जिंदा आदमी का दिल निकालने से लेकर बच्चों को आग में भूनने तक, पहले इन 10 तरीकों से दी जाती थी मानव बलि

नई दिल्ली। केरल में दो महिलाओं की बलि की घटना इन दिनों चर्चा में है। आज दुनियाभर में इंसानों की बलि देने पर रोक है। इसे हत्या माना जाता है और बलि देने वाले पर मर्डर का केस चलता है, लेकिन प्राचीन काल में ऐसा नहीं था। दुनिया की कई सभ्यताओं में बलि देने का रिवाज था। अधिकतर मामलों में बलि देवता को खुश करने के लिए दिया जाता था। कहीं, जिंदा आदमी का दिल निकालकर भगवान को भेंट कर दिया जाता था तो कहीं बच्चों को आग में भूनकर उन्हें मार दिया जाता था। आगे पढ़ें प्राचीन काल में बलि देने के लिए अपनाए जाने वाले 10 तरीकों के बारे में...
 

Vivek Kumar | / Updated: Oct 14 2022, 06:00 AM IST
110
जिंदा आदमी का दिल निकालने से लेकर बच्चों को आग में भूनने तक, पहले इन 10 तरीकों से दी जाती थी मानव बलि

प्राचीन मिस्र के फैरोनिक सभ्यता के शुरुआत में फिरौन की मौत होती थी तो उसके साथ कई नौकरों को भी जिंदा दफन कर दिया जाता था। माना जाता था कि ये नौकर दूसरी दुनिया में भी राजा की सेवा करेंगे। दफन करने से पहले नौकरों को ड्रग्स दिया जाता था। इसके बाद उन्हें कब्र में ले जाया जाता था। ड्रग्स के असर से वे नहीं जान पाते थे कि खुद चलकर अपने कब्र की ओर बढ़ रहे हैं।

210

पश्चिम अफ्रीका के दाहोमी (जिसे अब घाना के नाम से जाना जाता है) में हर साल एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था। उत्सव में नेताओं को उपहार दिया जाता था। इस दौरान बड़ी संख्या में मानव बलि दी जाती थी। उत्सव के दौरान दाहोम्य के मृत राजा के सम्मान में इलाके के बहुत से दासों को मार दिया जाता था। इसके साथ ही युद्धबंदियों और अपराधियों की भी बलि दी जाती थी। इतने अधिक लोगों का सिर धर से अलग किया जाता था कि समारोह स्थल पर लाशों का ढेर लग जाता था।
 

310

ठग भारत में एक कट्टर धार्मिक समूह थे। वे कर्मकांडों के लिए बलि देने के चलते कुख्यात थे। वे यात्रा कर रहे लोगों को निशाना बनाते थे। पहले यात्रियों का विश्वास जीतते थे फिर रूमाल या फंदे से दम घोंटकर उनकी हत्या कर देते थे। हत्या के बाद वे यात्री की संपत्ति लूट लेते थे और शव को दफन कर देते थे। 
 

410

माया सभ्यता में बलि देने के लिए कई खौफनाक तरीके अपनाए जाते थे। उनमें से एक था जिंदा व्यक्ति को चूना पत्थर के गहरे गड्ढे में धकेल देना। माया सभ्यता के लोगों को विश्वास था कि गहरे गड्ढे में दैवीय शक्ति है। इस तरह के गड्ढे को सीनेट कहा जाता था। लोगों का मानना था कि सीनेट धरती के ऊपर की दुनिया को पाताल से जोड़ती है। सीनेट में फेंके जाने से सभी लोगों की मौत नहीं होती थी। कई बार उनके हाथ पैर टूट जाते और वे जिंदा बच जाते थे। गड्ढे से नहीं निकल पाने के चलते वे तड़प-तड़पकर मर जाते थे।
 

510

प्रारंभिक चीनी सभ्यताओं में आमतौर पर पूर्वजों और देवताओं के लिए मानव बलि दी जाती थी। इसके साथ ही महत्वपूर्ण इमारत या संरचना के निर्माण के दौरान उसे मजबूती देने के लिए भी बलि दी जाती थी। इसके सबसे प्रसिद्ध उदाहरणों में से एक क्राउन प्रिंस त्सई की बलि था। उसने युद्ध कर राज्य को बर्बाद कर दिया था। युद्ध के दौरान उसे पकड़ा गया था। क्राउन प्रिंस की बलि एक बांध को मजबूत करने के लिए दी गई थी।
 

610

रोमन साम्राज्य में मानव बलि दी जाती थी। मलिक की मौत के बाद उसके दासों और आश्रितों को मृतक के शव के साथ जिंदा जला दिया जाता था। गॉड एसुस के लिए बलि देने के लिए इंसान को फांसी पर लटकाया जाता था। वहीं, गॉड ट्यूटेट्स के लिए बलि देने पर इंसान की हत्या पानी में डुबोकर की जाती थी। ड्र्यूड्स द्वारा प्रचलित बलि का सबसे प्रसिद्ध तरीका विकर मैन पद्धति था। इसमें आदमी के आकार का बड़ा पुतला बनाया जाता था। उसके अंदर जीवित लोगों को डाला जाता था और उसे आग लगा दी जाती थी। पुतले के अंदर रखे गए सभी लोगों की जलकर मौत हो जाती थी।
 

710

मध्य मेक्सिको में 1300 से 1521 ईस्वी के बीच एज्टेक नाम की मेसोअमेरिकन संस्कृति फली-फूली थी। एज्टेक कई तरह के बलि के अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध हैं। इन अनुष्ठानों में एक सूर्य देवता हुइट्जिलोपोचटली के लिए इंसान की बलि देना है। इसमें जीवित व्यक्ति के शरीर से दिल निकाल लिया जाता था। गॉड Tlaloc के लिए रो रहे बच्चे की बलि दी जाती थी। गॉड Xipe Totec के लिए पुजारी इंसान की चमड़ी निकालता था। इसके बाद उसे एक पोल से बांधकर तीरों से छलनी कर दिया जाता था। पृथ्वी माता टेटोइनन को महिलाओं की बलि दी जाती थी।
 

810

फिजी में विधवा होने पर महिला की गला घोंटकर हत्या कर दी जाती थी। इसके बाद पत्नी को पति के साथ दफना दिया जाता था। महिला को उसके भाई के हाथों ही मारा जाता था। अगर भाई अपने ही हाथों बहन का गला घोंटने को तैयार नहीं हो तो उसे कम से कम घटना के दौरान वहां मौजूद रहना होता था। 
 

910

जापान में सेपुकु के नाम से जाना जाने वाला एक अनुष्ठान लंबे समय से प्रचलित था। इसे समुराई योद्धा का मार्ग माना जाता था। यह एक तरह से आत्महत्या है। इसमें योद्धा को खुद को काटना पड़ता था। लड़ाई में हार या अपने मालिक की रक्षा नहीं कर पाने जैसे सम्मान की हानि पर समुराई योद्धा अपनी जान दे देते थे। इसके लिए सेपुकु नाम के अनुष्ठान का आयोजन होता था। इसमें समुराई को नहलाया जाता है। उसे सफेद वस्त्रों में तैयार किया जाता है और उसका पसंदीदा भोजन खिलाया जाता था। इसके बाद चाकू या छोटी तलवार उसके सामने प्लेट पर रख दी जाती थी। पहले वह खुद को काटता था। इसके बाद उसके द्वारा चुना गया दूसरा व्यक्ति उसकी गर्दन काट देता था। 
 

1010

फोनीशियन और कार्थागिनी सभ्यता में धार्मिक वजहों से बच्चों की बलि दी जाती थी। फोनीशियनों के बलि क्षेत्रों को टोफेथ (भूनने की जगह) के रूप में जाना जाता था। टोफेथ एक गड्ढे की तरह होता था जिसके अंदर के हिस्से में आग जलाया जाता था। गड्ढे के किनारे पर क्रोनस की कांस्य प्रतिमा स्थापित की जाती थी। उसकी हथेलियां ऊपर और जमीन की ओर झुकी हुई होती थी। बच्चे को हथेलियों पर रखे जाने पर वह गड्ढे में लुढ़क जाता था और आग में जलकर उसकी मौत हो जाती थी।
 

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos