पर 10 फीसदी, 5 से 10 लाख वालों को 20 फीसदी और 10 लाख से ज्यादा कमाई वालों को 30 फीसदी टैक्स स्लैब में रखा गया।
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2017-18 और 2019-20 : बीजेपी ने भी दी राहत
बीजेपी 2014 से सत्ता में लगातार बनी हुई है। इस दौरान पहले अरुण जेटली फिर निर्मला सीतारमण कार्यभार संभाल रही हैं। पहले बात अरुण जेटली से शुरू करते हैं। जिन्होंने 2017-18 में 2.5 लाख से 5 लाख वालों पर 5 फीसदी टैक्स का प्रावधान किया गया। वहीं सेक्शन 87ए के तहत रीबेट को बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 3.5 लाख रुपए कर दी गई।
वहीं निर्मला सीतारमण के कार्यकाल में 2.5 लाख रुपए तक कोई टैक्स नहीं है। जबकि 2.5 लाख रुपए और 5 लाख रुपए तक 5 फीसदी टैक्स, 5 से 7.5 लाख रुपए तक 10 फीसदी, 7.5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक 15 फीसदी टैक्स, 10 से 12.5 लाख रुपए तक पर 20 फीसदी टैक्स लगाया गया है।