'लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष संवैधानिक पद नहीं, बल्कि वैधानिक शब्द है', 1977 में बने एक्ट से समझें

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष कोई संवैधानिक पद नहीं, बल्कि यह एक वैधानिक शब्द है जिसे आपातकाल के दौरान 1977 में बने ऐक्ट में पारित किया गया था। आइए जानतें हैं क्या है ये ऐक्ट। 

नई दिल्ली। नई दिल्ली में लोकसभा सत्र में गहमागहमी का माहौल देखने को मिला है। प्रधानमंत्री के भाषण से लेकर राष्ट्रपति के संबोधन तक में इंमरजेंसी के दौर का जिक्र कर कांग्रेस पर हमला बोला गया है। वहीं इंडिया गठबंधन की ओऱ से राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल शुक्रवार को स्पीकर के सामने नीट पर पहले चर्चा की मांग पर अड़ गए और हंगामे के चलते सोमवार तक कार्यवाही स्थगित हो गई। इसे लेकर भी एक महत्वपूर्ण चर्चा सामने आई है नेता प्रतिपक्ष का पद कितना महत्वपूर्ण है? आइए समझते हैं…

सैंवैधानिक पद नहीं, वैधानिक शब्द
क्या आप जनते हैं कि नेता प्रतिपक्ष का पक्ष के क्या मायने हैं। नेता प्रतिपक्ष विपक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता होता है। विपक्ष के नेता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है लेकिन ये भी जान लें कि विपक्ष के नेता का पद कोई संवैधानिक पद नहीं है, यह एक वैधानिक शब्द है जो कि इस कानून को 1977 में  आपातकाल के बाद उस समय की गैर नेहरूवादी सरकार ने ही पारित किया था। 

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जानें क्या है 1977 एक्ट
आपातकाल के बाद संसद अधिनियम 1977 में विपक्ष के नेताओं का वेतन और भत्ते को लेकर ऐक्ट पारित किया गया था। इसी अधिनियम में नेता प्रतिपक्ष को लेकर बताया गया है कि यह एक संवैधानिक पद नहीं है। इसे वैधानिक शब्द जरूर कहा जा सकता है। इस ऐक्ट में अपोजीशन लीडर के वेतन और भत्तों की सुविधा देने के बारे में जानकारी दी गई है। इसे नेता विपक्ष का वेतन और भत्ता अधिनियम 1977 के नियम से जाना जाता है।

नेता विपक्ष का ये है अर्थ
इस अधिनियम में संसद के किसी भी सदन के संबंध में विपक्ष के नेता का अर्थ है राज्यों की परिषद या सदस्यों के सदन की शक्ति, जो कुछ समय के लिए नेता बनाया जाता है। उसे सत्ताधारी सरकार के विपक्ष की पार्टी जिसके पास सबसे अधिक सांसदों का संख्या बल होता है। उसे बनाया जाता है। वह विपक्ष की ओर से सदन में सत्ता पक्ष की नीतियों पर सवाल करने के साथ उनकी नीतियों पर सवाल उठा सकता है जिसे सदन के अध्यक्ष की ओर से मान्यता प्राप्त होती है।  

 

 

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