भारतीय सेना के "ऑपरेशन सिंदूर" में इस्तेमाल हुए आत्मघाती ड्रोन बेंगलुरु में बनाए गए हैं। ये ड्रोन निशाने पर हमला करने में सक्षम हैं और ऑटोमैटिकली काम करते हैं।
भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना द्वारा संयुक्त रूप से किए गए "ऑपरेशन सिंदूर" में स्काईस्ट्राइकर सुसाइड ड्रोन ने अहम भूमिका निभाई है। PoK और पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों पर हुए इस हमले में आधुनिक तकनीक वाले ड्रोन इस्तेमाल किए गए।
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सुसाइड ड्रोन या लॉयटरिंग म्यूनिशन एक तरह का ऑटोमैटिक हथियार है। ये आम ड्रोन की तरह उड़ते हैं, लेकिन निशाना मिलते ही उस पर हमला कर खुद को तबाह कर लेते हैं। इसलिए इन्हें "कामिकेज़ ड्रोन" भी कहते हैं। बालाकोट हमले के बाद सेना में इन ड्रोनों को शामिल किया गया था।
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बेंगलुरु में तैयार ड्रोन: बुधवार को ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल हुए ड्रोन बेंगलुरु में ही बनाए गए थे, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है। पश्चिम बेंगलुरु के औद्योगिक क्षेत्र में इन आत्मघाती ड्रोनों का निर्माण हुआ। अल्फा डिज़ाइन और इज़राइल की एल्बिट सिक्योरिटी सिस्टम्स मिलकर ड्रोन बनाती हैं। इन दोनों कंपनियों का मुख्यालय बेंगलुरु में है।
2021 में 100 ड्रोनों का ऑर्डर: भारतीय सेना ने 100 खास ड्रोन खरीदने का ऑर्डर दिया था। 100 किमी तक जाने वाले ये ड्रोन 5 से 10 किलो वजन उठा सकते हैं। कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ये ड्रोन बेहद शांत होते हैं, इसलिए इनकी गतिविधियां गुप्त रहती हैं।
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इन ड्रोनों पर प्रतिक्रिया देने से अल्फा डिज़ाइन के CMD, कर्नल (रिटायर्ड) एचएस शंकर ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे सवालों का जवाब सरकार या सरकारी अधिकारी ही दे सकते हैं, उनके लिए जवाब देना ठीक नहीं होगा।
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ड्रोन की खासियत: निशाने पर हमला करने की क्षमता, निगरानी सिस्टम। पहले हवा में घूमकर निशाने ढूंढते हैं। बिना इंसानी दखल के काम करने वाला ऑटोमैटिक सिस्टम। सटीक निशाने लगाने की क्षमता। एक ही मशीन में निगरानी और हमले की तकनीक।
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निगरानी और हमले के कामों में इन ड्रोनों का इस्तेमाल होता है। आजकल सेना की रणनीति में ड्रोन अहम भूमिका निभा रहे हैं।