6 ऐसे मौके जब अमिताभ ने जिंदगी से नहीं मानी हार, कठिन दौर से खुद को ऐसे निकाला
मुंबई। अमिताभ बच्चन को फिल्म इंडस्ट्री में 50 साल हो चुके हैं। बिग बी ने 1969 में फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से करियर की शुरुआत की थी। तब से अब तक उन्होंने फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। फिल्मों में योगदान के लिए हाल ही में अमिताभ बच्चन को दादासाहब फाल्के अवॉर्ड के लिए चुना गया है। वैसे, पिछले 50 सालों में अमिताभ बच्चन ने कामयाबी के शिखर तक पहुंचने के लिए काफी स्ट्रगल भी किया है। अमिताभ की जिंदगी में ऐसे कई दौर आए, जब उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। हालांकि मजबूत इरादों के चलते बिग बी इनसे पार पाने में कामयाब रहे। इस पैकेज में हम बता रहे हैं अमिताभ की जिंदगी के 5 ऐसे ही टर्निंग प्वॉइंट।
1- जब ऑल इंडिया रेडियो में रिजेक्ट कर दिए गए थे अमिताभ : आज अमिताभ की जिस भारी आवाज के सभी कायल हैं, एक वक्त पर ऑल इंडिया रेडियो ने अमिताभ की उसी भारी आवाज को रिजेक्ट कर दिया था। दरअसल, 40-45 साल पहले बिग बी मुंबई के रेडियो स्टूडियो में ऑडिशन देने पहुंचे थे। चूंकि बिना अप्वॉइंटमेंट लिए ही बिग बी रेडियो अनाउंसर अमीन सयानी से मिलने चले आये थे, जिस वजह से सयानी ने उनसे मिलने से मना कर दिया और बिना आवाज सुने ही उन्हें रिजेक्ट कर दिया था। हालांकि बाद में सयानी ने 'आनंद' फिल्म का एक ट्रॉयल शो देखा तो वे बिग बी की आवाज से प्रभावित हुए, लेकिन तब उन्हें पता नहीं था कि वो अमिताभ ही थे, जो उस दिन ऑडिशन के लिए आए थे। बाद में सयानी ने एक इंटरव्यू में कहा था, "मुझे इस बात को लेकर खेद होता है, लेकिन मुझे लगता है कि जो हुआ, वह हम दोनों के लिए अच्छा हुआ। मैं सड़क पर होता और उन्हें रेडियो पर इतना काम मिलता कि भारतीय सिनेमा अपने सबसे बड़े स्टार से वंचित रह जाता।"
2- 'जंजीर' से पहले एक के बाद एक अमिताभ की 12 फिल्में हुई थीं फ्लॉप : 1973 में आई प्रकाश मेहरा की फिल्म 'जंजीर' से पहले अमिताभ की एक के बाद एक 12 फिल्में फ्लॉप हुई थीं। यहां तक कि उस दौर में रेखा और जया भादुड़ी जैसी स्थापित एक्ट्रेस ने भी अमिताभ के साथ यह कहते हुए काम करने से मना कर दिया था कि वो तो अभी एक स्ट्रगलर हैं। यहां तक कि अमिताभ के फ्लॉप होते करियर को देखते हुए कोई भी डायरेक्टर उन्हें लेने को तैयार नहीं था। इसी बीच उन्हें प्रकाश मेहरा की 'जंजीर' ऑफर हुई। हालांकि ‘जंजीर’ के लिए अमिताभ बच्चन निर्देशक प्रकाश मेहरा की पहली नहीं, बल्कि पांचवीं पसंद थे। अमिताभ ने इस फिल्म में इंस्पेक्टर विजय खन्ना की भूमिका निभाई थी, जो पहले राजकुमार को ऑफर की गई थी। राजकुमार के इनकार के बाद देव आनंद, राजेश खन्ना और धर्मेंद्र ने भी इस किरदार को निभाने से मना कर दिया। इस तरह आखिरी में ये रोल अमिताभ बच्चन को मिला। 'जंजीर' अमिताभ के डूबते करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। जंजीर ने उन्हें एंग्री यंग मैन के रूप में पहचान दिलाई। इस कामयाबी के बाद अमिताभ एक के बाद एक हिट फिल्में देते गए।
3- 'कुली' हादसे के बाद अमिताभ को मिली दूसरी जिंदगी डायरेक्टर मनमोहन देसाई की 1983 में आई फिल्म 'कुली' में अमिताभ के साथ दर्दनाक हादसा हुआ था। बेंगलुरू में शूटिंग के दौरान पुनीत इस्सर का एक घूंसा अमिताभ को ऐसा लगा कि वो 60 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच जूझते रहे। यह वो वक्त था, जब अमिताभ का करियर चरम पर था। अमिताभ की जिंदगी के लिए देशभर में दुआओं का सिलसिला शुरू हो गया। बाद में लोगों की दुआएं रंग लाईं और अमिताभ मौत से जंग जीतकर सकुशल लौट आए।
जब राजनीति की वजह से फिल्मी करियर आया ढलान पर : 4- 1984 में अमिताभ बच्चन ने पॉलिटिक्स ज्वाइन कर ली। उन्होंने इलाहाबाद की लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और एचएन बहुगुणा को भारी वोटों से हराया। हालांकि चुनाव जीतने के तीन साल बाद ही अमिताभ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। दरअसल, उस वक्त बोफोर्स कांड में गांधी फैमिली के साथ ही अमिताभ बच्चन का नाम भी इसमें आया था। चूंकि अमिताभ गांधी फैमिली के बेहद करीब थे, इसलिए वो इस वाकये से बेहद दुखी हुए। दरअसल, राजीव की सरकार में बोफोर्स घोटाला हुआ, जिसमें अमिताभ और उनके भाई अजिताभ का नाम भी आया। इस वजह से अमिताभ ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इसके खिलाफ अमिताभ ब्रिटेन की अदालत में गए और मुकदमा जीता, लेकिन इस घोटाले की वजह से दोनों परिवारों के बीच दरार पड़ गई।
5- अमिताभ के मुश्किल दौर में दोस्त अमर सिंह ने की मदद : 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद गांधी परिवार को महसूस हुआ कि बच्चन परिवार ने उन्हें मुश्किल दौर में अकेला छोड़ दिया, जबकि बच्चन परिवार का कहना था कि गांधी परिवार ने उन्हें राजनीति में लाकर बीच में छोड़ दिया था। कहा ये भी जाता है कि जब अमिताभ की कंपनी एबीसीएल मुश्किल दौर में थी तब भी गांधी परिवार ने उनकी कोई मदद नहीं की। इसी दौरान अमर सिंह ने बच्चन परिवार की मदद की, जिसके बाद बच्चन परिवार की नजदीकियां समाजवादी पार्टी से बढ़ने लगीं और जया बच्चन ने सपा के टिकट से चुनाव लड़ा। एक बार अमिताभ ने ये भी कहा था, 'गांधी परिवार राजा है और हम रंक।' हालांकि, दोनों ही परिवारों ने इस पर कभी खुलकर कोई बात नहीं की है।
6- ABCL ने डुबोया तो 'मोहब्बतें' और KBC ने बिग बी को उबारा : 1996 में ‘अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड’ की शुरुआत की। एबीसीएल का लक्ष्य हजार करोड़ की कंपनी बनना था। लेकिन इस बैनर की पहली फिल्म ही बुरी तरह पिट गई। बाद की फिल्में भी कुछ कमाल नहीं कर पाई। कंपनी ने बेंगलुरु में हुए मिस इंडिया ब्यूटी कॉन्टेस्ट के इवेंट मैनेजमेंट का जिम्मा लिया, जिसमें हाइली पेड लोग रखे गए और करोड़ों रुपए खर्च किए गए। इवेंट से कोई कमाई नहीं हुई, उल्टा बिग बी पर कर्ज का बोझ बढ़ गया। उनकी कंपनी के खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज हुए। बैंक ने लोन वसूली के लिए उन्हें ढेरों नोटिस भेजे। बिग बी को अपना बंगला प्रतीक्षा और जलसा तक गिरवी रखने पड़े। जनवरी 2013 में दिए एक इंटरव्यू में अमिताभ ने कहा था, "मैं कभी नहीं भूल सकता कि कैसे देनदार मेरे दरवाजे पर आकर गालियां और धमकी देकर अपना पैसा मांगते थे। इससे भी बदतर यह था कि वे हमारे घर प्रतीक्षा की कुर्की के लिए आ गए थे। यह मेरे 44 साल के करियर का सबसे बुरा दौर था। इसने मुझे बैठकर सोचने को मजबूर कर दिया। मैंने अपने ऑप्शंस को देखा और सभी पहलुओं का मूल्यांकन किया। जवाब मिला- मैं जानता हूं कि एक्टिंग कैसे करते हैं। इसके बाद मैं यशजी (यश चोपड़ा) के पास गया, जो घर के पीछे ही रहते थे। मैंने उनसे काम की गुहार लगाई और उन्होंने मुझे 'मोहब्बतें' में साइन कर लिया।" अमिताभ ने कहा था, "मैं केबीसी के योगदान को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह ऐसे वक्त में मेरे पास आया, जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी। यह बूस्टर शॉट की तरह था। फिर चाहे पर्सनली हो या प्रोफेशनली, यकीन मानिए, इसने सभी के पैसे चुकाने में मेरी बहुत मदद की।"