1 साल की उम्र में ही शरीर का आधा हिस्सा हुआ बेकार, व्हील चेयर पर बैठकर ही फतह की पैरालंपिक की जंग

स्पोर्ट्स डेस्क : कहते है ना 'लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।' ये लाइन भारतीय पैरा एथलीट भाविनाबेन पटेल (Bhavina Patel) पर एकदम सटीक बैठती है, जो अपने जिंदगी में 1 साल की उम्र में आए तूफान के बाद भी लगातार कोशिश करती रहीं और आज इस मुकाम पर पहुंच गई है, कि टोक्यो पैरालंपिक 2020 (Tokyo Paralympics 2020) में उन्होंने सिल्वर मेडल अपने नाम किया है। भले ही वो फाइनल मैच में चीन की झोउ यिंग (Zhou Ying) से 3-0 से हार गई हो, लेकिन उन्होंने भारत के लिए पहला सिल्वर मेडल जीता है। आइए आज आपको बताते हैं, इस खिलाड़ी के बारे में...

Asianet News Hindi | Published : Aug 29, 2021 3:51 AM IST / Updated: Aug 29 2021, 10:24 AM IST

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1 साल की उम्र में ही शरीर का आधा हिस्सा हुआ बेकार, व्हील चेयर पर बैठकर ही फतह की पैरालंपिक की जंग

गुजरात के मेहसाणा जिले की रहने वाली 34 वर्षीय भाविनाबेन पटेल व्हीलचेयर पर ही टेबल टेनिस खेलती हैं। वह 4 की कैटेगिरी में आती हैं। इस कैटेगिरी के खिलाड़ियों के पास बैठने का उचित संतुलन होता है और उनके हाथ पूरी तरह से काम करते हैं। हालांकि, उनकी जिंदगी में यह हादसा उस वक्त हुआ जब वह 1 साल की थी। इसके बाद उनकी पूरी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही गुजरी।

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दरअसल, 1 साल की उम्र में जब भाविना चलना सीख रही थीं, तब वह अजीब तरह से नीचे गिर गई और इस घटना के बाद उनके कमर से नीचे का हिस्सा बेकार हो गया। हालांकि ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना भाविना के रास्ते का कांटे नहीं बन पाई और उन्होंने इसे अपनी कमोजरी नहीं बल्कि मजबूती समझ पैरा खेलों में आगे बढ़ने का फैसला किया। 

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12 साल की उम्र में जब वह कंप्यूटर सीखने के लिए अहमदाबाद के वस्त्रापुर में ब्लाइंड पीपुल्स एसोसिएशन गई, तो यहां उनकी मुलाकात टेबल टेनिस खेलने वाले दिव्यांग बच्चों से हुई और उन्होंने उनके प्रयासों को देखकर तुरंत ही इस खेल में आने का फैसला कर लिया।

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भाविना के इस फैसले में उनके घरवालों ने भी उनका पूरा साथ दिया। उनके पिता जो मेहसाना के वडनगर तहसील के गांव में कटलरी की दुकान चलाते थे, उन्होंने बेटी को पैरालंपिक की ट्रेनिंग दिलाने के लिए दुकान बंद करने का फैसला किया।

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बेटी ने भी पिता की कुर्बानी की लाज रखी और पहले ही साल में एक प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। उन्होंने खेल के प्रति अपने लगाव को पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया और संस्कृत में ग्रेजुएशन भी किया है। 

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भाविना ने साल 2011 में थाईलैंड में पीटीआई टेबल टेनिस में सिल्वर मेडल जीता था। इसके बाद साल 2017 में चीन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय टेबल टेनिस महासंघ एशियाई में पैरा टेबल टेनिस में उन्होंने कांस्य पदक भी जीता था।

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टोक्यो पैरालंपिक में आने से पहले उन्होंने इसके लिए जी तोड़ मेहनत की। कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान प्रैक्टिस करने के लिए उन्होंने एक टेबल टेनिस-रोबोट की भी मदद ली। भाविना ने 50 हजार रुपये की कीमत का एक सेकेंड हैंड रोबोट खरीदा, जिसने लॉकडाउन के दौरान घर पर रहने के दौरान घंटों तक अभ्यास करने में उनकी मदद की।

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भाविना की इस सफलता के पीछे उनके कोच ललन दोशी (Lalan Doshi) का भी बड़ा हाथ रहा है, जो 2008 से उन्हें ट्रेनिंग दे रहे हैं। उन्होंने भाविना के बारे में कहा कि, 'पिछले कुछ सालों में हमने उसकी सजगता, मानसिक समन्वय, फिजियो, भोजन की आदत, बॉडी क्लाक और अन्य हर पहलू पर काम किया है, जिसका नतीजा आप आज देख रहे हैं।'

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बता दें कि, भाविना ने रविवार को टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है। उन्हें गोल्ड मुकाबले में चीन की झोउ यिंग ने 3-0 से हारया। लेकिन इससे पहले भावना ने शनिवार को चीन की झांग मियाओ को 3-2 से हराकर अपना सिल्वर मेडल पक्का किया था।

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उनकी जीत के बाद उनके घर गुजरात के मेहसाणा में खुशी का माहौल है। उनके पिता हसमुखभाई पटेल ने कहा कि 'उसने हमें गौरवान्वित किया है, हम उसके लौटने पर उसका भव्य स्वागत करेंगे।'
 

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