इमरजेंसी: सत्ता में जवाब देही के बिना रहना पसंद करते थे संजय गांधी, जबरन नसबंदी पड़ी थी महंगी

1970 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस पार्टी में इंदिरा गांधी का वर्चस्व था। हालांकि, कुछ सालों बाद उनके बेटे संजय गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया। राजनीति में उनकी पहली झलक 'मारुति परियोजना' में दिखी थी।

नई दिल्ली. 1970 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस पार्टी में इंदिरा गांधी का वर्चस्व था। हालांकि, कुछ सालों बाद उनके बेटे संजय गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया। राजनीति में उनकी पहली झलक 'मारुति परियोजना' में दिखी थी। इसमें उन्होंने अपनी राजनीतिक स्थिति का इस्तेमाल करते हुए सिस्टम का फायदा उठाया, जमीन हड़पी और अपने ही रिश्तेदारों को फर्जी कंपनी का प्रबंध निदेशक नियुक्त किया।
 
इंदिरा गांधी के फैसलों पर संजय गांधी का प्रभाव काफी रहता था, खासकर 1970 से इमरजेंसी तक। यह जानते हुए भी कि वे इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी होंगे, पीएम के वफादारों ने उन्हें पेश किया। वास्तव में, इंदिरा पर उनका इतना प्रभाव था कि उन्होंने सरकारी फैसले लेने शुरू कर दिए थे और कुछ मामलों में, यहां तक ​​कि इंदिरा गांधी को भी दरकिनार कर दिया था। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि संजय को सत्ता में (जवाबदेही के बिना) रहना पसंद था। कुलदीप नायर के साथ एक इंटरव्यू में, संजय ने स्वीकार किया कि उन्होंने अनिश्चित काल के लिए आपातकाल लगाने, लोकतांत्रिक संस्थानों से छुटकारा और इंदिरा का शासन बनाए रखने की योजना बनाई थी। 



जब दो खेमों में बंटी कांग्रेस
संजय के बढ़ते वर्चस्व ने आंतरिक तौर पर दो पावर सेंटर बना दिए थे। इन दो खेमों में एक तरफ संजय के समर्थकों और दूसरी तरफ इंदिरा के वफादार थे। इसी के चलते संजय गांधी ने अपने वफादारों के साथ यूथ कांग्रेस बनाई। यह आपातकाल के दौरान 'राउडी कांग्रेस' के तौर पर उभरी। 

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मुख्य तौर पर संजय की राजनीतिक अपरिपक्वता का ही कारण था कि वे बिना जवाबदेही के सत्ता का स्वाद चखना चाहते थे। वे एक युवा कांग्रेस टीम चाहते थे, जो इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस का मुकाबला कर सके।




बिना देर किए संजय गांधी ने युवा कांग्रेस यूथ कांग्रेस के लिए पूरे देश में अभियान चलाया। इसमें कोई भी व्यक्ति यूथ कांग्रेस के साथ जुड़ सकता था। इसके लिए किसी पात्रता की जरूरत नहीं थी।

अगले कुछ महीनों में, इसकी सदस्य संख्या 60 लाख को हो गई। इसमें गुंडों और गैंगस्टरों द्वारा घुसपैठ की गई। ताकि वे इसकी आड़ में कानून को अपने हाथ में ले सकें। 




कांग्रेस के 20 सूत्री कार्यक्रम के बदले अपना 5 सूत्री कार्यक्रम जारी किया 
यूथ कांग्रेस और केंद्रीय कांग्रेस के बीच तल्खी इतनी ज्यादा हो गई थी कि संजय ने कांग्रेस पार्टी के 20-सूत्रीय कार्यक्रम के बदले अपना 5 सूत्री कार्यक्रम जारी कर दिया। इनमें 5 सूत्र थे...

- वयस्क शिक्षा
- दहेज प्रथा को समाप्त करना
- जाति व्यवस्था का उन्मूलन
- पेड़ लगाना
- नसबंदी

फोकस सिर्फ नसबंदी पर
हालांकि यह कागज पर अच्छा लग रहा था, लेकिन वास्तव में जो हुआ, वो खतरनाक था। यूथ कांग्रेस ने पहले 4 बिंदुओं को अनदेखा कर केवल 5वें यानी नसबंदी पर पूरा ध्यान केंद्रित किया। एक स्वैच्छिक नसबंदी कार्यक्रम खतरनाख प्रक्रिया में बदल गया। इसमें हर सरकारी कर्मचारी को एक निश्चित संख्या में ऐसे पुरुषों को लाना होता था, जिनके दो बच्चे होते थे। अगर जो अधिकारी अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाता, वह प्रमोशन के लिए पात्र नहीं रहता था।  

कुछ मामलों में, सरकारी कर्मचारियों ने प्रमोशन के चलते टारगेट से अधिक लोगों की नसबंदी करा दी। अधिकारी संजय की नजर में अच्छा बने रहने के लिए अधिक से अधिक नसबंदी कराने के लिए बेताब थे। लेकिन यह कार्यक्रम कांग्रेस के लिए नासूर बन गया। यहां तक कि मुस्लिमों ने इस कार्यक्रम का जारेदार विरोध किया। यहां तक की दंगे और गोलीबारी भी हुई। इससे कांग्रेस का वोट बैंक भी प्रभावित हुआ। 

ऐसी ही खबरें जब पूरे देश में फैलीं तो लोगों को स्वास्थ्य शिविरों की वास्तविक स्थिति के बारे में पता चला। स्थिति ये हो गई थी, जैसी ही लोग किसी मेडिकल वैन या एंबुलेंस को देखकर भागने लगते थे।




दिल्ली से झुग्गियों की सफाई
नसबंदी के अलावा, संजय ने एक और कार्यक्रम चलाया। दिल्ली से झुग्गियों की सफाई, जिसमें सैकड़ों झुग्गियों को बेरहमी से तोड़ दिया गया। इतना ही नहीं झुग्गी में रहने वाले लोगों के लिए पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं की गई। इतना ही नहीं, जब लोगों ने विरोध किया तो उन्हें पुलिस ने गोली मार दी। उनके घरों पर गोलियां बरसाईं गईं। 

सबसे चर्चित मामला तुर्कमान गेट झुग्गी का था, यहां कई प्रदर्शनकारियों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया था, लेकिन सेंसरशिप के कारण, यह भारतीय समाचार में नहीं छप सका। 

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