
Princess Syndrome:हम अक्सर प्यार से कहते हैं , “पापा की परी”। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यही सोच जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो वह एक मानसिक अवस्था बन सकती है जिसे आज की भाषा में "प्रिंसेस सिंड्रोम" कहते हैं। यह सिंड्रोम आपकी लाडली के लिए एक खतरनाक रूप ले सकता है। यह उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। रिश्तों और करियर को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
'प्रिंसेस सिंड्रोम' ऐसे व्यक्तियों को दिखाता है ख़ासतौर पर महिलाओं को जो खुद को विशेष समझती हैं। दूसरों से खास ट्रीटमेंट की उम्मीद करती हैं और बिना किसी प्रयास के ही सब कुछ पा लेना चाहती हैं। यह आदत ज्यादातर बचपन में अत्यधिक लाड़-प्यार, सोशल मीडिया पर आदर्श राजकुमारी वाली छवि और जिम्मेदारियों से दूर रहने की वजह से बनती है।
1. एडल्टिंग की चुनौती: इस सिंड्रोम के शिकार लोग खुद फैसले लेने में असमर्थ होते हैं। आलोचना से डरते हैं। इमोशनल समझदारी की कमी होती है। हर समय दूसरों से मदद की उम्मीद रखना
2. रिश्तों पर असर: प्रिसेंस सिंड्रोम के शिकार लोग के दोस्ती और रिश्ते एकतरफा हो जाता हैं। पार्टनर से हर चीज की उम्मीद रखने लगते हैं। खुद कुछ भी नहीं देते हैं। बात-बात पर विक्टिम कार्ड खेलना की मुझे कुछ नहीं आता है, तुम ही कर लो। दोस्ती या रिश्ते एकतरफा हो जाते हैं
3. वर्कप्लेस पर प्रभाव: टीम वर्क में ऐसे लोगों को दिक्कत आती है। बॉस या सहकर्मियों से विशेष ट्रीटमेंट की उम्मीद करने लगते हैं। आलोचना होने या हल्की सी डांट पड़ने पर काम छोड़ देते हैं।
कैसे तोड़ें इस आदत का चक्र?
खुद को पहचानें: अपने अंदर मौजूद "मैं सबकी खास हूं" वाली सोच को पहचानना पहला कदम है।
आभार जताना सीखें: छोटी-छोटी चीज़ों की कद्र करना आपको और जमीनी बनना सीखें।
जिम्मेदारी उठाएं: पैसे, करियर और जीवन के फैसलों में भागीदारी लें।
आलोचना स्वीकारें: फीडबैक को नकारात्मक न मानें, बल्कि खुद को बेहतर बनाने का मौका समझें।
दूसरों की मदद करें: रिश्ते में सिर्फ लेना ही नहीं होता है देना भी जरूरी होता है। इसलिए आप देने की प्रवृत्ति अपने अंदर विकसित करें। पार्टनर के साथ मिलकर काम करें।
माता-पिता को भी चाहिए कि अपने बच्चे को भले ही राजकुमारी या राजकुमार की ट्रिट करते हो, लेकिन उसे उसकी जिम्मेदारी उठाने की भी सीख दें। बचपन से ही उन्हें बताएं कि कैसे रिश्ते को संभालते हैं।