Madhu S Nair Interview. केरल स्थित कोचीन शिपयार्ड (Cochin Shipyard) ने भारतीय नौसेना (Indian Navy) के लिए पहला स्वदेशी एयक्राफ्ट करियर तैयार किया है। इसके बाद से शिपयार्ड को विदेश से भी ऑर्डर मिल रहे हैं। कोचीन शिपयार्ड पर चल रहे प्रोजेक्ट्स और फ्यूचर प्लानिंग को लेकर एशियानेट के अभिलाष जी नायर (Abhilash G Nair) ने कोचीन शिपयार्ड के सीएमडी डॉ. मधु एस नायर (Dr. Madhu S Nair) से खास बातचीत की है। पेश है बातचीत के मुख्य अंश...
कैसा है पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट करियर
कोचीन शिपयार्ड के सीएमडी डॉ. मधु एस नायर ने कहा कि इस तरह के हाई वेसेल तैयार करने में डिजाइनिंग और टेक्नीक का बड़ा रोल है। यह बाहर से भले न दिखाई दे लेकिन यह तकनीकी और डिजाइनिंग का ही कमाल है कि इस तरह के बड़े वेसल बनाए जा रहे हैं। पहला स्वदेशी वेसेल 262 मीटर लंबा करियर क्राफ्ट है। यह पहला इंडीजीनियस एयरक्राफ्ट करियर है। करीब 40 हजार टन वजन क्षमता वाले करियर की डिजाइन डायरेक्ट्रेट ऑफ नवल डिजाइन ने तैयार किया है। यह 30 एयरक्राफ्ट के फ्लीट की ऑपरेशन क्षमता वाला करियर है। इसमें 76 प्रतिशत स्वदेशी कंटेंट है। यह आत्मनिर्भर भारत का उदाहरण है। जो भी इसकी डिजाइन है वह अपने आप में रिकॉर्ड है। हजारों मेगावाट पॉवर जेनरेटर, हजार किलोमीटर की पाइपिंग, करीब 2400 किलोमीटर के इलेक्ट्रिकल वायर लगाए गए हैं। जो भी फीगर हैं यूनिक हैं, जैसे 18 स्टोरी बिल्डिंग, करीब 1600 लोगों के एक साथ रहने की सुविधा आदि। यह लार्ज स्केल पर होने वाला काम है और यह बड़े नेटवर्क की वजह से संभव हो पाता है। दुनिया जो इस समय चाह रही है और नई जेनरेशन की मांग है, उसी के अनुरूप इसे बनाया गया है।
कैसे की गई इसकी कल्पना
सही मायनों में कहा जाए तो इंडियन नेवी की कॉल है। इसे हम इंडियन डिफेंस करियर कह सकते हैं। सभी तरह की जरूरतें, डिजाइनिंग सब कुछ नेवी के अनुसार हुआ है। फिर यह फुल फ्लेज्ड एयरक्राफ्ट करियर बनकर तैयार हुआ। इसका बेसिक डिजाइन नेवी के डिजाइस डायरेक्ट्रेट नई दिल्ली से तैयार किया गया है। इसके बाद की डिटेल डिजाइन, लार्ज स्केल पर इसे तैयार करने का काम कोचीन शिपयार्ड पर किया गया। कंपलीट कंस्ट्रक्शन भी कोचीन शिपयार्ड पर पूरा हुआ। हमें पूरा कांफिडेंस है कि हम एक और शिपयार्ड इंडियन नेवी को सौंपेंगे। यह हमारे लिए गर्व का विषय है और यह तब ज्यादा अच्छा लगता है जब लोग ये कहते हैं कि यह इंडियन है। इसके निर्माण से जुड़ी जो भी कंपनियां हैं, बीएचईल, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, लार्सन एंड टूब्रो जैसी 100 से ज्यादा कंपनिया इंडियन ही हैं। तो कहा जा सकता है कि यह पूरी तरह से स्वदेशी है और आत्मनिर्भर भारत की मंशा के अनुसार तैयार की गई है।
इसे कैसे तैयार किया जाता है
आपने देखा होगा कि इसका इनीशियल पार्ट बाहर जो भी आपको यार्ड पर दिखाई दे रहा है। वहां तैयार किया जाता है। जिसमें डिजाइनिंग आदि मुख्य है। इसके बाद हम इसे पानी में उतारने से पहले फिनिशिंग एरिया में ले जाते हैं। वहां से काम पूरा होने का बाद यह कमीशन के लिए तैयार हो जाता है। कह सकते हैं कि यह यार्ड हमेशा काम करता रहता है। यहां काम करने वाले ज्यादातर लोग केरल के हैं। देश के अन्य राज्यों से भी काम करने वाले हैं। कह सकते हैं कि पूरे भारत के लोग यहां पर काम से जुड़े हुए हैं।
मार्केट में किस तरह की डिमांड
जब यह पूछा गया कि आपने कुछ समय पहले ग्रीन शिपिंग की बात की थी तो वह क्या है। वहीं इस नए मार्केट के लिए कोचीन शिपयार्ड किस तरह से तैयार है। इस पर मधु एस नायर ने कहा कि जब भी टेक्नालॉजी की बात करते हैं, इंजीनियरिंग की बात करते हैं तो हम सस्टेनबिलिटी की भी बात करते हैं। जब हम ग्रीन इन शिपिंग की बात करते हैं तो आप समझें कि इसका सारा काम कोस्टल एरिया में किया जाता है। या हम समुद्री किनारे के बेहद नजदीक होते हैं। हम इसे तीन कैटेगरी में डिवाइड करते हैं। इनीशियल लेवल, मिड लेवल के बाद फाइनल लेवल होता है। इस प्रासेस में कम से कम कार्बन का उत्सर्जन हो यही कोशिश की जाती है। आप समझ सकते हैं कि इसमें जो भी इंवेस्ट होता है वह सरकार करती है और इसका कोई कमर्शियल रिटर्न नहीं है। इसलिए हम ज्यादा से ज्यादा तकनीकी को उपयोग करते हैं। हमने पूरी तरह से स्वदेशी फ्यूल हाइड्रोजन बेस्ड का इस्तेमाल किया है। इसमें कई संस्थान जुड़े होते हैं। शिप का पार्ट हम हैंडल करते हैं और इसके अलावा कैसी ऐसे काम हैं, जिसमें संस्थानों का सहयोग लिया जाता है।
केरल का सबसे बड़ा पीएसयू
डॉ मधु एस नायर ने कहा कि यह केरल में सबसे बड़ा पीएसयू है। शिप तैयार करना बड़ी बात है इसलिए हमने विश्वसनीय तकनीक का इस्तेमाल किया है। क्योंकि विश्वास बहुत जरूरी है। ऐसा नहीं है कि आप अपना पैसा शिप बनाने में बर्बाद कर दें जिसका उपयोग ही न हो पाए तो हमारा पहला लक्ष्य ट्रस्टवर्थी टेक्नीक का इस्तेमाल करना है। हमने साख
बढ़ाई है तो यूरोप से भी कांट्रैक्ट मिल रहे हैं। हम कोचीन में ही दो बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। कोचीन शिपयार्ड में हमने 2800 करोड़ से ज्यादा का निवेश किया है। हम दुनिया का सबसे बड़ा शिप रिपेयरिंग सेंटर बना रहे हैं जिसका 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। पहले यह धारणा थी कि यहां कुछ नहीं होता है, केरल में कुछ नहीं होता है लेकिन हमने वह धारणा तोड़ी है। आज हम पूरे भारत में 7 यूनिट्स चला रहे हैं। इसमें सभी स्पेशल हैं। हम यहां कोचीन में बड़े और मध्यम साइज के वेसेल बनाने का काम कर रहे हैं। लेकिन अब हम छोटे शिप बनाने का भी काम करेंगे। हमारी स्वदेशी सफलता के बाद मार्केट में डिमांड बढ़ी है। हमने दो सब्सिडियरी भी शुरू की हैं जिसमें एक उडुपी में और दूसरा कोलकाता में है। मेन बेस हमारा कोचीन शिपयार्ड ही रहेगा। हमने वेलिंग्टन आईलैंड पर जमील लीज पर ली है। इसके अलावा हम इंटरनेशनल डिमांड को भी पूरी करने का काम करेंगे। इसमें बहुत विकल्प हैं और उम्मीद है कि आने वाले समय में हम शिप निर्माण में नए रिकॉर्ड बनाएंगे।
कोचीन शिपयार्ड का भविष्य
कोचीन शिपयार्ड के सीएमडी ने कहा कि साधारण शब्दों में कहें तो हम सही स्थिति में हैं। लेकिन सीएमडी होने के नाते कह सकता हूं कि हमारे पास नेवी की ओर से 5000 करोड़ से ज्यादा का काम है। इसके अलावा नेक्स्ट जेनेरेशन वेसेल का भी कांन्ट्रैक्ट है। जो कि करीब 10 हजार करोड़ का है जिसमें 6 वेसेल बनाने हैं। इसके अलावा भी बहुत सारे ऑर्डर हैं। हमें यूरोप से भी ऑर्डर मिले हैं। स्माल और मिड साइज कोस्टल वेसेल का ऑर्डर हमें जर्मनी से मिला है, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि जर्मनी से भी ऑर्डर मिल सकता है। इसके पीछे मुख्य वजह विश्वास है। यूरोप के हमारे मित्र कोचीन शिपयार्ड को रिकमंड करते हैं। हम पश्चिमी यूरोप 45 से ज्यादा शिप डिलीवर कर चुके हैं। वे शिप्स ही हमारे बारे में सब कुछ बता रहे हैं। हम आपको यह भी विश्वास दिलाते हैं कि इससे बेटर न्यूज जल्द से जल्द शेयर करेंगे।
हम बिजनेस के बारे में सोचते हैं
सीएमडी कोचीन शिपयार्ड मधु एस नायर ने कहा कि हमने पहले भी देखा है कि जब मार्केट से हमें ऑर्डर मिलता था तो हम घबरा जाते थे और मार्केट को नहीं पकड़ पाते थे। लेकिन अब हम बिजनेस के बारे में सोचते हैं। हम पब्लिक सेक्टर यूनिट हैं और हमारा नेटवर्क ऐसा है कि कुछ भी किया जा सकता है। हम मार्केट में फाइट करने के लिए तैयार हैं। हमने करके दिखाया भी है। हमने पिछले 30 साल में यह किया है। लोग सोचते हैं कि सरकार आती है तो ग्रांट मिलता है लेकिन मैं कहता हूं कि हमने गुडविल बनाई है और यही हमारा ग्रांट है। हम आने वाले 10 सालों में ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ता देखेंगे।
अनमैन शिप की भी बात होती है तो हम उस तकनीक पर भी काम कर रहे हैं। नार्वे को हमने ऐसी ही एक शिप सप्लाई की है। फंक्शनल प्वाइंट ऑफ व्यू से देखें तो कई काम ऐसे हैं जो आदमी नहीं कर सकते लेकिन मशीन कर सकती है। हमने इसके लिए नया डिविजन भी शुरू किया है। जहां तक श्रीलंका की बात है तो कोलंबो में एक बेहद शानदार शिपयार्ड है, कई बार हम कंपीटिटर होते हैं। वहां जो कुछ भी हुआ बिजनेस प्वाइंट ऑफ व्यू से देखें तो इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है।
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