संक्रमण के पीक में पूरा घर बीमार था, यूं लगने लगा था कि सबकुछ खत्म; लेकिन इच्छा शक्ति ने कोरोना को भगा दिया

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के पीक में जो संक्रमित हुआ; उसे किन हालात का सामना करना पड़ा, यह वही समझ सकता है। अस्पतालों में बेड नहीं थे, दवाओं की कालाबाजारी चरम पर थी। लेकिन जिन्होंने हौसला रखा; वे कोरोना से जीत गए।

Asianet News Hindi | Published : Jul 5, 2021 2:29 AM IST

भोपाल. यह कहानी भोपाल की रहने वालीं हेमलता जैन और उनकी फैमिली की है। इनका पूरा परिवार एक-एक करके पॉजिटिव हो चुका था। मरीजों की देखभाल करने सिर्फ घर में अकेली बेटी बची थी। अस्पतालों में बेड का प्रबंध करने से लेकर पैसों-दवाओं का इंतजाम सबकुछ करना एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और आज ये पूरा परिवार कोरोना का हराकर सामान्य जीवन गुजार रहा है।  Asianet news के लिए अमिताभ बुधौलिया ने हेमलता जैन से जाना उनका अनुभव।

जब फीवर 103 से नीचे नहीं आया, तो घबरा गई...
11 अप्रैल रात्रि 2:30 बजे अचानक इंदौर से इनका (हमारे पति राकेश जैन) का कॉल आया कि इन्हें बहुत तेज फीवर आ रहा है, बॉडी पेन है, मेडिसिन ले ली है। हमने कहा आप तुरंत घर आ जाएं। 12 अप्रैल की सुबह प्राइवेट टैक्सी करके ये इंदौर से निकल गए। शाम 4:00 बजे जेपी हॉस्पिटल जाकर कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल दिया। वहां ढाई घंटे लाइन में लगने के बाद नंबर आया। उसी दिन रात से ही इनकी हालत बिगड़ना शुरू हो गई। फीवर 103 से नीचे नहीं आ रहा था और कमजोरी इतनी कि अपने आप करवट लेना भी मुश्किल हो रहा था। 

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और हम भी इनकी सेवा करते हुए पॉजिटिव हो गए
यह लगातार कहते रहे कि तुम लोग मेरे पास मत आओ, लेकिन इनकी देखभाल, दवाइयां, भोजन आदि के लिए इनके कमरे में जाना ही पड़ा। दूसरे दिन से सिरदर्द, खांसी और कफ के साथ वोमिटिंग भी शुरू हो गई। हमने इन्हें कोरोना की मेडिसिन देना शुरू कर दी थी, क्योंकि रिपोर्ट अभी तक आई नहीं थी और बिना रिपोर्ट्स के हॉस्पिटल में भी एंट्री नहीं थी। अगले 2 दिन और भी ज्यादा मुश्किल हो गए। सांस लेने में भी इनको दिक्कत होने लगी, कुछ बोल नहीं पा रहे थे, न ही इतने सक्षम थे कि खुद उठ बैठ सकें। इसी बीच इनकी केयर करते करते हमें भी वीकनेस और हल्के बुखार के साथ-साथ बॉडी पेन आने लगा। जबकि हमने मास्क और सैनेटाइजर का लगातार प्रयोग किया था साथ ही भाप और गरारे भी कर रहे थे। 

फिर बेटे ने संभाली सबकी जिम्मेदारी
मेरी हालत खराब होते देख कर इनकी देखभाल की कमान बेटे तन्मय ने संभाली। 16 तारीख की शाम को रिपोर्ट आई जो कि पॉजिटिव थी। हमने तुरंत ही सीटी स्कैन करवाया, जिसकी रिपोर्ट 17 को दोपहर 2 बजे आई, जिसमें स्कोर 11 आया। इन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाने की जरूरत थी, लेकिन कहीं भी कोई भी हॉस्पिटल में बेड अवेलेबल नहीं थे। न जाने किस किस हॉस्पिटल में जाकर पता किया, कितने ही लोगों को कॉल लगाया, हेल्प डेस्क में कॉल किये लेकिन कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहे थे। बहुत ज्यादा परेशान होने के बाद आखिरकार हमारे पारिवारिक मित्र की सहायता से रात 11:30  बजे बंसल हॉस्पिटल में बेड मिला, जहां इनका ट्रीटमेंट शुरू हुआ। 

एक दिन में 18 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लगी थी
इनकी हालत लगातार गिरती चली जा रही थी। ऑक्सीजन की आवश्यकता दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। एक समय में 18 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लग गई थी। इसी बीच हम और हमारा बेटा दोनों पॉजिटिव हो गए। हम दोनों को बुखार और बॉडी पेन था,ऑक्सीजन लेबल सही था, लेकिन वीकनेस बहुत आ गईथी। हम दोनों ने हालात को देखते हुए क्वॉरेंटाइन सेंटर जाना उचित समझा।  21 तारीख को नर्मदा ट्रॉमा हॉस्पिटल ग्रुप और मप्र शासन द्वारा प्रशासन एकेडमी शाहपुरा में संचालित सेंटर में हम दोनों एडमिट हो गए। इसी बीच खबर मिली कि हमारे दामाद जी अनिवेश, समधी जी और समधन जी जो कि कटारा हिल्स पर रहते हैं, वो भी पॉजिटिव हो गए हैं। चूंकि समधी जी और समधन जी को वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके थे इसीलिए उन दोनों पर ज्यादा असर नहीं हुआ, सिर्फ फीवर आया। ऑक्सीजन लेवल डाउन हुआ जो कि मेडिसिन के बाद नॉर्मल आ गया। वो दोनों घर पर ही आइसोलेट हो गए, लेकिन दामाद जी को हॉस्पिटल में एडमिट करवाना पड़ा। उन्हें भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किसी हॉस्पिटल में बेड नहीं था, कहीं ऑक्सीजन नहीं थी और कहीं इंजेक्शन नहीं थे। आखिर में पीपुल्स हॉस्पिटल में उनको बेड मिला।  

और फिर बेटे की तबीयत बिगड़न लगी
24 तारीख से बेटे तन्मय की तबीयत अचानक बिगड़ गई। हम दोनों का सीटी स्कोर सेंटर में जाने के पहले हमारा 10 और बेटे का सिर्फ एक था। लेकिन 25 तारीख को उसे भी सांस लेने में दिक्कत होने लगी, खांसी और कफ एकदम से बढ़ गया और ऑक्सीजन लेबल भी 89 पर आ गया। आइसोलेशन सेंटर पर ही इमरजेंसी में सारी रात ऑक्सीजन दी गई। 26 अप्रैल को सुबह कुछ ब्लड टेस्ट और सीटी स्कैन के लिए नर्मदा ट्रामा हॉस्पिटल लेकर गए, वहां उसकी रिपोर्ट देखकर हम होशोहवास खो बैठे, क्योंकि सीटी स्कैन का स्कोर 20/25 आया। उसे तुरंत एडमिट करने और इलाज की जरूरत थी, लेकिन कहीं भी बेड नहीं मिल रहे थे। आखिर थक-हार कर हम नर्मदा हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. राजेश शर्मा जी के पास पहुंचे और उनसे बेटे की हालत के बारे में बताया। उन्होंने तुरंत संज्ञान में लेते हुए बेटे के लिए बेड और इलाज मुहैया करवाया, जो कि उस वक्त जीवन की सबसे बड़ी जरूरत थी। उस दिन डॉ. राजेश शर्मा जी के रूप में स्वयं भगवान उतर कर आए थे हमारी मदद करने के लिए। उन्होंने बेटे का तुरंत इलाज शुरू किया, जिससे उसे नया जीवन मिला। उस पल को कभी नहीं भुलाया जा सकता। 

हम 6 लोग अलग-अलग जगह एडमिट थे
उस समय किसी भी हॉस्पिटल में कोई भी पॉलिसी काम नहीं पड़ रही थी। हेल्थ पॉलिसी होने के बावजूद हर जगह कैश पेमेंट ही करना पड़ रहा था और उसका अरेंजमेंट भी। हमारा फीवर भी 103 से ऊपर ही चल रहा था। हम फोन के माध्यम से ही बेटी का साथ देते रहे। हम 6 लोग अलग-अलग जगह पर एडमिट थे और हमारी बेटी तनु अकेली हम सबकी केयर करने में जुटी हुई थी। इसी दौरान उसे भी फीवर आ गया, रिपोर्ट नेगेटिव आई लेकिन खुशबू और स्वाद चला गया, वीकनेस आई फिर भी वह अकेली हम सबकी केयर करती रही। इसी बीच खबर आई कि हमारे पतिदेव को प्लाज्मा की जरूरत है। हम सबने जितने भी कांटेक्ट हैं, सब में रिक्वायरमेंट पोस्ट की, जितने भी सोर्स हैं, सब जगह बात की। इनको 4 एंटीबॉडी वाले प्लाज्मा की जरूरत थी, लेकिन उसकी व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। बेटी तनु रोज डोनर्स को लेकर उनका टेस्ट करवाने लेकर जाती और हताश होकर लौट आती। आखिरकार बंसल हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में ही कार्यरत एक सज्जन ने बिटिया को परेशान होते देख कर स्वयं का प्लाज्मा इनको डोनेट किया। 

अंधेर में सूरज की किरण दिखती गई
इस मुश्किल घड़ी में कई बार ऐसे क्षण आए जब लगा कि अब सब कुछ खत्म...लेकिन तभी कहीं ना कहीं से, उस निराशा के अंधकार में, कोई ना कोई सूरज की किरण की तरह अचानक आया। फिर जैसे सारे बंद दरवाजे एक साथ खुल जाते और एक नया सवेरा हम सबके सामने होता था। बेटे को इंजेक्शन की जरूरत थी, जिसमें रेमडेसिविर के अलावा 40000 तक के इंजेक्शन रिक्वायर्ड थे, लेकिन वह कहीं नहीं मिल रहे थे। फ़ैवी फ़्लू टेबलेट कहीं नहीं मिल रही थी। बेटी हर जगह भटक कर परेशान हो रही थी। हमने पता नहीं कहां-कहां, किस-किस को फोन लगाए। उस वक्त ऐसे चेहरों ने हमारा साथ दिया, जिन्हें हम जानते भी नहीं थे। कई परिचित लोगों का साथ मिला, जिन्होंने न केवल हमारा मनोबल बढ़ाया, बल्कि बेटे को इंजेक्शन उपलब्ध करवाने में भी हमारी मदद की। कुछ परिचित ऐसे थे जिन्होंने हमसे यह कहा कि आप पैसों की फिक्र भी बिल्कुल मत करना, हम लोग हैं! तो कुछ अपरिचित लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने हम सबके लिए चर्च में प्रेयर, मंदिरों में दुआएं और मस्जिदों में नमाजें अदा कीं। 

सोशल मीडिया के जरिये सब मददगार बनकर सामने आए
एक तरफ जहां कालाबाज़ारियों द्वारा दवाओं, ऑक्सीजन, इंजेक्शन के लिए लोगों को परेशान किया जा रहा था वहीं दूसरी तरफ बहुत सारे लोग ऐसे भी थे, जो हम जैसे पेशेंट्स की मदद के लिए दिन-रात लगे हुए थे। सोशल मीडिया का इससे अच्छा और सकारात्मक उपयोग हमने आज से पहले कभी नहीं देखा था। अलग-अलग ग्रुप्स के माध्यम से कई सामाजिक संस्थाएं, कई यूथ ग्रुप, ब्लड ग्रुप, प्लाजमा डोनेशन ग्रुप सामने आए थे, जिन्होंने भोजन सामग्री और भोजन के साथ-साथ जरूरतमंदों को दवाइयां तक उपलब्ध करवाने में बहुत मदद की। 

संकट की घड़ी में ऐसे बढ़ा हौसला
हमारे क्वारेंटाइन सेंटर में भी हर तरह की सुविधा थी, जिसमें सुबह और शाम की चाय, दोनों टाइम काढ़ा, ब्रेकफ़ास्ट, लंच और डिनर के साथ बेसिक दवाइयां,ऑक्सीजन लेवल, टेंपरेचर की जांच, डॉक्टर और सिस्टर के लगातार राउंड के साथ ही हर शाम योग, मेडिटेशन और फन की क्लास हुआ करती थी। इससे हमारे साथ- साथ वहां मौजूद सारे पेशेंट का मनोबल लगातार बढ़ा, और हम सभी स्वस्थ्य होकर अपने घरों को आ सके। वहां सारे डॉक्टर और सिस्टर्स का व्यवहार एकदम परिवार के सदस्यों की तरह था उन्होंने बिल्कुल भी एहसास नहीं होने दिया कि हम सब कोरोना के पेशेंट हैं। जब हमारे पति और बेटे की हालत बहुत ज्यादा खराब थी तब उन सब का मानसिक सपोर्ट, सम्बल जो हमें प्राप्त हुआ उसने हमें टूटने नहीं दिया। 

जिस दिन बेटे की तबीयत ज्यादा खराब हुई और उसे हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा, हमने अपने पति को यह बात नहीं बताई ताकि वह परेशान न हों। एक समय ऐसा आया था जब उनके साथ एडमिट कई व्यक्ति रोज एक एक करके ईश्वर को प्यारे होते जा रहे थे, तब उन्हें भी हताशा ने घेर लिया था। उनका मनोबल और साहस लगातार बनाए रखना बहुत जरूरी हो गया था। कई परिचित लोगों के खोने की खबरें लगातार मिल रही थीं लेकिन यह खबर बेटे और इन तक नहीं पहुंचने देना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती और पहली आवश्यकता बन गया था।

डॉक्टरों पर पूरा विश्वास था
जब इनकी रिकवरी शुरू हो गई, प्लाज्मा लग गया उसके बाद भी जब भी डॉक्टर के कॉल आते थे, तो उनका कहना था कि पेशेंट रिकवर कर रहे हैं, लेकिन ऐसे मामलों में 10 परसेंट चांसेस हैं कि कुछ भी हो सकता है। क्लॉटिंग आ सकती है, हेमरेज हो सकता है या हार्टअटैक भी आ सकता है। रोज हेल्थ अपडेट मिलने के साथ ही यह बात सुनना बेहद तकलीफदेह हुआ करता था, फिर भी कहीं ना कहीं मन में एक भरोसा था कि सब कुछ अच्छा होगा। उस वक्त भी हमारा वापस जवाब डॉक्टर को यही हुआ करता था कि सर हमें आप पर पूरा विश्वास है। एडमिट होने के दिन से रोजाना णमोकार मन्त्र, भक्तामर स्त्रोत, गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा पढ़ने के साथ-साथ श्री महामृत्युंजय जाप को लगातार सुनते, करते रहे। इस मन्त्र  से बहुत ज्यादा हीलिंग और रिलीफ महसूस हुआ करता था। वही क्रम आज भी चल रहा है। सभी की दुआओं, बड़ों के आशीष और परमपिता की विशेष अनुकंपा से हम सब एक महीने बाद सकुशल घर आ गए। 

मेरा अनुभव कहता है
इस बुरे वक़्त में अपने अनुभव के आधार पर हम बस यही कह सकते हैं कि अपने इम्यून पावर को जितना मेंटेन कर सकते हैं, उतना बनाए रखें। साथ ही साथ जो सबसे जरूरी चीज है वो यह कि लक्षण समझ में आते ही डॉक्टर से तुरंत संपर्क करके प्रॉपर मेडिकल ट्रीटमेंट लें। यह बहुत ही जरूरी है। थोड़ी भी देरी करना बहुत भारी पड़ सकता है। इन सभी के साथ ही साथ मास्क, सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टेंसिंग भी बेहद जरूरी है। हां, वैक्सीन जरूर लगवाएं, क्योंकि अभी तक जो हमने अनुभव किया और जानकारियां मिली हैं, उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि जिनका वैक्सीनेशन हो चुका था वह भले ही इनफेक्टेड हुए हों; लेकिन सुरक्षित घर वापसी अवश्य हुई है। जिन्होंने दोनों खुराक ली हैं, उन्हें उतने ज्यादा लक्षण भी नहीं आए, तकलीफ भी नहीं हुई और न ही हॉस्पिटल में एडमिट होने की जरूरत पड़ी। इन सब के साथ-साथ सबसे जरूरी है अपना विल पावर बनाए रखना खुद के साथ-साथ अपने इष्ट, ईश्वर पर भी भरोसा रखना और यह महसूस करना कि हम बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे। बहुत सारे लोगों ने सिर्फ और सिर्फ डर की वजह से ही अपनी जान गंवाई है। अपने आप पर भरोसा रखें, अपने परिवार की हिम्मत बनें और उनकी हिम्मत बनाए रखें। इच्छाशक्ति के बल पर ही आप कोरोना जैसी महामारी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। 

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोड़ेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona

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