
Indian Constitution Debate: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव एमए बेबी (MA Baby) ने शनिवार को आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले (Dattatreya Hosabale) के उस बयान पर तीखा हमला बोला, जिसमें उन्होंने संविधान की प्रस्तावना से सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्दों को हटाने की मांग की थी।
एमए बेबी ने कहा: सोशलिज्म और सेक्युलरिज्म कोई मामूली जोड़ नहीं हैं, ये संविधान की आत्मा में समाहित मूल्य हैं। अगर कोई संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स को पढ़े तो साफ दिखेगा कि संविधान का उद्देश्य एक धर्मनिरपेक्ष और समानतावादी समाज बनाना था। उन्होंने बताया कि भले ही ये शब्द आपातकाल (Emergency) के दौरान 42वें संशोधन से प्रस्तावना में जोड़े गए हों लेकिन संविधान के मूल स्वर में ये आदर्श पहले से ही निहित थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार फैसलों में इन्हें संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर (Basic Structure) का हिस्सा माना है जिन्हें हटाया नहीं जा सकता।
आरएसएस की विचारधारा पर हमला करते हुए बेबी ने कहा: संविधान के निर्माण के वक्त ही संघ ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया था। संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने तब इसे विदेशी विचारों से भरा बताया था और मनुस्मृति के आधार पर संविधान बनाने की बात कही थी। एमए बेबी ने चेतावनी देते हुए कहा कि अब असली मंशा सामने आ गई है। आरएसएस संविधान को खत्म कर बराबरी, भाईचारे और सेक्युलरिज्म को हटाकर मनुवाद लाना चाहता है लेकिन भारतीय समाज इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि सीपीआई(एम) और वामपंथी ताकतें संविधान की रक्षा के लिए जनमत तैयार करेंगी और संघ के पिछड़े एजेंडे का डटकर विरोध करेंगी।
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द संविधान में जबरन जोड़े गए थे और अब इस पर पुनर्विचार होना चाहिए। उन्होंने इमरजेंसी को सिर्फ सत्ता का दुरुपयोग ही नहीं बल्कि नागरिक स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश बताया था। उन्होंने कहा कि ये शब्द मूल रूप से बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा तैयार संविधान की प्रस्तावना में शामिल नहीं थे और इन्हें आपातकाल (1975) के दौरान जोड़ा गया था, जब मौलिक अधिकार निलंबित थे, संसद काम नहीं कर रही थी और न्यायपालिका कमजोर थी।