इसरो ने शेयर की 2650 Km दूर से चंद्रयान-2 द्वारा भेजी गई चांद की तस्वीर

चंद्रयान-2 ने सफलतापूर्व चांद की दूसरी कक्षा में प्रवेश कर लिया है। अब चंद्रयान-2 ने लूनर सतह से लगभग 2650 किमी की ऊंचाई की फोटो भेजी है। इस फोटो को इसरो ने अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर किया।

Asianet News Hindi | Published : Aug 23, 2019 3:30 AM IST / Updated: Aug 23 2019, 02:30 PM IST

नई दिल्ली. चंद्रयान-2 ने सफलतापूर्व चांद की दूसरी कक्षा में प्रवेश कर लिया है। अब चंद्रयान-2 ने लूनर सतह से लगभग 2650 किमी की ऊंचाई की फोटो भेजी है। इस फोटो को इसरो ने अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर किया। इसरो ने बताया कि चंद्रयान-2 भेजी चांद की तस्वीर में ओरिएंटेल बेसिन और अपोलो क्रेटर्स को पहचाना है। इससे पहले बुधवार को इसरो ने चंद्रयान-2 को चांद को दूसरी कक्षा में पहुंचने की जानकारी दी थी। इस कक्षा में पहुंचने के लिए 1,228 सेकेंड लगे। चांद की कक्षा का आकार 118 km गुणा 4412 किलोमीटर है। इससे चक्कर के बाद ही स्पेसक्राफ्ट चांद पर उतरेगा। 

 

विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण मिशन
इसरो के प्रमुख ने कहा- चांद पर उतरने वाले भारत का पहला चंद्रमा मिशन चंद्रयान-2 पर उत्सुकता के साथ सबकी नजर है। चंद्रयान-2 मिशन दुनिया के स्तर पर महत्वपूर्ण मिशन है। 7 सितंबर को चंद्रमा पर लैंडिंग ऑपरेशन शुरू होगा। इसकी लैंडिंग 1:55 बजे चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र पर होगी। 

कक्षा में प्रवेश के बाद अब सबसे बड़ी चुनौती यान की सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो के सामने चांद की कक्षा में प्रवेश कराना सबसे बड़ी चुनौती थी। इसकी वजह चंद्रमा का वातावरण पृथ्वी की तरह नहीं है। चांद की कक्षा में प्रवेश कराने के बाद वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यान को सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कराने को लेकर रहेगी। चंद्रमा पर गुरूत्वाकर्षण हर जगह पर अलग अलग है। इस वजह से चंद्रयान की लैंडिंग के दौरान यान के क्रैश होने का खतरा बड़ जाता है। वहां रेडियों सिग्नल की कमी की वजह से उन्हें यान को सही तरह से ऑपरेट करना मुश्किलों भरा रहेगा। जरा सी चूक भी मिशन को असफल कर सकती है। वैज्ञानिकों को चांद के गुरूत्वाकर्षण बल और वातावरण का सही तरीके से ध्यान रखना होगा। चांद के तापमान में भी तेजी से बदलाव होते हैं और लैंडिंग के दौरान खतरा  बढ़ जाता है।  वहीं लैंडर और रोवर भी इस परिस्थिती में काम करना बंद कर देते हैं। 

चार मुख्य उपकरण जो जुटाएंगे जानकारी 

ऑर्बिटर

चंद्रयान का पहला मॉड्यूल ऑर्बिटर है। ये चांद की सतह की जानकारी जुटाएगा। ये पृथ्वी और लैंडर (जिसका नाम विक्रम रखा गया है) के बीच कम्युनिकेशन बनाने का काम करेगा। करीबन एक साल तक ये चांद की कक्षा में काम करेगा। इसमें करीबन 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं। इसका कुल 2,379 किलो है। 

लैंडर

इसरो का ये पहला मिशन होगा जब इसमें लैंडर भेजा जाएगा। इसका नाम विक्रम रखा गया है। यह नाम वैज्ञानिक विक्रम साराभाई पर रखा गया है। विक्रम चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।  लैंडर के साथ 3 पेलोड भेजे जा रहे हैं। यह चांद की सतह पर इलेक्ट्रॉन डेंसिटी, तापमान और सतह के नीचे होने वाली हलचल गति और तीव्रता की जानकारी जुटाएगा। इसका वजन 1,471 किलो है।  

रोवर

रोवर लैंडर के अंदर ही होगा। इसका नाम प्रज्ञान रखा गया है। यह हर एक सेकेंड में 1 सेंटीमीटर बाहर निकलेगा। इसे बाहर निकलने में करीबन 4 घंटे लगेंगे। चांद की सतह पर उतरने के बाद ये 500 मीटर तक चलेगा। ये 14 दिन तक काम करेगा। इसके साथ दो पेलोड भेजे जा रहे हैं। इसका उद्देश्य चांद की मिट्टी और चट्टानों की जानकारी जुटाना है। इसका वजन 27 किलो है।  

 2009 से चांद पर पानी की खोज में लगा है इसरो

दरअसल, जब 2009 में चंद्रयान-1 मिशन भेजा गया था, तो भारत को पानी के अणुओं की मौजूदगी की अहम जानकारी मिली थी। जिसके बाद से भारत ने चंद्रमा पर पानी की खोज जारी रखी है। इसरो के मुताबिक, चांद पर पानी की मौजूदगी से यहां मनुष्य के अस्तित्व की संभावना बन सकती है।
 

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