
Maheshwari Saree history: मध्य प्रदेश की शान माहेश्वरी साड़ियों के बारे में आपने जरूर सुना होगा। साड़ियों को पहनकर कोई भी महिला किसी महारानी से कम नहीं लगती है। आपको बताते चलें कि माहेश्वरी साड़ी का इतिहास मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के तट में बसा महेश्वर शहर से जुड़ा हुआ है। 5000 साल पुरानी विरासत को लिए चली आ रही माहेश्वरी साड़ी महल और अतीत की विरासत को समेटी चली आ रही है। नर्मदा के तट में लकड़ी की खटखट सुनाई देती है, यह आवाज किसी और की नहीं बल्कि माहेश्वरी साड़ी बनाने में लगे बुनकरों की है। खूबसूरत माहेश्वरी साड़ियों को बनाने के लिए कारीगर दिन रात काम करते हैं तब जाकर अप्रतीम साड़ी तैयार होती है। आईए जानते हैं माहेश्वरी साड़ी के इतिहास के बारे में।
महेश्वर 18वीं सदी में अपने खूबसूरत वस्त्रों के लिए पहचाने जाने वाला स्थान है। प्रसिद्ध मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने सूरत और दक्षिण भारत से कुशल बुनकरो को अपनी राजधानी में बुनाई के लिए आमंत्रित किया था। उनका सपना था कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया जा सके और ऐसा कपड़ा बनाया जाए जो दरबार की शान हो और नर्मदा नदी की शांति को प्रदर्शित करता हो। इस तरीके से माहेश्वरी साड़ी का जन्म हुआ। माहेश्वरी साड़ी (Maheshwari Saree) में हल्की डिजाइन के साथ बोल्ड स्टाइल भी दिखाई देती है। साड़ी में मूल रूप से कपास (cotton) के साथ रेशम (silk) से बुनाई की जाती है जिसमें मंदिरों, घाटों और पवित्र नदी की लहरों की झलक दिखती है।
आज भी माहेश्वरी साड़ी में लहरिया, चटाई और फूलों के पैटर्न की झलक दिखाई देती है। माहेश्वरी साड़ी को जो चीज अलग बनाती है वो है उनका हल्का फैब्रिक जो आमतौर पर कपास और रेशम के धागों से बुना जाता है। साथ ही जरी से बने खूबसूरत साड़ी के बॉर्डर में बने नीले मोर, हरे तोते, गहरे मेरून और सुनहरा जरी वर्क होता है।
माहेश्वरी साड़ी का प्रोडक्शन करने वाले अब कई पावरलूम हैं लेकिन ऑथेंटिक हथकरघा बुनकरों को खूब बढ़ावा दिया जाता है। साड़ी बनाने के लिए कपास ज्यातर कोयंबटूर से, जरी सूरत से और सिल्क बेंगलुरु से मंगाया जाता है। इस प्रकार से माहेश्वरी साड़ियां अपनी खूबसूरती से विरासत को आगे बढ़ा रही हैं।