Published : Jul 15, 2020, 04:39 PM ISTUpdated : Jul 17, 2020, 08:17 AM IST
नई दिल्ली. 26 जुलाई को हम कारगिल विजय दिवस मनाते हैं। इस दिन भारत के वीर जवानों ने दुश्मन देश पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। भारतीय जवानों के अदम्य साहस ने देश का सीना फक्र से ऊंचा कर दिया था। इस जीत के लिए भारत के 527 जवानों ने अपने खून का आखिरी कतरा तक न्यौछावर कर दिया था। इन जवानों में से ही एक विक्रम बत्रा भी थे। विक्रम बत्रा का नाम सुन पाकिस्तानी सेना खौफ में आ जाती थी। उन्होंने कारगिल के प्वांइट 4875 पर तिरंगा फहराते हुए कहा था यह दिल मांगे मोर। आईए जानते हैं विक्रम बत्रा की बहादुरी की कहानी और जीवन का एक दिलचस्प किस्सा....
विक्रम का जन्म 1974 में हिमाचल के पालमपुर में हुआ था। बत्रा बचपन से ही एक साहसी और निडर थे। उन्होंने बचपन में ही चली स्कूल बस से कूदकर नीचे गिरी एक बच्ची की जान बचाई थी। मीडिया से बातचीत में उनके पिता ने बचपन का यह किस्सा सुनाया था।
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विक्रम में सेना में जाने का जज्बा 1985 में परमवीर चक्र सीरियल देखकर आया। हालांकि, उनका चयन हॉन्गकॉन्ग में मर्चेंट नेवी में एक शिपिंग कंपनी में हो गया था। लेकिन वे देश की सेवा करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सेना को चुना।
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विक्रम ने 1995 में आईएमए की परीक्षा पास की। वे 6 दिसंबर, 1997 को लेफ्टिनेंट के पद पर सेना में भर्ती हुए। करगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन जम्मू-कश्मीर रायफल 6 जून को द्रास पहुंची थी। 19 जून को उन्हें प्वाइंट 5140 को दुश्मन से छुड़ाकर कब्जे में लेने का आदेश मिला।
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दुश्मन ऊंचाई पर थे, इसके बावजूद उन्होंने और उनकी टुकड़ी ने बहादुरी का परिचय देते हुए पोस्ट पर कब्जा कर लिया। उनका अगला अभियान 17,000 फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना था। पाकिस्तानी सेना 16 हजार फीट पर थी।
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7 जुलाई 1999 को पोस्ट के पास पहुंचकर विक्रम सीधे दुश्मनों से भिड़ गए। पाकिस्तानी सेना उनके अदम्य साहस से खौफ खाकर उन्हें शेरशाह नाम से बुलाने लगी थी। इस दौरान उन्होंने अपने ऊपर बरसाईं जा रहीं गोलियां की भी परवाह नहीं की। उन्होंने ना केवल पाकिस्तान के बनाए हुए बंकर पर कब्जा किया, बल्कि अपने जवानों को भी बचाया।
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उन्होंने अपने साथी अफसर अनुज नायर के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना पर हमला किया। उन्होंने ग्रेनेड फेंककर 5 को मार गिराया। लेकिन इस दौरान उनके भी गोली लग गई। वे शहीद हो गए। लेकिन इससे पहले उन्होंने 4875 चोटी पर भारत का झंडा फहरा दिया। इस दौरान उन्होंने कहा...ये दिल मांगे मोर...देखते ही देखते उनका ये डॉयलॉग हर जवान पर चढ़ गया।
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बत्रा की बहादुरी के चलते मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनके नाम पर 4875 चोटी का नाम रखा गया।
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जब दोस्तों से कहा- तिरंगा लहराकर आउंगा या फिर उसमें लिपटकर
विक्रम शुरुआत से ही देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने के लिए तैयार थे। करगिल युद्ध से पहले एक बार उन्होंने अपने दोस्तों से कहा था, या तिरंगा लहराकर जीत कर आउंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आउंगा...लेकिन आउंगा जरूर।
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जब गर्लफ्रेंड की भर दी खून से मांग
विक्रम बत्रा एक लड़की से प्यार करते थे। दोनों की मुलाकात 1995 में पंजाब यूनिवर्सिटी में हुई थी। यहां दोनों एमए कर रहे थे। दोनों के बीच पहले दोस्ती हुई, फिर यह प्यार में बदल गया। 1996 में विक्रम ने पढ़ाई छोड़कर सेना जॉइन कर ली। इसके बाद उनकी गर्लफ्रेंड काफी दुखी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि विक्रम हमेशा शादी के लिए कहते थे।
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उन्होंने बताया, जब एक बार मैंने विक्रम से शादी की बात की तो उन्होंने बिना सोचे समझे ब्लेड से अपनी उंगली काट कर खून से मेरी मांग भर दी। इसके बाद मैंने इसे फिल्मी कह कर विक्रम को खूब चिढ़ाया। लेकिन उन दोनों को क्या पता था कि उनके इस सफर का अंत फिल्म की तरह नहीं होने वाला। प्रेमिका बताती हैं कि विक्रम जिंदगी भर के लिए यादें दे गया।