जैक, जॉन और अल्फा की गवाही से यासीन मलिक को मिली सजा, सुरक्षा के लिए NIA ने दिया था कोड नेम

जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक आतंक का खेल खेलने वाले यासीन मलिक (Yasin Malik) को पटियाला हाउस कोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी है। उसे जैक, जॉन और अल्फा की गवाही के चलते सजा मिली। एनआईए ने मुख्य गवाहों को उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कोड नेम दिए थे।

नई दिल्ली। पटियाला हाउस कोर्ट ने बुधवार को जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक (Yasin Malik) को उम्रकैद की सजा दी। उसे सजा दिलाने में एनआईए के गवाहों 'जैक', 'जॉन' और 'अल्फा' की अहम भूमिका रही। एनआईए ने अपने महत्वपूर्ण गवाहों को उनकी सुरक्षा के लिए ये कोड नेम दिये थे। 

यासीन मलिक के खिलाफ एनआईए ने टेरर फंटिंग मामले की जांच की थी। इसके लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने 70 स्थानों पर छापे मारे थे और  लगभग 600 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए थे। इस केस में लगभग चार दर्जन गवाह थे, लेकिन कोड नेम केवल कुछ चुनिंदा लोगों को दिए गए थे। 

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आईपीएस अधिकारी अनिल शुक्ला के नेतृत्व में हुई थी जांच
मामले की जांच AGMUT कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी महानिरीक्षक अनिल शुक्ला के नेतृत्व में एनआईए की एक टीम ने की थी। तत्कालीन निदेशक शरद कुमार संगठन का नेतृत्व कर रहे थे। शरद कुमार ने बताया कि फैसला निश्चित रूप से मामले की जांच करने वाली टीम की कड़ी मेहनत का इनाम है। मैं सजा से बहुत संतुष्ट हूं। यासीन ने मौत की सजा से बचने के लिए खुद दोष स्वीकार कर चतुराई दिखाई। उसे दी गई सजा देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का सपना देखने वालों के लिए सबक है। 

गवाहों ने बताया था गिलानी और मलिक की बैठकों का राज
यासीन को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण रोल निभाने वाले अनिल शुक्ला इन दिनों अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में तैनात हैं। उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में गिना जाता है, जिन्होंने अलगाववादियों को धन रोककर कश्मीर घाटी में पथराव की घटनाओं को समाप्त किया। 66 वर्षीय मलिक के खिलाफ आरोप तय करते समय विशेष एनआईए न्यायाधीश ने गवाहों 'जैक', 'जॉन' और 'गोल्फ' पर भरोसा किया था। इन गवाहों ने सैयद अली शाह गिलानी और मलिक के बीच बैठकों के बारे में उल्लेख किया था।

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एक अन्य संरक्षित गवाह ने कहा था कि गिलानी और मलिक उन्हें अखबारों में प्रचार के लिए विरोध कैलेंडर भेजते थे। एनआईए ने स्वीकारोक्ति बयानों पर अधिक जोर दिया, क्योंकि वे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किए गए थे जहां आरोपियों को यह पुष्टि करनी होती है कि वे जांच एजेंसी के दबाव के बिना बयान दे रहे हैं।

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