जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी इन 5 घटनाओं से सीखिए लाइफ मैनेजमेंट के खास सूत्र

उज्जैन. इस बार 12 अगस्त, बुधवार को जन्माष्टमी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हमें जीवन प्रबंधन के अनेक सूत्र सीखने को मिलते हैं। जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर हम आपको कुछ ऐसे ही लाइफ मैनेजमेंट के सूत्रों के बारे में बता रहे हैं-

Asianet News Hindi | Published : Aug 12, 2020 4:27 AM IST
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जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी इन 5 घटनाओं से सीखिए लाइफ मैनेजमेंट के खास सूत्र

1. हमेशा होना चाहिए प्लान B
एक बार भगवान कृष्ण ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए बहुत दूर निकल गए। उन्हें भूख लगने लगी। उन्होंने ग्वालों से कहा कि पास ही एक यज्ञ का आयोजन हो रहा है, वहां जाओ और भोजन मांग कर ले आओ। ग्वालों ने वैसा ही किया।, लेकिन यज्ञ का आयोजन कर रहे ब्राह्मणों ने भोजन देने से मना कर दिया। ग्वाले लौट आए। ऐसा एक नहीं कई बार हुआ। कृष्ण ने ग्वालों से कहा एक बार फिर जाओ, लेकिन इस बार ब्राह्मणों से नहीं, उनकी पत्नियों से भोजन मांगना। ग्वालों ने जब ब्राह्मण की पत्नियों से कृष्ण के लिए भोजन मांगा तो वे तत्काल उनके साथ भोजन लेकर वहां आ गईं। सबने प्रेम से भोजन किया।

लाइफ मैनेजमेंट
अगर एक ही दिशा में लगातार प्रयासों में असफलता मिल रही है तो अपने प्रयासों की दिशा भी बदल देनी चाहिए। किसी भी समस्या पर हमेशा दो नजरिये से सोचना चाहिए, अर्थात् आपके पास हमेशा दूसरा प्लान जरूर होना चाहिए।
 

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2. अपना काम ईमानदारी से करें, भगवान आपका साथ देंगे
महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। कर्ण ने अर्जुन को हराने के लिए सर्प बाण के उपयोग करने का विचार किया। पाताललोक में अश्वसेन नाम का नाग था, जो अर्जुन को अपना शत्रु मानता था। कर्ण को सर्प बाण का संधान करते देख अश्वसेन खुद बाण पर बैठ गया। अर्जुन का रथ चला रहे भगवान कृष्ण ने अश्वसेन को पहचान लिया। उन्होंने अपने पैरों से रथ को दबा दिया। घोड़े बैठ गए और तीर अर्जुन के गले की बजाय उसके मस्तक पर जा लगा। तभी मौका देखकर कर्ण ने अर्जुन पर वार शुरू कर दिया। अर्जुन की रक्षा के लिए भगवान ने वो तीर भी अपने ऊपर झेल लिए।

लाइफ मैनेजमेंट
जब आप अपना काम ईमानदारी से करते हैं और भगवान पर पूर्णरूप से भरोसा करते हैं तो वो सब तरह से आपकी जिम्मेदारी ले लेते हैं। हर तरह के संकट से आपकी रक्षा करते हैं।
 

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3. जब अश्वत्थामा ने मांग लिया श्रीकृष्ण से उनका सुदर्शन चक्र
एक बार पांडव और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा द्वारिका पहुंच गया। कुछ दिन वहां रहने के बाद एक दिन अश्वत्थामा ने श्रीकृष्ण से कहा कि वो उसका अजेय ब्रह्मास्त्र लेकर उसे अपना सुदर्शन चक्र दे दें। भगवान ने कहा ठीक है, मेरे किसी भी अस्त्र में से जो तुम चाहो, वो उठा लो। अश्वत्थामा ने भगवान के सुदर्शन चक्र को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ।
भगवान ने उसे समझाया कि अतिथि की अपनी सीमा होती है। उसे कभी वो चीजें नहीं मांगनी चाहिए जो उसके सामर्थ्य से बाहर हो। अश्वत्थामा बहुत शर्मिंदा हुआ। वह बिना किसी शस्त्र-अस्त्र को लिए ही द्वारिका से चला गया।


लाइफ मैनेजमेंट
अपनी कोशिश के अनुपात में ही फल की आशा करनी चाहिए। साथ ही, किसी से कुछ भी मांगते समय भी अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए।
 

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4. शांति के लिए अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए
जब पांडवों का वनवास खत्म हो गया और वे अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए तो एक दिन उनके सभी मित्र और रिश्तेदार आदि राजा विराट नगर में एकत्रित हुए। सभी ने एकमत से निर्णय लिया कि हस्तिनापुर पर आक्रमण कर कौरवों का नाश कर देना चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि- हमें शांति के लिए एक और प्रयास करना चाहिए, जिससे कि किसी के प्राण न जाएं और पांडवों को उनका अधिकार भी मिल जाए। जब श्रीकृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिापुर जा रहे थे तो द्रौपदी ने इसका विरोध किया। तब श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि हस्तिनापुर के विनाश से तुम्हारे अपमान का बदला पूरा हो भी जाता है तो भी तुम्हारे हिस्से में सिर्फ कुटुंबियों का रक्त ही आएगा। इसलिए शांति का अंतिम अवसर देना हमारे हाथ में है। युद्ध करना या नहीं, इसका विचार कौरवों को करने दो।

लाइफ मैनेजमेंट
हमें अंतिम समय तक शांति के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि विनाश से किसी का भला नहीं होगा।
 

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5. श्रीकृष्ण के बचपन से सीखें 3 बातें
भगवान श्रीकृष्ण का बचपन नंद गांव में बीता। यहां बालपन में भगवान श्रीकृष्ण रोज गायों को चराने जंगल में ला जाते थे। जंगल यानी प्रकृति। कृष्ण अपने बचपन में प्रकृति के काफी निकट रहे। श्रीकृष्ण का बचपन से ही संगीत की ओर विशेष रूझान था, इसलिए बांसुरी श्रीकृष्ण का ही पर्याय बन गई। भगवान श्रीकृष्ण को बचपन में मक्खन बहुत पसंद था। आज भी श्रीकृष्ण को मुख्य रूप से मक्खन का ही भोग लगाया जाता है।

लाइफ मैनेजमेंट
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हमें भी अपने बच्चों को खुला माहौल देना चाहिए। बच्चों को गार्डनिंग के लिए प्रेरित करें, जिससे वे अपने आस-पास के वातावरण को महसूस करें और समझें।
2. अपने बच्चों को भी संगीत से जोड़ें। संगीत से मन तो प्रसन्न रहता ही है साथ ही उनका मनोवैज्ञानिक विकास भी होता है। वे भावनाओं को समझने लगते हैं।
3. तीसरी और सबसे अहम बात है भोजन। मक्खन यानी स्वस्थ्य आहार। मन आपका तभी स्वस्थ्य होगा, जब आपका आहार अच्छा हो।

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