वायुसेना की बढ़ी ताकत, 18वीं स्क्वॉड्रन ‘फ्लाइंग बुलेट्स’ को किया शामिल, एयरफोर्स चीफ ने भरी पहली उड़ान

आज स्वदेशी विमान तेजस की दूसरी स्क्वाड्रन वायुसेना में शामिल हो गई। इस स्क्वाड्रन का नाम फ्लाइंग बुलेट्स दिया गया है, जिसकी शुरुआत वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल RKS भदौरिया ने की। खुद वायुसेना प्रमुख ने तेजस लड़ाकू विमान में उड़ान भरी।

Asianet News Hindi | Published : May 27, 2020 7:05 AM IST / Updated: Feb 02 2022, 10:38 AM IST

नई दिल्ली. चीन और नेपाल से बॉर्डर पर तनातनी जारी है। स्थिति को देखते हुए सरकार सेना की ताकत बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। इस बीच आज स्वदेशी विमान तेजस की दूसरी स्क्वाड्रन वायुसेना में शामिल हो गई। इस स्क्वाड्रन का नाम फ्लाइंग बुलेट्स दिया गया है, जिसकी शुरुआत वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल RKS भदौरिया ने की। खुद वायुसेना प्रमुख ने तेजस लड़ाकू विमान में उड़ान भरी। आज इस कार्यक्रम का आयोजन तमिलनाडु के कोयम्बटूर के पास सुलूर एयरफोर्स स्टेशन पर किया गया। यह स्क्वाड्रन LCA तेजस विमान से लैस है। तेजस को उड़ाने वाली वायुसेना की यह दूसरी स्क्वाड्रन है। \

पिछली कीमत से करीब 10 हजार करोड़ कम है लागत 

वायुसेना ने हल्के लड़ाकू विमान तेजस को HAL से खरीदा है। नवंबर 2016 में वायुसेना ने 50,025 करोड़ रुपए में 83 तेजस मार्क-1 ए की खरीदी को मंजूरी दी थी। इस डील पर अंतिम समझौता करीब 40 हजार करोड़ रुपए में हुआ है। यानी पिछली कीमत से करीब 10 हजार करोड़ रुपए कम।

 

सबसे हल्का फाइटर जेट्स है तेजस 

लड़ाकू विमान तेजस की बात करें तो ये एक चौथी पीढ़ी का हल्का विमान है। इसकी तुलना अपने जेनरेशन के सभी फाइटर जेट्स में सबसे हल्के विमान के तौर पर होती है। स्क्वाड्रन की कमी से जूझ रही वायुसेना को इसी साल 36 राफेल लड़ाकू विमानों की पहली खेप फ्रांस से मिलने जा रही है। वहीं, तेजस की एक नई स्क्वाड्रन का शामिल होना राहत भरी खबर है। 

1971 की जंग में 18वीं स्क्वाड्रन की अहम भूमिका रही थी

तेजस से लैस दूसरी और वायुसेना की 18वीं स्क्वाड्रन की स्थापना 1965 में की गई थी। पाकिस्तान के साथ 1971 की जंग में इसकी अहम भूमिका रही थी। इस स्क्वाड्रन को 15 अप्रैल 2016 को हटा दिया गया था। इससे पहले इसमें मिग-27 विमान शामिल थे। एयरफोर्स स्क्वाड्रन 18 की शुरुआत 1965 को आदर्श वाक्य 'तीव्र और निर्भय' के साथ हुई थी। स्क्वाड्रन को इस साल 1 अप्रैल को सुलूर में फिर से शुरू किया गया था। 

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