कोरोना संक्रमण के चलते अपने मां-बाप खो चुके बच्चों की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई को लेकर केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य गंभीरता से काम कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली और बंगाल सरकार के रवैये से सुप्रीम कोर्ट सख्त नाराज है। राष्ट्रीय बाल आयोग पहले ही इन दोनों सरकारों को असंवेदनशील कह चुका है। इस मामले को लेकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी एक ट्वीट किया है।
नई दिल्ली. कोरोना की दूसरी लहर ने कई बच्चों के सिर से मां-बाप का साया छीन लिया। इन अनाथ बच्चों की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई के लिए केंद्र सरकार के अलावा विभिन्न राज्य गंभीरता के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली और बंगाल सरकार के कामकाज और रवैये को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। इससे पहले बाल आयोग भी तल्ख टिप्पणी कर चुका है।
जावड़कर ने ट्वीट में लिखा-इससे बड़ा आइना आपको क्या चाहिए केजरीवाल और ममता
इस मामले में बंगाल और दिल्ली के बर्ताव पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दु:ख जताते हुए एक ट्वीट किया है। इसमें लिखा है-दिल्ली और बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई की कोविड के दौरान जो बच्चे अनाथ हुए या जिनका एक अभिभावक चल बसा उनकी सही जानकारी उपलब्ध नही कराई गई। बाल स्वराज पोर्टल पर भी यह जानकारी नहीं है। इससे बड़ा आइना आपको क्या चाहिए केजरीवाल और ममता।
वेबसाइट पर अपलोड नहीं की बंगाल और दिल्ली ने जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान बंगाल और दिल्ली को कड़ी फटकार लगाई थी। इन दो राज्यों ने अनाथ बच्चों का डेटा उपलब्ध नहीं कराया है। इसे अनाथ बच्चों की जानकारी वाली वेबसाइट पर अपलोड करना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोनों राज्य सरकारें सर्वोच्च अदालत का आदेश नहीं समझ पाने का बहाना बना रही हैं। जब सभी राज्यों ने जानकारी मुहैया करा दी, तो फिर बंगाल या दिल्ली को किस बात का कन्फ्यूजन है? सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसी भी कारण से बच्चों का भविष्य बर्बाद नहीं होना चाहिए।
बाल आयोग भी जता चुका है नाराजगी
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग(NCPCR) दोनों राज्यों के रवैये को असंवेदनशील बता चुका है। न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार को कहा कि कोरोना वारयरस संक्रमण के कारण अनाथ हुए बच्चों को लेकर पश्चिम बंगाल और दिल्ली की सरकारों का रवैया असंवेदनशील है। इसके पीछे दोनों राज्यों की कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराया गया है। बताया गया कि दोनों ने ऐसे बच्चों के संदर्भ में अब तक पूरी जानकारी मुहैया नहीं कराई है। कानूनगो ने कहा कि तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए सभी राज्यों को बच्चों के उपचार की पूरी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।
कई राज्यों की प्लानिंग को सराहा
NCPCR ने इस दिशा में कई राज्यों की पहल को सराहा। कानूनगो ने कहा कि अनाथ बच्चों की मदद के लिए कई राज्यों ने तेजी से काम शुरू किया है। ये राज्य युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं। साथ ही पश्चिम बंगाल और दिल्ली को लेकर निराशा जताई। समय पर जानकारी मुहैया नहीं करा पाने को कानूनगो ने असंवेदनशील रवैया कहा।
‘बाल स्वराज’ पर भेज सकते हैं जानकारी
बता दें कि NCPCR ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 29 मई तक विभिन्न राज्यों की ओर से उपलब्ध कराए गए डेटा के मुताबिक 9346 ऐसे बच्चे हैं, जो कोरोना महामारी के कारण बेसहारा या अनाथ हो गए या फिर मां या बाप में से किसी एक की मौत हो गई। NCPCR ने एक वेबसाइट ‘बाल स्वराज’ शुरू की है, जहां राज्य डेटा उपलब्ध करा सकते हैं। NCPCR प्रमुख ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पीएम केयर्स के जरिए ऐसे बच्चों की मदद की जो घोषणा की है, उससे इन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने और संवारने में मदद मिलेगी।
अनाथ बच्चों की परवरिश के लिए हर महीने 3000 रुपए देगी उत्तराखंड सरकार
मध्य प्रदेश और दिल्ली सरकार की तर्ज पर उत्तराखंड सरकार ने भी बुधवार को ऐलान किया कि वो कोरोना से अनाथ हुए बच्चों की परवरिश के लिए हर महीने 3000 रुपए देगी। मंत्रिमंडल ने बुधवार को मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना को मंजूरी दे दी। राज्य सरकार 21 वर्ष की आयु तक बच्चों को मुफ्त शिक्षा, राशन और अन्य सुविधाएं मुहैयार कराएगी।
दिल्ली और बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई की कोविड के दौरान जो बच्चे अनाथ हुए या जिनका एक अभिभावक चल बसा उनकी सही जानकारी उपलब्ध नही कराई गई। बाल स्वराज पोर्टल पर भी यह जानकारी नहीं है। इससे बड़ा आईना आपको क्या चाहिए केजरीवाल और ममता।