छोटी आंत आ गई थी बाहर, तेजी से फैल रहा था संक्रमण, निर्भया को बचाने के लिए झोंक दी थी पूरी ताकत, लेकिन...

नई दिल्ली. निर्भया केस के 6 दोषियों में से 4 दोषी विनय, अक्षय, पवन और मुकेश को आज 20 मार्च की सुबह 5.30 बजे फांसी दे दी गई। इससे पहले शेष 2 दोषियों में से एक राम सिंह ने जेल में आत्महत्या कर ली थी, जबकि एक दोषी नाबालिग होने के कारण 3 साल की सजा के बाद छोड़ दिया गया था। इस घटना को 7 साल बीत चुके हैं। जिसके बाद अब वह दिन आया है जब कुकर्मियों को उनके किए की सजा दी गई। हम आपको बताते हैं उस दौरान दिल्ली पुलिस ने 3 दिन के अंदर सभी आरोपियों को कैसे पकड़ा और कोर्ट में कैसे साबित किया कि इन 6 दोषियों ने ही निर्भया के साथ गैंगरेप किया था। 

Asianet News Hindi | Published : Mar 19, 2020 2:22 PM IST / Updated: Mar 20 2020, 08:14 AM IST

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छोटी आंत आ गई थी बाहर, तेजी से फैल रहा था संक्रमण, निर्भया को बचाने के लिए झोंक दी थी पूरी ताकत, लेकिन...
निर्भया के शरीर पर राम सिंह और अक्षय के दांत की निशान मिले थे। निशान का मिलान करने पर यह दोषियों के ही निकले। कोर्ट ने कहा कि विक्टिम के शरीर पर मिले काटने के निशान सस्पेक्ट के दांतों के स्ट्रक्चर से मिलाए गए। इसकी जांच में साबित होता है शरीर पर तीन निशान रामसिंह के काटने से और एक निशान अक्षय के काटने से बना था।
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बस की लेजर स्कैनिंग, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे एडवांस टेक्नोलॉजी से जांच की गई। जहां विनय के फिंगर प्रिंट के मिले। फिंगर प्रिंट की रिपोर्ट पर कोर्ट ने कहा कि यह साफ तौर पर घटना के वक्त विनय बस में मौजूद था।
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निर्भया केस की जिम्मेदारी डीसीपी छाया शर्मा के पास थी। वह तीन दिनों तक घर नहीं गई थीं। छाया शर्मा की टीम का पूरा ध्यान गुनाहगारों को पकड़ने पर था, क्योंकि उन्हें पता था कि थोड़ी सी भी चूक हुई तो मामला हाथ से फिसल जाएगा। अपराधियों को पकड़ने के लिए छाया शर्मा ने 100 पुलिसकर्मियों की अगल-अलग टीमें बनाई गईं। केस के बाद छाया का ट्रांसफर मिजोरम कर दिया गया।
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18 दिन में केस की चार्जशीट कोर्ट में सबमिट कर दी गई। सफदरजंग अस्पताल में निर्भया ने मजिस्ट्रेस्ट के सामने तीन बयान दिए, जिसमें उसने केस से जुड़ी अहम जानकारियां मिलीं। पुलिस को इनसे बहुत मदद मिली। 13 दिन बाद जब सिंगापुर के हॉस्पिटल में उसकी मौत हो गई तो इसे पीड़िता का आखिरी बयान माना गया। (फाइल फोटो- निर्भया का दोषी रामसिंह)
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हमें पता था कि ऐसी बस दिल्ली के बाहरी इलाके में खड़ी होगी। पूछताछ करते हुए हमने 18 घंटे के अंदर मुख्य आरोपी राम सिंह को पकड़ लिया। वह बस का ड्राइवर था। इसके बाद उसके भाई मुकेश को पकड़ा। बाकी 4 आरोपी भी जल्द ही गिरफ्त में आ गए। (फोटोः तत्कालीन डीसीपी छाया वर्मा)
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बयान के आधार पर पता चला कि जिस बस में गैंगरेप हुआ है उसके सीटों का रंग लाल और उसपर पीला कवर चढ़ा हुआ है। दिल्ली-एनसीआर में ऐसी बस को बिना नंबर के खोजना आसान नहीं था। पुलिस टीम ने दिल्ली-एनसीआर की ऐसी 300 बसों को शॉर्टलिस्ट किया। वसंतकुंज के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए। सिर्फ एक बस पर यादव नाम लिखा था। उसी के आधार पर पहचान हुई। (फाइल फोटोः निर्भया से बस में हुई दरिंदगी)
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दोषियों को सजा दिलाने के लिए यूं तो काफी सबूत और गवाह थे लेकिन पहली बार दुष्कर्म के मामले में आरोपियों, पीड़िता व घायल युवक के खून की जांच के लिए डीएनए टेस्ट कराए गए, जो अदालत में बड़े सबूत बने। आरोपियों के दांतों की जांच भी सफदरजंग अस्पताल में कराई गई, क्योंकि पीड़िता के शरीर पर कई जगह दांत से काटे जाने के निशान थे। फॉरेंसिक जांच के अलावा निर्भया के खून से सने कपड़ों और आरोपियों का मेडिको लीगल केस (एमएलसी) भी अहम सबूत बना। (फाइल फोटोः निर्भया के चारों दोषी)
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कुछ इस तरह हुई थी दरिंदगीः निर्भया से दरिंदगी करने वाले आरोपियों ने चेहरे पर दांत से काटा था। छाती और गले पर नाखून से काटने के निशान मिले थे। इतना ही नहीं पेट पर नुकीले हथियार से गंभीर चोट लगा हुआ था। वहीं, इलाज कर रहे डॉक्टरों को प्राइवेट पार्ट्स पर तेज चोट के निशान लोहे की रॉड शरीर के अंदर डाले जाने के जख्म मिले थे। जिसके कारण बच्चेदानी का कुछ हिस्सा प्रभावित हुआ था। वहीं, रॉड की वजह से छोटी आंत पूरी तरह से बाहर आ गई थी। जबकि बड़ी आंत का भी काफी हिस्सा प्रभावित हुआ था। (फाइल फोटोः निर्भया की मां आशा देवी)
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फांसी के बाद दोषियों के पास थे विकल्पः निर्भया के दोषी फांसी से बचने के लिए कानून के विकल्पों का प्रयोग कर रहे थे। विकल्प खत्म होने के बाद के बाद दोषियों की फांसी का रास्ता साफ हुआ।
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तेजी से फैल रहा था संक्रमणः पीड़िता का इलाज करने वाले चिकित्सकों में शामिल डॉ. पीके वर्मा और डॉ. राजकुमार ने बताया था कि उसके पूरे शरीर में संक्रमण फैल गया था। इसको काबू में करना बड़ी चुनौती थी। शुरुआती दौर में संक्रमण को कुछ हद तक काबू भी किया गया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया स्थिति बिगड़ती गई। (फाइल फोटोः निर्भया के चारों दोषी)
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निर्भया को रिकवर करने के लिए चिकित्सकों ने पूरी ताकत झोंक दी और पांच सर्जरी करने के बाद भी उसके हालत बिगड़ती गई। जिसके बाद निर्भया को 26 दिसंबर की रात एयर एंबुलेंस से सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल भेजा गया। जहां निर्भया जिंदगी और मौत से दो-दो हाथ कर रही थी। लेकिन अंत में मौत के आगे वह जिंदगी की जंग हार गई और 29 दिसंबर को दम तोड़ दिया। (फाइल फोटोः निर्भया के मौत के बाद राजघाट पर श्रद्धांजलि देते हुए निर्भया की मां और स्थानीय लोग)
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तीन बार मौत से बच चुके हैं दरिंदेः निर्भया के दोषी 3 बार मौत से बच चुके है। कोर्ट ने इससे पहले 3 बार डेथ वारंट जारी किया और दरिंदों के दलील के कारण तीनों बार फांसी पर रोक लगानी पड़ी। दिल्ली के पटियाला कोर्ट ने 7 जनवरी को पहली बार दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए डेथ वारंट जारी किया, जिसमें दोषियों को 21 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी पर लटकाए जाने का आदेश दिया गया। लेकिन दोषियों ने कानूनी दांव पेंच का प्रयोग करते हुए 14 जनवरी को इस आदेश पर रोक लगवा दिया। (फाइल फोटोः दोषियों को जब फांसी की सजा दी गई तो तत्कालीन डीसीपी छाया वर्मा ने कुछ इस कदर खुशी जाहिर की थी।)
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दूसरी बार जारी हुआ डेथ वारंटः पहली बार फांसी की तारीख टलने के बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने दूसरी बार डेथ वारंट जारी करते हुए 17 जनवरी को आदेश दिया कि दोषियों को 1 फरवरी की सुबह 6 बजे फांसी दी जाएगी। लेकिन दोषियों ने फिर पैंतरेबाजी करते हुए 31 जनवरी को फांसी को टलवाने में सफल हुए। जिसके बाद कोर्ट 17 फरवरी को आदेश देते हुए 3 मार्च को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया। लेकिन दोषी तीसरी बार भी फांसी से बचने में सफल हुए। (फाइल फोटोः निर्भया से इसी बस में दरिंदों ने हैवानियत की थी।)
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16 दिसंबर 2012 की वह काली रातः दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई। (फाइल फोटोः निर्भया के मौत के बाद एंबुलेंस से उसका शरीर लाया गया था।)
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