कौन थे वो ऋषि जिन्हें बचपन से ही स्त्रियों से दूर रखा गया और जब उन्होंने पहली बार स्त्री को देखा तो क्या हुआ?

हमारे धर्म ग्रंथों में अनेक महान, तपस्वी ऋषि-मुनियों के बारे में बताया गया है। इनमें से कुछ ऋषियों का जन्म अप्सरा के गर्भ से भी हुआ है। ऐसे ही एक ऋषि थे ऋष्यश्रृंग जिन्हें श्रृंगी ऋषि भी कहा जाता है। इनके जन्म और विवाह की कथा भी बहुत विचित्र है।
 

Manish Meharele | Published : Jan 10, 2023 8:28 AM IST
16
कौन थे वो ऋषि जिन्हें बचपन से ही स्त्रियों से दूर रखा गया और जब उन्होंने पहली बार स्त्री को देखा तो क्या हुआ?

ऐसे हुआ था ऋष्यश्रृंग का जन्म
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, त्रेतायुग में विभाण्डक नाम के एक महातपस्वी ऋषि हुए। उन्होंने कई बार कठोर तप किए। उनके तप को देखकर देवता भी भयभीत होने लगे। तब इंद्र ने उनक तपस्या भंग करने के लिए उर्वशी नाम की अप्सरा को भेजा। उर्वशी के रूप को देखकर ऋषि विभाण्डक की तपस्या भंग हो गई। इन दोनों के मिलन से ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ। पुत्र का जन्म होते ही उर्वशी अपने लोक चली गई। इस घटना से ऋषि विभाण्डक इतने आहत हुए कि उन्होंने जीवनभर अपने पुत्र पर स्त्री का साया न पड़ने देने का मन बना लिया।
 

26

गहन जंगल में किया ऋष्यश्रृंग का पालन-पोषण
ऋष्यश्रृंग पर स्त्रियों का साया न पड़े, इसके लिए ऋषि विभाण्डक ने गहन जंगल में उनका पालन-पोषण किया। ऋष्यश्रृंग भी अपने पिता की तरह महातपस्वी निकले। वे भी दिन-रात तपस्या में लीन रहते थे। उन्होंने अपनी जवानी तक किसी भी स्त्री को नहीं देखा, उन्हें लगता था कि संसार में सिर्फ पुरुष ही पुरुष हैं। स्त्री क्या होती है, वह कैसी दिखाई देती है, इसके बारे में ऋष्यश्रृंग को कुछ भी पता नहीं था।
 

36

जब पहली बार ऋष्यश्रृंग ने देखा किसी स्त्री को
रामायण के अनुसार, अंगदेश के राजा रोमपाद थे। एक बार उनके राज्य में भंयकर अकाल पड़ा। तब राजा रोमपाद को उनके कुलगुरु ने सलाह दी कि किसी भी तरह यदि ऋष्यश्रृंग को यहां ले आया जाए तो ये अकाल खत्म हो सकता है। ये भी बताया कि किसी सुंदर स्त्री के द्वारा ही उन्हें यहां लाया जा सकता है। ये काम राजा रोमपाद ने एक सुंदर देवदासी को सौंपा। वह देवदासी एक दिन चुपके से ऋष्यश्रृंग के पास गई। उसका रूप और शरीर देखकर ऋष्यश्रृंग रोमांचित हो गए। उन्होंने घर आए किसी तपस्वी की तरह ही उसका सम्मान किया।
 

46

जब ऋषि विभाण्डक को पता चली ये बात
शाम को जब ऋषि विभाण्डक अपने आश्रम में आए तो उन्होंने देखा कि ऋष्यश्रृंग का मन तपस्या में नहीं लग रहा है। कारण पूछने पर ऋष्यश्रृंग ने उन्हें पूरी बात सच-सच बता दी। ऋषि विभाण्डक को समझ आ गया कि ऋष्यश्रृंग ने किसी स्त्री को देख लिया है। अगले दिन जब ऋषि विभाण्डक आश्रम में नहीं थे, तब वह देवदासी फिर ऋष्यश्रृंग के पास पहुंची और अपने साथ उन्हें अंगदेश ले आई। अंगदेश की भूमि पर ऋष्यश्रृंग के कदम पड़ते ही वहां जोरदार बारिश होने लगी और अकाल समाप्त हो गया।
 

56

राजा रोमपाद ने करवा दिया अपनी पुत्री का विवाह
ऋष्यश्रृंग के अंगदेश जाने की बात जब ऋषि विभाण्डक को पता चली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और राजा रोमपाद को श्राप देने उनके नगर में पहुंच गए। तब राजा रोमपाद ने उनका क्रोध शांत करने के लिए अपनी पुत्री शांता का विवाह ऋष्यश्रृंग का विवाह करवा दिया और उन्हें अपना जामाता बना लिया। ये देखकर ऋषि विभाण्डक का क्रोध शांत हो गया और वे पुन: अपने आश्रम में लौट गए। शांता और कोई नहीं बल्कि अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्री थी, जिसे उन्होंने अपने मित्र रोमपाद को गोद दे दिया था। 
 

66

ऋष्यश्रृंग ने ही करवाया था राजा दशरथ का पुत्रकामेष्ठि यज्ञ
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकई। इन तीनों से ही राजा दशरथ को कोई संतान नहीं थी। जब राजा दशरथ बूढ़े होने लगे तो उन्हें अपने वंश की चिंता संताने लगी। तब कुलगुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाने की सलाह दी। ये यज्ञ ऋष्यश्रृंग ने संपूर्ण करवाया था। इस यज्ञ के फलस्वरूप में श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
 

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos