वो 40 मिनट, जब कोर्ट ने फैसला सुनाया, सरकार ने आदेश माना और मीडिया के सामने खुला ताला
अयोध्या में 1 फरवरी 1986 को विवादित इमारत का ताला खोलने का आदेश फैजाबाद के जिला जज देते हैं। राज्य सरकार चालीस मिनट के भीतर उसे लागू करा देती है। शाम 4.40 पर अदालत का फैसला आया। 5.20 पर विवादित इमारत का ताला खुला।
1949 में कुछ लोगों ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रख दी और पूजा शुरू कर दी, इस घटना के बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया और सरकार ने विवादित स्थल पर ताला लगवा दिया था।
सिर्फ 40 मिनट में सरकार ने माना कोर्ट का आदेश: हेमंत शर्मा की किताब 'युद्ध में अयोध्या' के मुताबिक, अयोध्या में 1 फरवरी 1986 को विवादित इमारत का ताला खोलने का आदेश फैजाबाद के जिला जज देते हैं। राज्य सरकार चालीस मिनट के भीतर उसे लागू करा देती है। शाम 4.40 पर अदालत का फैसला आया। 5.20 पर विवादित इमारत का ताला खुला। अदालत का ताला खुलवाने की अर्जी लगाने वाले वकील उमेश चंद्र पांडेय भी कहते हैं, ''हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा।"
पहले से ही दूरदर्शन की टीम थी मौजूद: शर्मा लिखते हैं कि दूरदर्शन की टीम पहले से पूरी प्रक्रिया को कवर करने के लिए वहां मौजूद थी। उस वक्त और कोई दूसरा चैनल नहीं था। लखनऊ से दूरदर्शन की टीम फैजाबाद पहुंची थी। जबकि लखनऊ से फैजाबाद पहुंचने में 3 घंटा लगता है। यानी टीम कोर्ट के फैसले से पहले ही मौजूद थी।
कौन था फैसले के पीछे?: हेमंत शर्मा के मुताबिक, ताला खुलवाने का फैसला सोची समझी राजनीति के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिया था। दरअसल, राजीव गांधी ने यह फैसला शाहबानो मामले में नाराज बहुसंख्यकों को खुश करने के लिए लिया गया था। यह नासमझी भरा पैतरा था। इस पूरे प्रकरण की पटकथा दिल्ली में लिखी गई थी।
शर्मा आगे लिखते हैं उत्तर प्रदेश सरकार को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि, मुख्यमंत्री वीर बहादुर से कहा गया था कि वे इस मामले में सीधे तौर पर अरुण नेहरू से संपर्क में रहेंगे। वीर बहादुर ने पद से हटने के बाद खुद इस बात का खुलासा किया था कि अरुण नेहरू राजीव गांधी के परामर्श पर ही मामले का संचालन कर रहे थे।