एक बड़े प्रोडक्शन हाउस में आकर काम करने लगा। वहां पर कहानी, स्क्रीन प्ले, डायलॉग कॉपी, प्रॉप कॉस्टयूम और न जानें क्या करने, देखने, समझने का मौका मिला। उसके बाद मेरा मन वहां से बेचैन होने लगा। वहां पर बस तीन ही जगह आंगन, किचन और बेडरूम में ज्यादातर शूट होता था। मैं तो मुंबई फिल्म निर्देशक बनने का सपना लेकर आया था और एक दिन वो भी छोड़कर अपने एक गीतकार मित्र के साथ उसके रूम में रहने लगा।