भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित अटल बिहारी वाजपेयी की आज 95 वीं जयंती है। राजनीति के आजातशत्रु जिन्होंने 1950 में लखनऊ सीट से पहला चुनाव लड़कर राजनीति में कदम रखा। स्नातक में गोल्ड मेडिलिस्ट अटल जी से जुड़ी खास बातें।
नई दिल्ली. भारतीय राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री पंडित अटल बिहारी वाजपेयी की आज यानी 25 दिसंबर को 95 वीं जयंती है। उनसे जुड़ी यह पांच बाते जाननी जरूरी है जो उनके अटल छवि के बारे में बताती है।
पिता के साथ ही कॉलेज में लिया प्रवेश
वाजपेयी जी ने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर में बीए के दौरान मध्य प्रदेश में शीर्ष स्थान हासिल करने के बाद स्वर्ण पदक अपने नाम किया। हालांकि इस कॉलेज को अब महारानी लक्ष्मी बाई गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस के रूप में जाना जाता है। इसके साथ ही उन्हें राज्य सरकार के साथ काम करने के लिए मानदेय देने की पेशकश की गई। जिसे उन्होंने मना कर दिया और आगे की पढ़ाई करने डीएवी कॉलेज कानपुर चले गए। इन सब के बीच खास बात यह है कि वाजपेयी जी के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने भी उसी कॉलेज में दाखिला लिया। जिसके बाद पिता और पुत्र सहपाठी थे और एक ही कमरे में रहते थे। इस दौरान दोनों बारी-बारी से कॉलेज जाते थे। जिस दिन पिता जी कॉलेज जाते उस दिन अटल नहीं जाते और जिस दिन अटल जी जाते उस दिन उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी नहीं जाते।
भारत छोड़ो आंदोलन में 27 दिन तक रहे जेल में
आजादी की लड़ाई में भागीदारी रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया था। अपने बड़े भाई प्रेम के साथ, 16 वर्षीय वाजपेयी 27 अगस्त, 1942 को बटेश्वर के अपने गांव में भारत छोड़ो आंदोलन की एक रैली में भाग लेते हुए सलाखों के पीछे चले गए। उन्होंने 24 दिन जेल में बिताए। उस समय, वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गए थे। इसके बाद उन्होंने लिखित में दिया कि वे उस कार्यक्रम के हिस्सेदार नहीं थे। जिसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। उन्होंने अपने वचन पत्र में लिखा था कि वह एक शांतिपूर्ण जुलूस का हिस्सा थे और इस दौरान कोई नुकसान नहीं हुआ।
पहला और अंतिम चुनाव लखनऊ से लड़ा
आजादी के बाद से 12 वीं लोकसभा तक 10 बार सांसद रहने वावे वाजपेयी जी ने 1955 में संसदीय क्षेत्र लखनऊ से उपचुनाव लड़कर अपने चुनावी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। यह चुनाव उन्होंने तब लड़ा जब तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने इस्तीफा दे दिया। इस चुनाव में वह तीसरे स्थान पर आए। उसके बाद उन्होंने 50 साल बाद वर्ष 2004 में, उन्होंने अपना आखिरी चुनाव लखनऊ से ही लड़ा। जो उनके शानदार राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव था।
भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह
वाजपेयी जी के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने एक बार संसद के भाषण के दौरान उन्हें "भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह" कहा था। मार्च 2008 में, भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर एक बहस के दौरान, डॉ सिंह ने वाजपेयी का समर्थन मांगा। सिंह ने राज्यसभा में कहा, "भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह अटल बिहारी वाजपेयी को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए और राष्ट्रहित के मुद्दों पर संकीर्ण राजनीति को हावी नहीं होने देना चाहिए।" राजनीतिक विश्लेषकों ने वाजपेयी की तुलना महाभारत के महान युद्ध रणनीतिकार से की।
उनके नाम पर चार हिमालय की चोटियाँ
अक्टूबर 2018 में, उनके निधन के दो महीने बाद, गंगोत्री ग्लेशियर के पास के चार पहाड़ों का नाम वाजपेयी के नाम पर रखा गया। ग्लेशियर के दाईं ओर 6557, 6566, 6160 और 6100 मीटर की दूरी पर स्थित चोटियों को क्रमशः अटल 1, 2, 3 और 4 नाम दिया गया था। नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के कर्नल अमित बिष्ट ने घोषणा करते हुए कहा कि बिष्ट की अगुवाई में एक चढ़ाई दल, जिसने पहाड़ों को नापा, उनके सम्मान में तिरंगा फहराया। यह पर्वत, रक्तवन घाटी में सुदर्शन और सैफी चोटियों के पास स्थित हैं।