The Kashmir Files फिल्म ने ताजा की कश्मीरी पंडितों की नरसंहार की यादें, जानें कैसे हुई थी शुरूआत

1990 के पहले महीने के दूसरे पखवाड़े से कश्मीर की मस्जिदों (Mosques of Kashmir) से अजान के साथ नारे गूजंने की भी आवाजें आनी शुरू हो गई थी। यह नारे थे 'कश्मीर में अगर रहना है, आल्लाहू अकबर कहना है', 'यहां क्‍या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा', 'असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान' इसका मतलब हमें पाकिस्‍तान (Pakistan) चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर अपने मर्दों के बिना। यह तमाम नारे कश्‍मीरी हिंदू पंडितों (Kashmiri Hindu Pandits) के लिए थे।

Asianet News Hindi | Published : Mar 12, 2022 7:06 AM IST / Updated: Mar 12 2022, 01:15 PM IST

कश्मीर और कश्मीरी पंडित, जब भी इनके बारे में चर्चा होती है तो देश के लाखों करोड़ों लोगों की आंखें नम हो जाती हैं। आज इनकी चर्चा इस वजह से भी हो रही है कि 'The Kashmir Files' नाम की फिल्म शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती और पल्लवी जोशी जैसे दिग्गज कलाकारों से सजी फिल्म लोगों को फिर से 1990 के उस शुरुआती दौर में ले गई, जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया जा रहा था और उनके घरों और जिंदगी को तबाह किया जा रहा था। इस फिल्म रिजील के बीच आपको फिर से एक बार फिर उसी दौर में ले चलते हैं, जहां उस दौर में दुनिया के स्वर्ग में वो सब घटा जिसे सिर्फ और सिर्फ नरसंहार ही कहा जाएगा।

कहां से शुरू हुआ था सिलसिला
हिंदू कश्मीरी पंडितों की हत्या का सिलसिला 1990 से पहले ही शुरू हो गया था। जब 1989 में श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों के नेता पंडित टीका लाल टपलू की हत्‍या की गई थी। इसका आरोप जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आतंकियों पर लगा था, लेकिन कभी भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके चार महीने के बाद 4 जनवरी 1990 को श्रीनगर से छपने वाले एक उर्दू अखबार में हिजबुल मुजाहिदीन ने अपने बयान में हिंदुओं को घाटी छोडऩे के लिए कहा गया था। वो समय ऐसा था जब हिंदू घाटी में बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं थें। उन्‍हें जिस तरह की धमकियां दी गई वो एक दर्दनाक सपने की तरह सच होती जा रही थीं।

जब लगने शुरू हुए नारे
1990 के पहले महीने के दूसरे पखवाड़े से कश्मीर की मस्जिदों से अजान के साथ नारे गूजंने की भी आवाजें आनी शुरू हो गई थी। यह नारे थे 'कश्मीर में अगर रहना है, आल्लाहू अकबर कहना है', 'यहां क्‍या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा', 'असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान' इसका मतलब हमें पाकिस्‍तान चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर अपने मर्दों के बिना। यह तमाम नारे कश्‍मीरी हिंदू पंडितों के लिए थे। वैसे ऐसी धमकियां उन्हें बीते कई महीनों से लगातार मिल रही थी। हजारों हिंदूओं में बेचैनी और डर था। कश्मीर की ऐसी कोई सड़क और गली नहीं थी जहां इस्‍लाम और पाकिस्‍तान की शान में बातें ना हो रही हों। हिंदुओं के लिए कश्मीर में जहर उगला जा रहा था। उसके बाद हिंदूओं ने अपना सामान बांधना शुरू कर वहां से पलायन करने का फैसला लिया।

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जब कश्मीरी पंडितों कानिकला पहला जत्था
19 जनवरी की रात को कश्मीरी पंडितों के पहले जत्थे ने कश्मीर से पलायन करना शुरू किया। उसके दो महीनों के बाद यानी मार्च और अप्रैल के महीने में हजारों कश्मीरी पंडित परिवार घाटी से अपना घर छोड़कर देश के दूसरे इलाकों में पलायन कर गए। कुछ ही महीनों के अंदर कश्मीरी पंडितों के खाली घरों को आग के हवाले कर दिया गया। जिन कश्मीरी पंडितों के घर मुस्लिम बाहुल्य आबादी के पास थे उन्हें प्लानिंग के साथ बर्बाद दिया गया।

हिंदूओं के घरों में घुस जाते थे उपद्रवी
हिंदूओं का घाटी में रहना काफी मुश्किल हो चला था। उनके घरों के दीवारों पर 'हिंदू कश्मीर छोड़ों' के पोस्टर चस्पा कर दिए गए थे। जिस भी हिंदू घर के बारे में जानकारी मिलती उन्हें आग के हवाले कर दिया जाता। हिंदू महिलाओं को तिलक या सिंदूर लगाने पर मजबूर किया जा रहा था। महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कर के मामले आम हो चले थे। उपद्रवी एके 47 लेकर घरों में घुस जाते और जो मन करता वो करते थे। हिंदू घरों की घडिय़ों को पाकिस्तान स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार सेट कराया जा रहा था।

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आखिर क्या है मौजूदा स्थिति
बीते 31-32 सालों में फिर कश्मीरी पंडितों को दोबारा से घाटी में बसाने का प्रयास किया गया, लेकिन कोशिशेें नाकाम साबित हुई। 1992 के बाद से कश्मीरी पंडितों के हालात और कश्मीर के हालात बद से बदतर ही होते गए हैं। वहीं दूसरी ओर हिंदुओं को अब लगने लगा है कि कश्मीर के हालात वैसे नहीं रहे, जैैसे कभी हुआ करते थे। 5 अगस्‍त, 2019 को जब भारत सरकार ने जम्‍मू और कश्‍मीर का विशेष दर्जा खत्‍म किया तो कश्‍मीरी पंडित बेहद खुश थे, लेकिन उनकी वापसी का सपना सिर्फ सपना ही है। कश्‍मीरी हिंदू न 1990 में घाटी में सेफ थे और ना ही आज हैं। बीते कुछ महीनों में हिंदूओं को निशाना बनाया गया हैं।

कुछ इस तरह से कम हुई कश्मीरी पंडितों की संख्या
कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 1990 में कश्मीर में 75,343 परिवार थे। 1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्‍यादा परिवार घाटी से पलायन कर गए। अनुमानित आंकड़ें के अनुसार 1990 से 2011 के बीच 399 कश्‍मीरी पंडितों की हत्‍या की। 1990 से अब तक कश्मीर में सिर्फ 800 हिंदू परिवार ही मौजूद हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में जहां कश्मीरी पंडितों की संख्या  करीब 10 लाख थी। जो मौजूदा समय में करीब करीब 9,000 रह गई है। करीब 80 साल पहले कश्मीरी पंडित कुल आबादी का करीब 15 फीसदी हिस्सा थे, जो 1991 तक सिर्फ 0.1 फीसदी बची थीं जबकि किसी समुदाय की आबादी 10 लाख से कम होकर करीब 10 हजार ही रह जाए तो उसे नरसंहार कहा जा सकता है।

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