अयोध्या मामला: SC में हिन्दू पक्ष की तरफ से होगी जिरह, 34वें दिन की सुनवाई आज

सोमवार को अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 34वें दिन की सुनवाई होगी। 33वें दिन की सुनवाई शुक्रवार को हुई थी। जिसमें मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के निष्कर्ष पर सवाल उठाए थे। मीनाक्षी ने कहा था कि रिपोर्ट की समरी में नंबरिंग के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है जबकि फीमेल डेटी के बारे में कुछ पेश नहीं किया गया।

Asianet News Hindi | Published : Sep 30, 2019 2:33 AM IST / Updated: Sep 30 2019, 08:36 AM IST

नई दिल्ली. सोमवार को अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 34वें दिन की सुनवाई होगी। 33वें दिन की सुनवाई शुक्रवार को हुई थी। जिसमें मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के निष्कर्ष पर सवाल उठाए थे। मीनाक्षी ने कहा था कि रिपोर्ट की समरी में नंबरिंग के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है जबकि फीमेल डेटी के बारे में कुछ पेश नहीं किया गया। अरोड़ा का कहना था कि इससे यह साबित होता है कि यह सटीक नहीं है। उन्होंने कहा कि 15 पिलर के आधार पर ASI ने निष्कर्ष निकाला था कि वहां पर मंदिर था, जिसमें विरोधाभास दिखता है। जिसके बाद जस्टिस बोबड़े ने मुस्लिम पक्ष की वकील से अपनी दलीलें पेश करने के लिए कहा था।

'हिन्दू पक्ष के गवाहों की राय पुरातत्व विभाग से अलग'
मीनाक्षी अरोड़ा का कहना था कि पुरातत्व विभाग कि रिपोर्ट सिर्फ एक राय होती है, क्‍योंकि विशेषज्ञों को ही इसके तहत रखा जाता है। बता दें कि जब तक सटीक तथ्य ना हो तो राय को साक्ष्य अधिनियम के तहत नहीं रखा जाता। उस स्थिति में हाई कोर्ट ने हमारी तरफ से पेश हुए विशेषज्ञों को स्वीकार किया था। ऐसा इसलिए क्योंकि विषय पर विशेषज्ञों की समझ न्यायिक अधिकारी या जजों से कहीं ज्यादा होती है जो सटीक तथ्यों के साथ स्वीकार की जाती है। मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा था कि हिन्दू पक्ष की तरफ से पेश हुए गवाहों की राय भी पुरातत्व विभाग से अलग थी।

रिपोर्ट में राम मंदिर चबूतरे को वॉटर टैंक बताया
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े का कहना था कि दोनों ही पक्षों के पास कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है। उन्होंने कहा कि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में ये कहीं नहीं कहा गया है कि ये स्थान राम मंदिर है। उस रिपोर्ट में राम चबूतरे को वॉटर टैंक बताया गया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश एक और वकील शेखर नाफड़े ने बहस शुरू की थी। उन्होंने कहा था कि फारुख अहमद की तरफ से दायर 1961 में निचली अदालत का आदेश न्यायिक समीक्षा का अंतिम आदेश। रघुबर दास ने मंदिर निर्माण के लिए सूट दाखिल किया था। जिनकी तरफ से चबूतरे को जन्म स्थान करार देते हुए मंदिर बनाने कि मांग की गई। डिप्टी कमिश्नर ने 1885 में रघुबर दास के सूट पर अपना फैसला दिया था और कहा था कि चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा खारिज कर दिया था। 
 

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