इमरजेंसी के अगले दिन 26 जून 1975 को अरुण जेटली ने कुछ लोगों के साथ इकट्ठा होकर इंदिरा गांधी का पुतला फूंक दिया। वे अपने शब्दों में इमरजेंसी के पहले सत्याग्रही थे। हालांकि, इसके तुंरत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वे 1975 से 1977 के बीच 19 महीने जेल में रहे।
नई दिल्ली. इमरजेंसी के अगले दिन 26 जून 1975 को अरुण जेटली ने कुछ लोगों के साथ इकट्ठा होकर इंदिरा गांधी का पुतला फूंक दिया। वे अपने शब्दों में इमरजेंसी के पहले सत्याग्रही थे। हालांकि, इसके तुंरत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वे 1975 से 1977 के बीच 19 महीने जेल में रहे।
पत्रकार और लेखक सोनिया सिंह की किताब 'डिजाइनिंग इंडिया: थ्रो माई आई' के मुताबिक, जेटली ने बताया था, ''जब 25 जून की आधी रात को इमरजेंसी का ऐलान हुआ, पुलिस मुझे गिरफ्तार करने आई। लेकिन मैं वहां से भाग निकला और अपने दोस्त के घर पहुंच गया। अगली सुबह मैंने कुछ लोगों को इकट्ठा किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पुतला फूंक दिया और गिरफ्तार हो गया। मैंने गिरफ्तारी दी। यह इस तरह का देश में पहला विरोध था, इसलिए तकनीकी रूप से मैं इमरजेंसी के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया। मुझे पहले तीन महीने अंबाला की जेल में रखा गया था।
सॉफ्ट टिश्यू कैंसर से पीड़ित थे जेटली
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अरुण जेटली का शनिवार दोपहर निधन हो गया। वे 66 साल के थे। वे 9 अगस्त से एम्स में भर्ती थे। जेटली का सॉफ्ट टिश्यू कैंसर का इलाज चल रहा था। जेटली ने एबीवीपी से राजनीति करियर की शुरुआत की थी। वे 1970 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए थे।
'अटल-आडवाणी की सेल में थे जेटली'
वकील से राजनीतिक बने जेटली ने बताया, उन्होंने जेल में पढ़ने और लिखने की आदत डाली। उनके दोस्त और परिजन उन्हें किताबें भेजते। इसके अलावा वे जेल लाइब्रेरी से भी किताबें निकालते। उन्होंने जेल में संविधान सभा की पूरी बहस पढ़ी। जेटली जेल में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और आरएसएस विचारक नानाजी देशमुख जैसे नेताओं के साथ सेल में थे। उन्होंने बताया कि वे सुबह और शाम जेल में बैडमिंटन भी खेलते थे।