मां बीमार पड़ी तो ठेला लगा मछली बेचने लगा ये प्रोफेसर, आज महीने का कमाता है 1 लाख
तमिलनाडु. शाहरुख खान की फिल्म रईस का एक डायलॉग है ना, ‘कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।’ सौ टका सच है। समाज में लोगों ने सड़क किनारे दुकान लगाने वालों को कमतर आंका है। पर ऐसे ही एक प्रोफेसर ने जब अपनी मां को बीमार देखा तो नौकरी छोड़ने की सोच ली। सैलरी में वो कमाई नहीं होती थी जो वो आज कमाते हैं।नौकरी छोड़ प्रोफोसर ने मछली बेचना शुरू कर दिया तो लोग उन्हें पागल भी कहने लगे। यह कहानी है 27 वर्षीय मोहन कुमार की, जो तमिलनाडु के करुर के रहने वाले हैं। आज वो लाखों की कमाई का फिश कोल्ड स्टोरेज बिजनेस चलाते हैं।
Asianet News Hindi | Published : Mar 21, 2020 10:25 AM IST / Updated: Mar 21 2020, 04:05 PM IST
मोहन कुमार ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की थी। इसके बाद उन्होंने करुर के एक प्राइवेट कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाना शुरू किया। साथ ही, परिवर के मछली बेचने के बिजनेस में भी ध्यान देते थे। उनके माता-पिता पलानीवेल और सेल्वारानी, गांधीग्राम में फिश फ्राई की एक दुकान चलाते हैं।
मोहन उन दिनों को याद करते हैं, जब वह कॉलेज खत्म करने के बाद दौड़ते हुए दुकान पर आते थे और माता-पिता काम में हाथ बटाते थे। हालांकि, उनके पेरेंट्स इससे खुश नहीं थे।
वह नहीं चाहते थे कि मोहन इस बिजनेस में आए। उनकी ख्वाहिश थी कि वो जीवन में कुछ ‘बड़ा’ हासिल करे और अपने पैशन का पीछा करे।
एक वक्त वो भी आया जब लोग मोहन को पागल कहने लगे। मोहन बताते हैं कि ‘इंजीनियरिंग करने के बाद जब मैंने मछली का बिजनेस संभाला, तो कई लोगों ने मुझे पागल कहा। लेकिन मैं अपनी पिछली जॉब के मुकाबले इस काम से ज्यादा मोहब्बत करता हूं।’
वो उस दौर को याद करते हैं, जब उनकी मां न्यूरोलॉजिकल डिसऑडर से जूझ रही थीं और उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी थी। हालांकि, इस बिजनेस से हुए लाभ ने उन्हें इससे उबरने में मदद की। मैंने इस फील्ड में कई मुश्किलों का सामना किया, जिसमें मेरा परिवार साथ नहीं खड़ा था।
बता दें, मोहन, करुर में होटल्स और छोटी दुकानों को दो से तीन टन मछली और मीट उपलब्ध करवाते हैं और महीने का तकरीबन 1 लाख रुपया कमा लेते हैं। वह इस बिजनेस को ऊंचायों तक ले जाना चाहते हैं।