सरकारी व कई धार्मिक संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले बाल गृहों में आयोग को धर्म विशेष में आस्था रखने पर जोर देने का मामला मिला है। जिस पर संरक्षण आयोग ने राज्य सरकारों को पत्र लिखा है। आयोग ने कहा, बच्चों को देश के नागरिक के तौर पर उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
नई दिल्ली. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने अपनी निरीक्षण टीमों के रिपोर्ट का हवाला देते हुए सभी राज्य सरकारों से कहा है कि वे बाल गृह में यह सुनिश्चित करें कि सभी बच्चों पर एक धर्म विशेष में आस्था रखने पर जोर नहीं दिया जाए। एनसीपीसीआर ने देश के बाल गृहों के निरीक्षण के दौरान मिली जानकारियों को आधार बनाते हुए गत 25 अक्टूबर को सभी प्रदेश एवं केंद्रशासित राज्यों के महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिवों को पत्र लिखकर इस संदर्भ में जरूरी सुधारात्मक कदम उठाने और जल्द रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है।
पढ़ाया जा रहा बाइबल
आयोग की ओर से राज्यों को लिखे गए पत्र में कहा गया है, ‘‘कई धार्मिक संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले बाल गृहों और कुछ सरकारी बाल गृहों में भी निरीक्षण के दौरान यह पाया गया कि वहां सभी बच्चों को ‘बाइबल’ पढ़ाया जा रहा है।’’ उसने कहा कि कुछ बाल गृहों में जो हो रहा है वो संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की भावना के मुताबिक नहीं है और यह बाल अधिकारों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की संधियों की अहवेलना भी है।
बुनियादी अधिकारों से किया जा रहा वंचित
आयोग ने कहा, ‘‘बच्चों को देश के नागरिक के तौर पर उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। ऐसे में आयोग सिफारिश करता है कि बच्चों के पहचान के अधिकार को बनाए रखने के लिए जरूरी सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।’’ उसने कहा कि सभी संबंधित पक्षों को निर्देश दिया जाए कि बाल गृहों की निगरानी के दौरान वे इस तरह के चलन को लेकर सजग रहें।
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)