घर बसाने की मनाही, गुरू ही होता है भगवान...जानिए किन्नर समुदाय के पीछे का भयानक सच

नई दिल्ली. दुनिया में यूं तो मर्द और औरत दोनों को बराबर के अधिकार हैं। दोनों को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। पर एक तीसरा समुदाय भी है थर्ड जेंडर जो मानव अधिकारों के लिए लंबे समय से जद्दोहद में हैं। यहां तक कि कानून बनने के बाद भी ये समुदाय समाज में अपनी पहचान और सामान्य जीवन को तरसता ही रहता है। थर्ड जेंडर समुदाय के लोगों की मुश्किलें और आपबीती कई बार समाज के भयानक और असंदेवनशील चेहरे की सच्चाई सामने ले आती है। ऐसे ही यूपी और हैदराबाद के कुछ किन्नर और ट्रांस जेंडर्स ने अपनी दर्दभरी कहानी साझा की है। उन पर क्या कुछ गुजरी है ये जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी। साथ ही किन्नर समुदाय के नियम उसूलों के साथ आपको पता चलेगी किन्नर गुरू की अहमियत। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 25, 2020 1:40 PM IST / Updated: Jan 25 2020, 07:11 PM IST

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घर बसाने की मनाही,  गुरू ही होता है भगवान...जानिए किन्नर समुदाय के पीछे का भयानक सच
पहली कहानी है उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर के पास के एक गांव की रहने वाले रिजवान की। वो कभी लड़का हुआ करता था नाम था रिजवान लेकिन मन और आत्मा के भीतर से वो एक लड़की था। रिजवान अब रामकली बन चुका है। उसने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में अपनी कहानी शेयर की। रामकली ने बताया कि, उसकी सेक्सुआलिटी यानी लैंगिक पहचान तय करने के लिए गांव में एक पंचायत बुलाई गई थी। गांव के पंचों का कहना था कि गांव के लड़के उस की नक़ल करेंगे। माहौल खराब होगा और इस से गांव की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। बसी यही एक वजह देकर उसे गांव से निकाल दिया गया। पंचायत ने तय किया कि रिज़वान को दूसरे गांव भेजा जाएगा जहां वो अपनी बहन के साथ रहेगा। उसे स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी और घर के काम में मदद करनी होगी। उन दिनों रिज़वान ने ख़ुद को बहुत अकेला महसूस किया था। उसे लगा कि सब ने उसे अकेला छोड़ दिया। वो सोचता रहा कि आखिर वो क्या है? (फाइल फोटो)
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गांव की पंचायत के उस फैसले को आज कई बरस बीत गए हैं। रिज़वान अब रामकली बन चुकी हैं और अब वो बसेरा सामाजिक संस्थान नाम की स्वयंसेवी संस्था के संयोजक की जिम्मेदारी निभा रही हैं। ये संस्था ट्रांसजेंडर के अधिकारों के लिए काम करती है। रामकली ने अपनी जिंदगी कई बड़े काम किए और खुद एक गुरू बन गई हैं। रामकली का परिवार उनसे बरसों पहले बिछड़ चुका है। ये सभी एक परिवार की तरह ही साथ रहते हैं। रामकली हिजड़ा गुरू हैं। रामकली की निगहबानी में, उन के साथ हिजड़ों का एक समूह रहता है। अपने एनजीओ के साथ ही रामकली एक पार्लर भी चलाती हैं। इस में वो अपने हिजड़ा समुदाय के लोगों को रोजी-रोटी कमाने की ट्रेनिंग देती हैं। ताकि वो वेश्यावृत्ति या भीख मांगने से इतर कुछ और कर के अपना खर्च चला सकें। (रामकली की फाइल फोटो)
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पहले रामकली के साथी हिजड़ों के पास कमाई के केवल यही ज़रिए हुआ करते थे। क्योंकि उन के परिवारों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया था। इस की वजह थी उनका किन्नर होना, किन्नरों को समाज में मजाक, नफरत या अश्लीलता की नजर से देखा जाता है। जिस की वजह से समाज हिजड़ों को अपनाने से इनकार कर देता है। (फाइल फोटो)
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किन्नरों के बारे में एक बात बहुत सुनी गई है कि इनका एक गुरू होता है। गुरू के आगे सभी हिजड़े नतमस्तक रहते हैं। गुरू के इशारों पर ही सब काम होते हैं। हिजड़ा समुदाय के बीच गुरु और चेलों के संबंध बेहद अहम हैं। ये रिश्ता खून के रिश्तों से भी ऊपर बताया जाता है। अपने गुरू के आगे हिजड़े कुछ बोल कर नहीं सकते। ये ही इनके माई-बाप होते हैं। कई मायनों में हिजड़ों की ये गुरू-चेला परंपरा हिंदू परिवारों की ज्वाइंट फैमिली वाले सिस्टम जैसी ही है। हिजड़ों चेलों और बेटियों को अपने बच्चे कहा जाता है।
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अब बात आती है गुरू कौन है? तो रामकली बताती हैं कि 'हिजड़ा समुदाय के बीच, गुरू वो है जो सब को स्वीकार करे, उन्हें अपनी रोजी-रोटी कमाने का ज़रिया बताए और उन्हें रहने को पनाह दे।' वो अपने चेलों की जिम्मेदारियां भी बताती हैं। एक गुरू के कई चेले होते हैं, गुरू अपने चेले से बख्शीश यानि गुरू दक्षिणा लेते हैं। अगर किसी को हिजड़ा समुदाय का सदस्य बनना है, तो उसे गुरू को दक्षिणा देनी होगी। फिर वो अपने चेले का नया नाम रखते हैं और अपने समुदाय में उस नए सदस्य को शामिल करते हैं। सब से परिचय कराते हैं। रामकली कहती हैं कि 'हमारी माओं ने तो बस हमें जनम दे कर छोड़ दिया। असल में तो गुरू ने ही हमें पनाह दी। ऐसा समझ लो कि बिना गुरू के रहना ठीक वैसा है, जैसे आप बिना छत के मकान में रहते हों।' (फाइल फोटो)
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रामकली ने अपने बचपन की बातें भी शेयर कीं। उन्होंने बताया कि, जब छोटी सी थीं और रिजवान के नाम से जानी जाती थीं, तब वो अक्सर अपनी बहन का दुपट्टा ओढ़ कर नाचती थीं। तब रिजवान की उम्र केवल नौ बरस थी। वो लड़कियों के साथ ही खेला करता था और उन्हीं की नकल किया करता था। गांव की पंचायत के लोगों ने उसे किन्नर कह कर बुलाया था, तब उसे खुद भी नहीं पता था किन्नर कौन होते हैं? (फाइल फोटो)
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रामकली उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं, 'मैं बहुत अकेलापन महसूस करती थी। बचपन में किन्नर होने के कारण मां बाप घर परिवार गांव , दोस्त स्कूल सब छूट गया। ऐसा लगता था कि सब ने मुझे छोड़ दिया है। मुझे लगता था कि दुनिया में मैं अपनी तरह की अकेली इंसान हूं, जिसे ऐसा महसूस होता है। मेरे ज़हन में हमेशा ये सवाल उठता रहता था कि मैं ऐसी क्यूं हूं?' (फाइल फोटो)
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लेकिन वो दिन भी आया जब रामकली यानि रिजवान के परिवार ने मुसीबत के वक्त उन्हें अपना लिया। रिज़वान के पिता की मौत हो गई तो उनके भाई नौकरी के लिए दिल्ली में आ गए। उस दौरान रिजवान की मां ने उन से संपर्क किया और कहा कि वो उसे अपनाने को तैयार हैं। सत्रह बरस की उम्र में रिजवान, दिल्ली के एक मुहल्ले में आ कर रहने लगा। यहां वो बाकी हिजड़ों के संपर्क में आया और यही बस गया। दिल्ली में एक हिजड़े के दोस्त बनने पर रिजवान रामकली बन गया। इस नए दोस्त की मदद से रिज़वान ने अपने आप को उसी अंदाज़ में, यानी एक औरत की तरह रखना शुरू किया। जो उस की हमेशा से ख़्वाहिश भी रही थी। (फाइल फोटो)
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वो दोनों अक्सर साथ ही बाहर जाते थे। महिलाओं के कपड़े पहनते थे। फिर मेकअप कर के वेश्यावृत्ति के लिए जाते थे। उन्हें बस यही एक काम मालूम था। जब भी उन दोनों ने किसी नौकरी के लिए अर्ज़ी दी, तो वो ख़ारिज हो गई। फिर चाहे वो क्लर्क की नौकरी के लिए हो या फिर चपरासी की। उन्हें इसलिए नौकरी नहीं मिलती थी, क्योंकि वो अलग थे। जब रामकली 19 बरस की थीं, तो वो अपनी दोस्त के साथ भाग कर कानपुर चली गई। वहां उन्हें एक गुरु मिले, जिन्होंने उन दोनों को अपनी साये तले ले लिया। गुरू ने ही उन का नया नाम रखा-रामकली। (फाइल फोटो)
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रामकली पांच बरस तक कानपुर में रहीं। जब वो कानपुर से दिल्ली लौटीं, तो मां को बताया कि वो अपना सेक्स बदलने के लिए सर्जरी कराने की सोच रही है। रामकली की मां ने उन से गुज़ारिश की कि वो हिजड़ों के साथ न जाएं क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि उन का बेटा सड़कों पर भीख मांगता फिरे। रामकली अभी अपनी मां के साथ रहती हैं। फिर भी वो हिजड़ा संस्कृति का हिस्सा बन चुकी हैं। (फाइल फोटो)
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रामकली गुरू-चेले के रिवाज को सर्वोपरि मानती हैं। रामकली के मुताबिक़, नियमों का पालन हर हाल में होना चाहिए। वो कहती हैं कि, 'अगर हम हिजड़ा समुदाय का हिस्सा हैं, तो हम न तो शादी कर सकते हैं और ना ही हमारे ब्वॉयफ्रैंड हो सकते हैं। हिजड़ा समुदाय के यही नियम हैं। अगर आप अपना परिवार बसाना चाहते हैं, तो ऐसा कर सकते हैं लेकिन, आख़िर में तो आप को ऐसे लोगों के बीच ही रहना होता है, जो आप के जैसे हों। अपनी ख़ास पहचान के साथ इस भरी दुनिया में अकेला और अलग-थलग रहना बेहद मुश्किल होता है। जब सब लोग हमें छोड़ देते हैं, तो गुरू ही होते हैं, जो हमारा हाथ पकड़ कर हमारी मदद करते हैं।' रामकली कहती हैं कि, 'हमारा परिवार ख़ून के रिश्तों से कहीं ज्यादा बड़ी चीज है।' (फाइल फोटो)
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अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने हिजड़ा समुदाय को तीसरे लिंग के तौर पर क़ानूनी मान्यता दी थी। हालांकि किन्नर समुदाय ट्रांसजेंडर बिल का विरोध करता है क्योंकि वो हिजड़े समुदाय की संस्कृति के खिलाफ है। इस विधेयक में ऐसे लोगों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाने का प्रस्ताव था, जिन्हें हिजड़ा होने की वजह से उन के परिवारों ने अकेला छोड़ दिया। पर रामकली कहती हैं कि हिजड़ों की आमदनी की व्यवस्था यानी 'बस्ती बधाई' को क़ानूनी संरक्षण मिलना चाहिए। ये परंपरा एक अनुसाशित व्यवस्था के तहत चलती है, जहां हिजड़ा घराने होते हैं। इस सिस्टम में हिजड़ा बनने की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है। (फाइल फोटो)
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इसी बीच एक और किन्नर की कहानी सामने आई। ये है हैदराबाद की हिजड़ा नेहा (बदला हुआ नाम) जो कहती हैं कि, 'मैं पिछले कई बरस से अपने परिवार के किसी भी सदस्य से नहीं मिली हूं। मेरी ज़िंदगी नर्क की तरह थी फिर मेरी मुलाक़ात मेरे गुरू से हुई और उन की मदद की बदौलत ही मैं आज ज़िंदा हूं।' हिजड़ों के गुरू चेले सिस्टम में नियम होते हैं। चेले का ये फ़र्ज होता है कि वो अपने गुरू का ध्यान रखे। हिजड़े अपने परिवार के साए से दूर होने के लिए मजबूर किए जाते हैं ताकि वो गुरू के घराने को चलाएं। (फाइल फोटो)
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हिजड़ों के बीच गुरू-चेले के इस रिश्ते की वजह से और भी रिश्ते बनते जाते हैं। जैसे कि गुरू की बहनें, मौसी हो जाती हैं या फिर गुरू की गुरू दादी कही जाती हैं। वहीं ट्रांसजेंडर विधेयक का रामकली विरोध करती है। वो कहती है 'ये बिल मुझे खाना पीना और रहने का ठिकाना नहीं देगा लेकिन मेरी गुरू जरूर अपना लेंगी। इसलिए वो हिजड़ा समुदाय के सिस्टम और नियमों की पैरवी करती हैं। (फाइल फोटो)
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