
लाइफस्टाइल डेस्क. संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने अनुमान लगाया है कि अगले 60 सालों में धरती की मिट्टी का विनाश हो जाएगा। उसने कहा कि अफ्रीका में जमीन के बंजर होना, रेगिस्तान इलाकों का बढ़ना नहीं रोका गया तो दो तिहाई खेती योग्य जमीन को खो देंगे। साल 20230 तक ये विनाशकारी परिणाम सामने आ जाएंगे। मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए ही 5 दिसंबर को वर्ल्ड सॉइल डे (World Soil Day 2022) मनाया जाता है।
मिट्टी की गुणवत्ता हर साल हो रही है कम
प्रदूषण और कीटनाशकों के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी की क्वालिटी हर साल कम होती जा रही है। जंगलों की कटाई से मिट्टी बंजर होता जा रहा है। जो एक गंभीर समस्या है। मिट्टी का खराब होना सीधे हमारे जीवन पर असर डालेगा। खराब मिट्टी की वजह से अनाजों का प्रोडक्शन नहीं होगा। मिट्टी की गुणवत्ता खराब होगी तो पेड़ पौधे नहीं उगेंगे। तो ऐसे में ना तो हमें ऑक्सीजन मिल पाएगा और ना ही भोजन। इसलिए मिट्टी की गिरती क्वालिटी को लेकर पूरी दुनिया चिंताग्रस्त है।
विश्व मृदा दिवस का इतिहास
इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉइल साइंस (IUSS) ने साल 2002 में प्रस्ताव रखा कि 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाया जाए। ताकि लोगों को मिट्टी की गुणवत्ता को लेकर लोगों को जागरूक किया जा सके। इसके बाद जून 2013 में फूड और एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (FAO) ने भी इसे मनाने का आग्रह किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 68वें कॉन्फ्रेंस में इस प्रस्ताव को रखा गया। जिसके बाद असेंबली ने 5 दिसंबर 2014 को पहले ऑफिशियल विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। जिसके बाद से हर साल इस दिन को मनाया जाता है। कई तरह के इवेंट का आयोजन करके लोगों में मिट्टी के कंडीशन को लेकर जागरुकता फैलाई जाती है।
विश्व मृदा दिवस 2022 की थीम
हर साल वर्ल्ड सॉइल्स डे पर थीम रखा जाता है। इस साल का थीम है “सॉइल्स: वेयर फूड बिगिन्स”। इसका मकसद सॉइल मैनेजमेंट की बढ़ती चुनौतियों का समाधान खोजना, लोगों को जागरूक करना है। हेल्दी इकोसिस्टम और मनुष्य के लिए स्वस्थ्य वातावरण तैयार करना है। बता दें कि सॉइल डिग्रडेशन हमारे एकोसिस्टम के लिए एक खतरा है और इसे ग्लोबल लेवल पर एक बड़ा खतरा माना जा रहा है।
FAO के मुताबि मिट्टी के खराब होने से दुनिया भर में 74 प्रतिशत गरीबों पर सीधा असर पड़ता है। प्रोडक्शन कम हो जाते हैं। 320 करोड़ लोगों पर यह सीधा असर डालता है। मिट्टी के खराब होने से इसका असर फसलों पर, ऑक्सीजन पर और जीव-जंतुओं की प्रजातियों का खत्म का खतरा शामिल हैं।
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