हटके डेस्क: भारत ही नहीं, दुनियाभर में कई तरह के आश्रम हैं। इनमें अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम शामिल हैं। जिन बच्चों को घर नहीं मिल पाता या जो बुजर्ग अपने बेटों द्वारा निकाल दिए जाते हैं उन्हें इन आश्रम में पनाह दी जाती है। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि भारत में एक ऐसा आश्रम है जहां बीवियों द्वारा सताए गए पतियों को जगह दी जाती है। ऐसे मर्द जो अपनी पत्नी के अत्याचार के कारण अपने घर और समाज से दूर हो गए हैं, वो यहां आकर रहते हैं। लेकिन यहां एंट्री के लिए इन्हें कुछ क्राइटेरिया को क्रॉस करना पड़ता है। अगर इन चीजों को ये क्वालीफाई कर लेते हैं तब इन्हें इस आश्रम के अंदर रहने की इजाजत मिलती है।
पत्नी पीड़ित परुष आश्रम किसी किताब में बने आश्रम की तरफ इशारा नहीं करती। ये सच में मौजूद है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में इस आश्रम को खोला गया है।
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इस आश्रम से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर मुंबई-शिरडी हाइवे है। इसे ख़ास तौर पर उन लोगों के लिए खोला गया है, जो पत्नी द्वारा सताए जाते हैं।
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इस आश्रम की स्थापना भारत फुलारे ने की थी। वो खुद पत्नी द्वारा सताए हुए हैं। उनकी पत्नी ने उनपर चार केस दर्ज करवाए थे। इसके कारण भारत का जीना काफी मुश्किल हो गया था।
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भारत का कोई भी रिश्तेदार उससे बात नहीं करता और उससे मिलने से कतराता था। केस की वजह से कई महीने तक वो अपने घर भी नहीं जा पाया। कई बार तो उसे आत्महत्या तक करने का मन होता था।
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इसी दौरान उसकी मुलाकात दो तीन और लोगों से हुई जो खुद भी पत्नी द्वारा सताए गए थे। इन सभी लोगों ने आपस में अपना दुखड़ा रोया और फिर तय किया कि वो एक-दूसरे की मदद करेंगे।
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उन्होंने मदद से कानूनी सलाह ली और पत्नियों के अत्याचार से बाहर आ गए। इसके बाद उन्होंने बाकी ऐसे लोगों की मदद करने का फैसला किया, जो पत्नियों द्वारा सताए गए हैं।
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इसके लिए 19 नवंबर 2016 को पुरुष अधिकार दिवस पर इस आश्रम की नींव रखी गई। इस आश्रम में बीवियों द्वारा सताए लोग ही रह सकते हैं। लेकिन उसके लिए कुछ नियमों को पूरा करना जरुरी है।
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इसमें सबसे पहली शर्त है शख्स पर कम से कम 40 केस दर्ज होना। जी हां, इस आश्रम में वही रह सकता है जिसकी पत्नी ने उसपर 40 से ज्यादा केस दर्ज किये हो।
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या फिर पत्नी के केस दर्ज करने और गुजारा भत्ता ना दे पाने के कारण उसे जेल जाना पड़ा हो। साथ ही केस की वजह से नौकरी जाने वाले लोग भी इस आश्रम में रह सकते हैं।
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इस आश्रम में रहने वाले लोग अपनी क्षमता के अनुसार काम करते हैं और पैसे कमाकर फंड में जमा करते हैं। इसी से आश्रम का खर्च निकलता है। कई लोग यहां सालों से रह रहे हैं। उनके लिए तो अब ये परिवार जैसा हो गया है।