CAA के बाद मोदी सरकार का एक और बड़ा कदम; अब इन शरणार्थियों को मिलेंगे अधिकार

नई दिल्ली. नागरिकता कानून लागू होने के बाद से एक ओर जहां पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों का दौर अपने चरम पर है। वहीं, दूसरी तरफ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और त्रिपुरा के ब्रू शरणार्थियों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इस समझौते के हस्ताक्षर होते ही ब्रू शरणार्थी की समस्या का निपटारा हो गया है। जिसमें त्रिपुरा में लगभग 30,000 ब्रू शरणार्थियों को बसाया जाएगा। इसके लिए 600 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया गया है। ऐसे में  यह जानना जरूरी है कि आखिर ये ब्रू शरणार्थी कौन है जिन्हें बसाने के लिए गृहमंत्री अमित शाह 600 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया है। इसके साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि आखिर ये शरणार्थी भारत में कब से रह रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 17, 2020 8:58 AM IST

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CAA के बाद मोदी सरकार का एक और बड़ा कदम; अब इन शरणार्थियों को मिलेंगे अधिकार
ब्रू जनजाति कहीं बाहर के नहीं बल्कि भारत के ही हैं। जिन्हें साल 1995 में यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने ब्रू जनजाति को बाहरी घोषित कर दिया। अक्टूबर, 1997 में ब्रू लोगों के खिलाफ जमकर हिंसा हुई, जिसमें दर्जनों गावों के सैकड़ों घर जला दिए गए। ब्रू लोग तब से जान बचाने के लिए रिलीफ कैंपों में रह रहे हैं। यहां की हालात इतने खराब है कि इन लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं। (ब्रू शरणार्थियों की फाइल फोटो)
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ये मामला 1997 का है , जब जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने, जिसमें करीब 30,000 लोग शामिल थे। उन्होंने आकर मिजोरम से त्रिपुरा में शरण ली, और वह सभी कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा में अस्थाई कैंपों में रखे गए। (फोटो- अपने पारंपरिक परिधान में बैठी ब्रू जनजाति की महिलाएं)
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ब्रू और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के बीच 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना। इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की। (फोटो-अपने अधिकारों को लेकर प्रदर्शन करती हुई महिलाएं, फाइल फोटो)
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इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी थी जब यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया था। इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं हैं। जिसके बाद तनाव की स्थिति बढ़ती चली गई और अंत में राहत शिविरों में रह कर गुजर बसर करने लगे। (ब्रू शरणार्थियों की फाइल फोटो)
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ब्रू शरणार्थियों के पास मूलभूत सुविधाएं नहीं थी, ऐसे में इस समझौते के साथ ही उन्हें जीवन यापन के लिए सुविधाएं दी जाएगी। जिसमें उन्हें 2 साल के लिए 5000 रुपये प्रति माह की नकद सहायता और दो साल तक मुफ्त राशन भी दिया जाएगा। ब्रू शरणार्थियों को 4 लाख रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) के साथ 40 से 30 फुट का प्लॉट भी मिलेगा। बता दें, मकान और चार लाख रुपये के अलावा कई अन्य तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। यही नहीं उन्हें वोटर लिस्ट में भी जल्द शामिल किया जाएगा। (कतार में खड़ी ब्रू जनजाति की महिलाएं, फाइल फोटो)
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अमित शाह ने कहा "कई सालों से ब्रू समुदाय के लोगों के लिए कोई समाधान नहीं निकल रहा था। जिसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने 3 जुलाई 2018 त्रिपुरा सरकार और मिजोरम सरकार के बीच एक समझौता किया था। जिसमें विस्थापित सभी लोगों को सम्मान के साथ मिजोरम में रखने के की व्यवस्था बनी थी, लेकिन कई कारणों से कई सारे लोग मिजोरम में जाना नहीं चाहते थे। 2018-19 से आज तक सिर्फ 328 परिवार ही मिजोरम में जाकर बस पाए थे।'' (सड़क पर बैठे बच्चे और महिलआएं, फाइल फोटो)
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