
भारत में हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हर भारतीय के लिख गर्व और सम्मान का दिन है। भारत की आजादी की कहानियां ज्यादातर लोगों ने सिर्फ किताबों में पढ़ी हैं। लेकिन आज भी ये कहानियां उन दीवारों, मिट्टी और हवा में बसी हैं, जहां देश की आजादी के मतवालों ने अपनी जान दांव पर लगाकर संघर्ष किया और अपना बलिदान दिया। अगर आप सच में महसूस करना चाहते हैं कि भारत की स्वतंत्रता का सफर कैसा था, तो इन 10 जगहों पर एक बार जरूर जाएं।
15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार तिरंगा यहीं से फहराया था। आज भी हर साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन यहीं से होता है। लाल किले की विशाल दीवारें ब्रिटिश राज से देश की आजादी की गवाह हैं।
यह जेल ब्रिटिश हुकूमत का सबसे डरावना चेहरा थी। यह काला पानी के नाम से मशहूर था। यहां वीर सावरकर जैसे कई क्रांतिकारियों को अमानवीय यातनाएं दी गईं। म्यूजियम और वीर क्रांतियारियों के संघर्षों की लाइट एंड साउंड शो देखकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
महात्मा गांधी का यह आश्रम स्वतंत्रता आंदोलन का अहम केंद्र था। यहां से गांधीजी ने दांडी यात्रा की शुरुआत की थी। आज भी यह जगह शांति, सादगी और स्वदेशी विचारधारा का प्रतीक है। इसी आश्रम में रहते हुए ही गांधी जी ने अहमदाबाद की मिलों में हुए हड़ताल का संचालन किया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के बार में भारत के वाइसराय को एक पत्र लिखकर सूचित किया था।
13 अप्रैल 1919 का वह काला दिन, जब निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई गईं। लोग यहां रौलेट एक्ट का विरोध करने जमा हुए थे, जिनपर जनरल डायर नाम के अंग्रेज अफसर ने बिना कारण गोलियां चलवा दी थी। जिसमें 400 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। यह जगह भारतीयों के प्रति अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह है। आज यहां एक स्मारक और शहीदों की याद में जलती अमर ज्योति है, जो हमें बलिदान की याद दिलाती है।
यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस का घर था, जहां से उन्होंने 1941 में ब्रिटिश हुकूमत से बचकर भागने की योजना बनाई थी। अब यह एक म्यूजियम है, जिसमें उनकी निजी चीजें और आजादी की लड़ाई से जुड़ा इतिहास संजोया गया है। यहां संजोए गए फोटोज और नेताजी की पर्सनल चीजों को देखकर उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को समझा जा सकता है।
यहां महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और सरोजिनी नायडू को नजरबंद रखा गया था। यह जगह आजादी के संघर्ष और गांधीजी के जीवन से जुड़े कई पलों की गवाह है। यहीं कस्तूरबा गांधी ने अपनी अंतिम सांस भी ली थी। यहीं उनकी समाधी भी है। आज भी इस जगह पर मौजूद चीजों को देखकर आजादी के लिए भारतीयों के संघर्ष के दिनों को समझा जा सकता है।
ब्रिटिश हुकूमत के दौर का यह भव्य स्मारक आज इतिहास का एक बड़ा हिस्सा है। यहां की गैलरी में स्वतंत्रता संग्राम और औपनिवेशिक भारत से जुड़ी ढेरों दुर्लभ तस्वीरें व दस्तावेज मौजूद हैं। साथ ही उस समय की महारानी विक्टोरिया से जुड़ी करीब 3000 से ज्यादा चीजें यहां आज भी सुरक्षित रखी हैं।
मूल रूप से यह प्रथम विश्व युद्ध के शहीद भारतीय सैनिकों की याद में बना था, लेकिन आज यह स्वतंत्रता और बलिदान का प्रतीक है। यहां जलती ‘अमर जवान ज्योति’ हर भारतीय को गर्व का एहसास कराती है। यहीं पर हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस परेड भी आयाजित होती है।
1925 में काकोरी कांड के जरिए क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी थी। यह स्मारक उन बहादुरों की याद दिलाता है जिन्होंने देश के लिए फांसी का फंदा चूमा। काकोरी कांड की योजना क्रांतिवीर राम प्रसाद विस्मिल ने बनाई थी। क्रांतिकारी आंदोलन चलाने के लिए धन की जरूरत थी और यह धन जुटान के लिए 10 क्रांतिकारियों के एक समूह ने सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन से सरकारी धनराशि लूट ली थी।
यहीं पर महात्मा गांधी ने अपने जीवन के आखिरी 144 दिन बिताए थे। 30 जनवरी 1948 को यहीं उनकी हत्या हुई। यह जगह गांधीजी के सिद्धांतों और जीवन दर्शन को करीब से समझने का मौका देती है। 12 बेडरूम वाला यहां स्थित घर 1928 में घनश्यामदास बिड़ला द्वारा बनाया गया था। सरदार वल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी अक्सर यहां बिड़ला के मेहमान बनकर आते थे। इस भवन के संग्रहालय में गांधी जी के जीवन और मृत्यु से जुड़ी कई ऐतिहासिक चीजें हैं।