नजफगढ़ विधानसभा सीट पर AAP के कैलाश गहलोत ने दर्ज की जीत, BJP प्रत्याशी को हराया

Published : Jan 27, 2020, 06:41 PM ISTUpdated : Feb 11, 2020, 07:47 PM IST
नजफगढ़ विधानसभा सीट पर AAP के कैलाश गहलोत ने दर्ज की जीत, BJP प्रत्याशी को हराया

सार

दिल्ली की नजफगढ़ विधानसभा सीट आप के खाते में गई है। आप प्रत्याशी कैलाश गहलोत ने बीजेपी प्रत्याशी को हराकर यह सीट अपने नाम की है।

नई दिल्ली. दिल्ली की नजफगढ़ विधानसभा सीट आप के खाते में गई है। आप प्रत्याशी कैलाश गहलोत ने बीजेपी प्रत्याशी अजीत खरखरी को हराकर यह सीट अपने नाम की है। यह सीट पश्चिमी दिल्‍ली लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है। बता दें, 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस सीट पर आम आदमी पार्टी के कैलाश गहलोत ने इनेलो प्रत्याशी भरत सिंह को हराया था।

किसी का नहीं रहा कब्जा 

2015 में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार रहे कैलाश गहलोत को 55,598 वोट मिले थे। जबकि इनेलो  पार्टी के उम्मीदवार भारत सिंह 54,043 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। वहीं, बीजेपी के उम्मीदवार अजीत सिंह खरखरी 39,462 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। इस सीट पर किसी का कब्जा नहीं रहा है। 1993 में जहां निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी तो 1998 के चुनाव में कंवल सिंह यादव को जीत मिली थी। जबकि 2003 और 2008 में निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव जीता। 

2013 में बीजेपी ने चखा जीत का स्वाद

1993 में विधानसभा के गठन के बाद जीत के लिए जद्दोजहद कर रही बीजेपी को आखिरकार 2013 के चुनाव में सफलता हाथ लगी। जिसमें बीजेपी के उम्मीदवार अजीत सिंह खरखरी ने जीत हासिल की। 

वापसी की राह तलाश रही कांग्रेस 

1993 के बाद से इस सीट पर कांग्रेस को जीत नहीं मिली है। जिसके बाद से हर चुनाव में कांग्रेस पार्टी जीत की राह तलाश रही है। तीनों दिग्गज उम्मीदवारों के कारण नजफगढ़ की सीट पर मुकाबाल त्रिकोणीय बताया जा रहा है। हालांकि आम आदमी पार्टी किसी भी कीमत पर सीटें गंवाना नहीं चाहती है। वहीं, बीजेपी अपने विरोधी पार्टियों को हराकर सीट पर कब्जा जमाने की जुगत कर रही है। 

नजफगढ़ दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम जिले में पड़ता है। इसका इतिहास 300 साल से भी ज्यादा पुराना है। कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के सेनापति मिर्जा नजफ खां के नाम पर इस क्षेत्र का नाम नजफगढ़ पड़ा। उसने यहां एक सैन्य चौकी स्थापित की थी और एक किला बनाया था। इसका मकसद रोहिलों और सिखों के हमले से बचाव करना था। 1857 के गदर के समय 25 अगस्त, 1857 को यहां अंग्रेजों और विद्रोहियों के बीज जोरदार संघर्ष हुआ था, जिसमें करीब 800 लोग मारे गए थे। मुगल सैनिकों और विद्रोहियों की हार के बाद 1858 में यह ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया।

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