मनीषा कहती हैं कि "मैंने बचपन से ही पाकिस्तान में लड़कियां को थानों और अदालतों के अंदर जाते नहीं देखा। लड़कियां या तो डॉक्टर या शिक्षक बन सकती हैं, लेकिन पुलिस विभाग में शामिल होना बहुत सीमित है।" उन्होंने आगे कहा कि वह व्यवस्था में बदलाव लाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने पुलिस की नौकरी।