जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज सत्ता में आने के बाद पहली बार 25 फरवरी को भारत की दो दिवसीय यात्रा पर आ रहे हैं। उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध और ज्यादा मजबूत होंगे।
Visit of German Chancellor Olaf Scholz to India: जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज सत्ता में आने के बाद पहली बार 25 फरवरी को भारत की दो दिवसीय यात्रा पर आ रहे हैं। उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और बढ़ाने के साथ ही दुनिया भर में तेजी से विकसित हो रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य पर भी चर्चा होने की संभावना है। बता दें कि जर्मन चांसलर की ये यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरे होने वाले हैं। इस यात्रा के दौरान शोल्ज दिल्ली के अलावा बेंगलुरू भी जाएंगे।
यूरोपियन प्लेयर्स के शीर्ष एजेंडे में है भारत :
शोल्ज की इस यात्रा को और गहराई से समझने के लिए एशियानेट न्यूज ने मनोहर पर्रिकर-आईडीएसए के यूरोप और यूरेशिया सेंटर में एसोसिएट फेलो डॉ स्वास्ति राव से बातचीत की। उन्होंने कहा- हमें याद रखना चाहिए कि ये यात्रा यूक्रेन-रूस युद्ध की पहली वर्षगांठ के दौरान हो रही है, जिसने यूरोपियन प्लेयर्स की जियो पॉलिटिक्स और जियो-इकोनॉमिक कैल्कुलेशन को मौलिक रूप से बदल दिया है। जर्मनी और फ्रांस यूरोपीय संघ तंत्र के भीतर काम करने के साथ ही युद्ध के लिए यूरोपीय प्रतिक्रिया को आकार देने में महत्वपूर्ण रहे हैं। वहीं, भारत इन दोनों यूरोपियन प्लेयर्स के लिए शीर्ष एजेंडे में रहा है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है जर्मनी :
डॉक्टर स्वास्ति राव ने आगे कहा- हाल ही में हुई म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (Munich security conference) में शोल्ज ने अपने रक्षा खर्च को बढ़ाने के लिए जर्मनी की प्रतिबद्धता को दोहराया है। भारत में अपने मूल हितों को साधने के लिए जर्मनी की आउटरीच को व्यापक यूरोपियन परिदृश्य में देखा जाना चाहिए। भारत में जर्मनी की आउटरीच इस संदर्भ में भी प्रासंगिक है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बर्लिन का इंगेजमेंट और यूरोपीय संघ द्वारा समन्वित समुद्री पहल इसमें शामिल है, जो इस क्षेत्र में एक सिक्योरिटी प्रोवाइडर के रूप में अपनी भूमिका को और बढ़ाने की योजना बना रहा है। बता दें कि पिछले साल जर्मनी के फॉरेन ऑफिस ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में और अधिक तैनाती की घोषणा की थी।
ब्लू इकोनॉमी के विकास के लिए महत्वपूर्ण :
डॉ स्वस्ति राव ने आगे कहा- यह क्षेत्र ब्लू इकोनॉमिज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और विकास संबंधी विषय पर त्रिकोणीय सहयोग (Triangular cooperation) के लिए भारत और जर्मनी द्वारा कई तटीय देशों को जोड़ा जा सकता है। त्रिकोणीय सहयोग दोनों देशों के बीच सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए बहुत अधिक जोर देने वाले क्षेत्रों में से एक है।
आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगी ये यात्रा :
जर्मनी की विदेश नीति अपने इकोनॉमिक आउटलुक पर हमेशा उच्च रही है। पश्चिम एशिया और चीन की अपनी हालिया यात्राओं के दौरान चांसलर के साथ एक बड़ा व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी आया था। ऐसे में माना जा सकता है कि भारत की उनकी ये यात्रा बेहतर आर्थिक संबंधों और इन्वेस्टमेंट में परिवर्तित होगी, जो भारत-जर्मनी की साझेदारी को एक नए युग की ओर ले जाएगी। वैश्विक अर्थों में यह महत्वपूर्ण देशों के साथ भारत के स्मार्ट मल्टी-अलाइनमेंट का एक और उदाहरण है। साथ ही आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में भारत के कद के अनुरूप रणनीतिक रूप से खुद को मजबूत करने के लिए भी अहम है।
भारत की ताकत को समझ रहे यूरोपीय देश :
भारत के इस रुख को प्रमुख यूरोपीय शक्तियों द्वारा भी स्वीकार किया जा रहा है। क्योंकि वो भारत के तेजी से विकसित होते कद और इसकी 1.4 बिलियन आबादी की ताकत को समझते हैं। भारत-जर्मन व्यापार के आंकड़ों में पिछले साल से सुधार हुआ है, लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी है। आपसी व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए इसे कवर किया जाएगा और ये यात्रा उस संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
इंटर गवर्नमेंट कंसल्टेशन के बाद किसी जर्मन चांसलर की पहली भारत यात्रा :
ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि 2011 में भारत और जर्मनी की सरकार के बीच हुए इंटर गवर्नमेंट कंसल्टेशन (Inter-Governmental Consultation) के बाद से किसी जर्मन चांसलर की यह पहली भारत यात्रा है। पिछले साल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी शोल्ज के चुने जाने के बाद व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलने जर्मनी पहुंचे थे। तब से दिल्ली ने जर्मनी से हाई-प्रोफाइल यात्राओं की एक कड़ी देखी है।