अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा ढहाए जाने के 28 साल बाद 30 सितंबर को आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य के शुरू होने के लगभग दो महीने बाद और अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाए जाने के मामले में  28 साल बाद 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह फैसला  तय समयसीमा की अंतिम तारीख पर आएगा। इस लंबे चले मुकदमे ने वास्तविक रफ्तार तब पकड़ी जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निपटाने और सुनवाई कर रहे जज के रिटायरमेंट की तारीख दोनों को कई बार आगे बढ़ाते हुए अंतिम समयसीमा तय की थी।

Asianet News Hindi | Published : Sep 27, 2020 6:04 AM IST / Updated: Sep 27 2020, 11:36 AM IST

नई दिल्ली. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य के शुरू होने के लगभग दो महीने बाद और अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाए जाने के मामले में  28 साल बाद 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह  फैसला  तय समयसीमा की अंतिम तारीख पर आएगा। इस लंबे चले मुकदमे ने वास्तविक रफ्तार तब पकड़ी जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निपटाने और सुनवाई कर रहे जज के रिटायरमेंट की तारीख दोनों को कई बार आगे बढ़ाते हुए अंतिम समयसीमा तय की थी।
 
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में दो साल के भीतर मुकदमा निपटा कर फैसला सुनाने का आदेश दिया था लेकिन इसके बाद भी तीन बार समय बढ़ाया और अंतिम तिथि 30 सितंबर 2020 तय की गई थी। मामले की पहली प्राथमिकी विवादित बाबरी ढांचा ढहाए जाने के ही दिन 6 दिसंबर 1992 को श्रीराम जन्मभूमि सदर फैजाबाद पुलिस थाने के थानाध्यक्ष प्रियंबदा नाथ शुक्ल ने दर्ज कराई थी। इस मामले में अबतक विभिन्न तारीखों पर कुल 49 प्राथमिकी दर्ज कराई गईं थीं। केस की जांच बाद में सीबीआई को सौंपी गई जिसमें उसने जांच निबटा कर 4 अक्टूबर 1993 को 40 अभियुक्तों के खिलाफ पहला आरोपपत्र दाखिल कर दिया था लेकिन इसके करीब ढाई साल बाद 9 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ 10 जनवरी 1996 को एक और अतिरिक्त आरोपपत्र दाखिल किया गया। सीबीआई ने कुल 49 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। सुनवाई के 28 साल में 17 अभियुक्तों की मृत्यु हो गई, अब सिर्फ 32 अभियुक्त बचे हैं जिनका फैसला आना शेष है।

2001 में हाईकोर्ट का आया फैसला

इस मामले के लंबे समय तक लंबित रहने के पीछे कारण था उच्च अदालत में चुनौतियों पर चुनौतियां देना। अभियुक्तों ने हर स्तर पर निचली अदालत के आदेशों और सरकारी अधिसूचनाओं को उच्च अदालत में चुनौती दी जिसके कारण मुख्य केस की सुनवाई में इतने साल लग गए। मामले में दो जगह सुनवाई चल रही थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित आठ अभियुक्तों के खिलाफ रायबरेली की अदालत में और बाकी लोगों के खिलाफ लखनऊ की विशेष अदालत में सुनवाई चल रही थी। रायबरेली में जिन आठ नेताओं का मुकदमा था उनके खिलाफ साजिश के आरोप नहीं थे। उन पर ढांचा ढहाए जाने की साजिश में मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल 2017 के आदेश के बाद 30 मई 2017 को अयोध्या की विशेष अदालत ने उन पर भी साजिश के आरोप तय किए और एक साथ संयुक्त आरोपपत्र के मुताबिक एक जगह लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रायल शुरू हुआ।अब 30 तारिख के अंतिम फैसले का पूरे देश को इंतजार है।

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