
आलप्पुषा: स्थानीय निकाय चुनावों में मिली हार के बाद, बीडीजेएस ने गठबंधन बदलने को लेकर चर्चा तेज कर दी है। पार्टी का मानना है कि इस करारी हार की वजह बीजेपी का सहयोग न करना है। 23 तारीख को होने वाली बीडीजेएस की लीडरशिप मीटिंग में गठबंधन बदलने पर भी बात होगी। करीब 300 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद, बीडीजेएस सिर्फ पांच सीटों पर ही जीत पाई।
भले ही ये माना जा रहा है कि स्थानीय चुनावों में एनडीए ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन गठबंधन के सहयोगियों में नाराजगी बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि जिन जगहों पर एनडीए को फायदा हुआ, वहां बीडीजेएस जैसी पार्टियां हार गईं। तिरुवनंतपुरम कॉर्पोरेशन में एनडीए ने सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन बीडीजेएस जिन चार सीटों पर लड़ी, उन सभी पर हार गई। बीडीजेएस का आरोप है कि हार की वजह बीजेपी का सहयोग न करना है। जिन इलाकों में बीजेपी का प्रभाव है, वहां भी उन्हें पूरा सपोर्ट नहीं मिला।
कोच्चि कॉर्पोरेशन में 13 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद, वे अपनी सिटिंग सीट भी हार गए। कोझिकोड कॉर्पोरेशन में भी हाल कुछ ऐसा ही था। कोट्टायम के पल्लिकथोडु पंचायत में, बीजेपी ने बीडीजेएस की सिटिंग सीट ले ली थी। यहां हारने के बाद पंचायत का शासन ही हाथ से निकल गया। आलप्पुषा के कोडमथुरुथ पंचायत में, जहां एनडीए का दबदबा था, वहां भी बीजेपी अकेले लड़ी। पिछली बार जहां सात सीटें मिली थीं, वहीं इस बार एनडीए को सिर्फ छह सीटें मिलीं। यह भी शिकायत है कि राज्य के 140 विधानसभा क्षेत्रों में से 100 में भी उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला। जो सीटें मिलीं, उनमें जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी। बीजेपी के एकतरफा रवैये के चलते बीडीजेएस को कई जगहों से खुद ही पीछे हटना पड़ा।
वैसे तो गठबंधन में बीडीजेएस की नाराजगी कई बार सामने आ चुकी है, लेकिन तुषार और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच करीबी रिश्तों की वजह से शिकायतें दब जाती थीं। अब विधानसभा चुनाव सामने हैं, ऐसे में पार्टी का एक गुट यह मान रहा है कि इस तरह नजरअंदाज होकर वे साथ नहीं रह सकते। नेताओं ने एसएनडीपी के जनरल सेक्रेटरी वेल्लापल्ली नटेसन से मिलकर उन्हें इन दिक्कतों के बारे में बताया है। हो सकता है कि इस मामले को सुलझाने के लिए एसएनडीपी बीच-बचाव करे। नेताओं ने यह भी याद दिलाया कि सामुदायिक पृष्ठभूमि वाले संगठनों को नजरअंदाज करना विधानसभा चुनाव में फायदेमंद नहीं होगा।