इसी गहरे अवसाद में उन्होंने सुसाइड करने की कोशिश की लेकिन अंतरआत्मा की आवाज ने उन्हें रोक लिया। बस यहीं से उन्होंने ज्यादा मेहनत करना शुरू कर दी। इसके बाद सातवीं बार में उन्होंने सीए का एग्जाम क्लियर कर दिया। मुकेश बताते हैं कि 20 जुलाई 2010 को उनके एक दोस्त ने फोन पर सीए रिजल्ट की जानकारी दी।
ऑफिस में उनकी एक सहकर्मी ने उनका रोल नंबर सर्च किया तो वो परीक्षा पास कर चुके थे। जिसके उनके दुख के आंसू खुशी के आंसुओं में बदल गए। इस तरह एक चाय के ढाबे पर काम करने वाला ये शख्स आज बैंक में सीए बन गया। उनकी लाइफ का संघर्ष और लगन और जज्बा लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।