चंद्रयान-3: लैंडिंग के दौरान ऑस्ट्रेलिया का 35 मीटर ऊंचा स्पेस एंटीना देगा चंद्रयान को सपोर्ट, जानें और कौन कर रहा मदद

चंद्रयान-3 मिशन के लिए नासा के अलावा यूरोपियन स्पेस एजेंसी सहित कई अंतरिक्ष एजेंसियां ​​निगरानी में सहयोग कर रही हैं। चंद्रयान की लैंडिंग में कौन-कौन और कैसे कर रहा मदद, बता रहे हैं अंतरिक्ष मामलों के जानकार गिरीश लिंगन्ना।

Chandrayaan-3: भारत के चंद्रयान-3 मिशन के लिए नासा (NASA) के अलावा यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) सहित कई अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियां ​​चंद्र मिशन की निगरानी में सहयोग कर रही हैं। दुनिया भर के ग्राउंड स्टेशन चंद्रमा की यात्रा के दौरान स्पेसक्राफ्ट की हेल्थ और कम्युनिकेशन पर नज़र रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया का 35 मीटर ऊंचा स्पेस एंटीना भी चंद्रयान-3 की लैंडिंग के दौरान अहम रोल निभाएगा। चंद्रयान-3 की लैंडिंग में कौन-कौन और कैसे कर रहा मदद, बता रहे हैं अंतरिक्ष मामलों के एक्सपर्ट गिरीश लिंगन्ना।

चंद्रयान की लॉन्चिंग के बाद से ही मदद कर रही ESA

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चंद्रयान-3 के लॉन्च होने के समय से, यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) एस्ट्रैक नेटवर्क दो ग्राउंड स्टेशनों की सहायता से सैटेलाइट को उसकी कक्षा में ट्रैक करता है। ये स्टेशन सैटेलाइट के ऑर्बिटल मूवमेंट पर नजर रखने के अलावा स्पेसक्रॉफ्ट से टेलीमेट्री डेटा रिसीव करने और इसे बेंगलुरु में मिशन ऑपरेशन सेंटर (MOC) तक भेजने का काम कर रहा है।

फ्रेंच गुयाना और UK के अर्थ स्टेशन भी कर रहे हेल्प

एक मीडिया हाउस ने जर्मनी के डार्मस्टेड में यूरोपियन स्पेस ऑपरेशंस सेंटर (ESOC) के ग्राउंड ऑपरेशंस इंजीनियर रमेश चेल्लाथुराई के हवाले से बताया कि इसके अलावा, एस्ट्रैक नेटवर्क बेंगलुरु से फ्लाइंग सैटेलाइट को भेजी गई कमांड्स को भी रिले कर रहा है। चंद्रयान-3 की मदद के लिए फ्रेंच गुयाना के कोउरू में स्थित यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) से संबंधित 15-मीटर एंटीना के साथ-साथ UK में गोनहिली अर्थ स्टेशन के 32-मीटर एंटीना को चुना गया। इन दोनों एंटीना को उनकी तकनीकी क्षमताओं के अलावा इसलिए भी चुना गया, क्योंकि यहां से सैटेलाइट एक स्पष् और सीधी रेखा में होता है। ये दोनों स्टेशन चंद्रयान-3 के साथ नियमित संपर्क में हैं, जिससे बेंगलुरु में मिशन संचालन टीम और चंद्रयान-3 सैटेलाइट के बीच एक व्यापक कम्युनिकेशन लिंक बना हुआ है।

ऑस्ट्रेलिया का 35 मीटर ऊंचा स्पेस एंटीना देगा बैकअप

इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के न्यू नॉर्सिया में लगा 35 मीटर ऊंचा स्पेस एंटीना, जो कि एस्ट्रैक नेटवर्क का ही हिस्सा है, उसे लैंडर मॉड्यूल के साथ कम्युनिकेशन को ट्रैक करने के लिए लगाया गया है। लैंडर की चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान न्यू नॉर्सिया एंटीना इसरो के ग्राउंड स्टेशन के लिए बैकअप के रूप में काम करेगा। ये ISRO स्टेशन के समानांतर चल रहे लैंडर मॉड्यूल की स्थिति, प्रक्षेप पथ के बारे में डेटा रिसीव करेगा। इस टेलीमेट्री का उपयोग लैंडिंग की सफलता को वेरिफाई करने के लिए किया जाएगा।

बैकअप असिस्टेंस लैंडिंग के दौरान स्टैंडर्ड प्रैक्टिस का हिस्सा

ये बैकअप असिस्टेंस किसी स्पेस मिशन के लैंडिंग जैसे महत्वपूर्ण चरण के दौरान की जाने वाली स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है। सफल लैंडिंग के बाद रोवर लैंडर मॉड्यूल के जरिए ग्राउंड स्टेशनों तक डेटा ट्रांसमिट करेगा। इसके बाद फ्रेंच गुयाना स्थित कोउरू और यूके के गोनहिली में स्थित अर्थ स्टेशन में लगे एंटीना लैंडर द्वारा भेजे गए महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा को रिसीव करेंगे। बाद में इसे बेंगलुरु स्थित मिशन ऑपरेशन सेंटर को भेज देंगे।

NASA का डीप स्पेस नेटवर्क भी कर रहा मदद

नासा (NASA) का डीप स्पेस नेटवर्क कैनबरा डीप स्पेस कम्युनिकेशंस कॉम्प्लेक्स में डीप स्पेस स्टेशन (डीएसएस)-36 और डीएसएस -34 के अलावा मैड्रिड डीप स्पेस कम्युनिकेशंस कॉम्प्लेक्स में डीएसएस-65 से संचालित टेलीमेट्री और ट्रैकिंग कवरेज दे रहे हैं। जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के इंटरप्लेनेटरी नेटवर्क डायरेक्टोरेट के कस्टमर इंटरफेस मैनेजर सामी असमर के मुताबिक, हम इंस्ट्रूमेंट मेजरमेंट के साथ-साथ स्पेसक्राफ्ट की हेल्थ और डेटा रिसीव करते हैं और इसे फौरन इसरो तक पहुंचाते हैं। इसके अलावा, हम डॉप्लर इफेक्ट के लिए रेडियो सिग्नल को लगातार ट्रैक करते हैं, जो स्पेसक्राफ्ट के लिए एक महत्वपूर्ण नेविगेशन इंस्ट्रूमेंट है। लैंडिंग फेज के दौरान ये जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पेसक्राफ्ट की परफॉर्मेंस के दौरान रियलटाइम इन्फॉर्मेशन देती है।

कैलिफोर्निया के DSN से भी रखी जा रही नजर

सामी असमर ने आगे कहा कि मिशन के लिए मेन असिस्टेंस कैलिफ़ोर्निया में DSN कॉम्प्लेक्स द्वारा प्रदान की जा रही है। क्योंकि ये भारत से पृथ्वी के बिल्कुल विपरीत दिशा में स्थित है। इससे चंद्रयान-3 के दौरान चंद्रमा पर एक सीधी नजर रखने में मदद मिलती है, जो कि भारत के अंतरिक्ष स्टेशन से नजर नहीं आती है।

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