ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में भारत की खराब रैंकिंग पर सरकार बोली-तथ्यों को नजरअंदाज कर की गई रैंकिंग

ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भारत अपने 2020 के 94वें स्थान से फिसलकर 101वें स्थान पर आ गया है, जो पाकिस्तान सहित अपने पड़ोसियों से बहुत पीछे है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट ने भारत में भूख के स्तर को "खतरनाक" करार दिया है। भूख और कुपोषण को ट्रैक करने वाले ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के अनुसार, चीन, ब्राजील और कुवैत सहित अठारह देशों ने पांच से कम के स्कोर के साथ टॉप पर हैं।

नई दिल्ली। भारत सरकार (Government of India)ने ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 2021 (Global Hunger report) में इंडिया की खराब रैंकिंग पर ऐतराज जताया है। ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 2021 पर महिला और बाल विकास मंत्रालय (Women and Child development) ने सख्त आपत्ति जताते हुए इसे गंभीर बताया है और रिपोर्ट तैयार करने में परिश्रम नहीं किए जाने की बात कही है। 

क्या कहा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने?

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महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि यह चौंकाने वाला है कि ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 2021 ने कुपोषित आबादी के अनुपात पर एफएओ अनुमान के आधार पर भारत के रैंक को नीचे कर दिया है, जो जमीनी हकीकत और तथ्यों से रहित पाया जाता है। यह गंभीर मसला है। ग्लोबल हंगर रिपोर्ट को जारी करने के पहले एजेंसियों ने अपना उचित परिश्रम नहीं किया है।

फोन पर सर्वेक्षण किया गया, पूरी तरह से रिपोर्ट अवैज्ञानिक

मंत्रालय ने आपत्ति जताते हुए कहा कि एफएओ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली अवैज्ञानिक है। उन्होंने अपना मूल्यांकन 'चार प्रश्न' जनमत सर्वेक्षण के परिणामों पर आधारित किया है, जो गैलप द्वारा टेलीफोन पर आयोजित किया गया था। अल्पपोषण के वैज्ञानिक माप के लिए वजन और ऊंचाई की माप की आवश्यकता होगी, जबकि यहां शामिल पद्धति जनसंख्या के शुद्ध टेलीफोनिक अनुमान के आधार पर गैलप सर्वेक्षण पर आधारित है।

रिपोर्ट पूरी तरह से कोविड अवधि के दौरान पूरी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के बड़े पैमाने पर प्रयास की अवहेलना करती है, जिस पर सत्यापन योग्य डेटा उपलब्ध है। जनमत सर्वेक्षण में एक भी सवाल नहीं है कि क्या प्रतिवादी को सरकार या अन्य स्रोतों से कोई खाद्य सहायता मिली। इस जनमत सर्वेक्षण की प्रतिनिधित्वशीलता भी भारत और अन्य देशों के लिए संदिग्ध है।

एफएओ की रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021' से यह आश्चर्य के साथ उल्लेख किया गया है कि इस क्षेत्र के अन्य चार देश - अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका, कोविद से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए हैं। 

सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध तथ्यों को भी किया नजरअंदाज

ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 2021 और 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021' पर एफएओ रिपोर्ट ने सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध तथ्यों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। कोविड -19 को आर्थिक प्रतिक्रिया के हिस्से के रूप में, भारत सरकार ने प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) और आत्म निर्भर भारत योजना (एएनबीएस) जैसी अतिरिक्त राष्ट्रव्यापी योजनाओं को लागू किया है।

पीएमजीकेएवाई के तहत, भारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (अंत्योदय अन्न योजना और प्राथमिकता वाले परिवारों) के तहत कवर किए गए 36 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 80 करोड़ (800 मिलियन) लाभार्थियों के लिए प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम की दर से खाद्यान्न का मुफ्त आवंटन किया है। 
वर्ष 2O2O के दौरान, 3.22 करोड़ (32.2 मिलियन) मीट्रिक टन खाद्यान्न और वर्ष 2021 के दौरान, लगभग 3.28 करोड़ (32.8 मिलियन) मीट्रिक टन खाद्यान्न PMGKAY योजना के तहत लगभग 80 करोड़ (800 मिलियन) को मुफ्त आवंटित किया गया है। इसके अलावा विभिन्न योजनाओं से सीधे लाभ पहुंचाया गया।

यह है मामला 

ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भारत अपने 2020 के 94वें स्थान से फिसलकर 101वें स्थान पर आ गया है, जो पाकिस्तान सहित अपने पड़ोसियों से बहुत पीछे है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट ने भारत में भूख के स्तर को "खतरनाक" करार दिया है। भूख और कुपोषण को ट्रैक करने वाले ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के अनुसार, चीन, ब्राजील और कुवैत सहित अठारह देशों ने पांच से कम के स्कोर के साथ टॉप पर हैं।

भारत की स्थिति खराब होती जा रही

2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर था। अब सूची में 116 देशों के साथ यह 101वें स्थान पर आ गया है। भारत का GHI स्कोर भी गिर गया है। यह 2000 में 38.8 से 2012 और 2021 के बीच 28.8 - 27.5 के बीच आ गया है।

हालांकि नेपाल (76), बांग्लादेश (76), म्यांमार (71) और पाकिस्तान (92) जैसे पड़ोसी देशों ने भारत की तुलना में अपने नागरिकों को खिलाने में बेहतर प्रदर्शन किया है, इन देशों को रिपोर्ट के अनुसार 'खतरनाक' भूख श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बच्चों में वेस्टिंग का हिस्सा भी 1998-2002 के बीच 17.1 प्रतिशत से बढ़कर 2016-2020 के बीच 17.3 प्रतिशत हो गया है।


 

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