माओवादी लिंक केस: नक्सलियों से संबंध के आरोप में सजा काट रहे साईंबाबा की रिहाई के आदेश, जानें क्या है मामला

नक्सलियों और माओवादियों से संबंध और देशद्रोह के आरोप में सजा काट रहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने अपने फैसले में ये बात कही। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 14, 2022 1:13 PM IST / Updated: Oct 14 2022, 06:45 PM IST

GN Saibaba Case: नक्सलियों और माओवादियों से संबंध और देशद्रोह के आरोप में सजा काट रहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने उन्हें तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया है। बता दें कि 2017 में महाराष्ट्र की गढ़चिरौली की कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 

क्या है मामला?
साईबाबा को 2017 में नक्सलियों को समर्थन देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सेशन कोर्ट ने साईंबाबा और एक अन्य पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के एक छात्र सहित अन्य को माओवादी लिंक और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था। बता दें कि साईबाबा शुरू से ही आदिवासियों-जनजातियों के लिए आवाज उठाते रहे हैं। जीएन साईंबाबा शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। फिलहाल वो नागपुर जेल में बंद हैं। वो चलने फिरने में असमर्थ हैं और व्हीलचेयर की मदद से चलते-फिरते हैं। 

जीएन साईंबाबा केस में अब तक क्या-क्या हुआ?
22 अगस्त, 2013 : महाराष्ट्र में गढ़चिरौली जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में निगरानी के बाद आरोपी महेश तिर्की, पांडे नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया गया। 
2 सितंबर, 2013 : दो और आरोपियों विजय तिर्की और प्रशांत सांगलीकर को पुलिस ने गिरफ्तार किया। 
4 सितंबर, 2013 : पुलिस पूछताछ के दौरान आरोपी हेम मिश्रा और सांगलीकर द्वारा किए गए खुलासे के बाद पुलिस ने मजिस्ट्रेट अदालत से जी एन साईंबाबा के घर की तलाशी लेने का वारंट मांगा।
7 सितंबर, 2013 : मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सर्च वारंट जारी किया। 
9 सितंबर, 2013 : पुलिस ने साईंबाबा के दिल्ली स्थित घर की तलाशी ली। 
15 फरवरी, 2014 : गिरफ्तार किए गए पांच आरोपियों पर अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी।
26 फरवरी, 2014 : साईंबाबा को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को वारंट मिला। हालांकि, सहानुभूति के चलते गिरफ्तारी नहीं हुई। 
9 मई, 2014 : साईबाबा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
21 फरवरी, 2015 : सत्र अदालत ने सभी छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। सभी आरोपियों ने दोषी नहीं होने का अनुरोध किया।
6 अप्रैल, 2015 : साईंबाबा पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी। 
3 मार्च, 2017 : महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की सेशन कोर्ट ने साईबाबा और 5 अन्य आरोपियों को यूएपीए और आईपीसी के तहत दोषी ठहराया। साईंबाबा और 4 अन्य को आजीवन कारावास की सजा। एक को 10 साल की कैद।
29 मार्च, 2017 : साईंबाबा और अन्य ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील दायर की।
14 अक्टूबर, 2022 : बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने मामले में साईंबाबा और पांच अन्य दोषियों को बरी कर दिया।

ये भी देखें : 

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा बरी, माओवादियों से संबंध के आरोप में भेजे गए थे जेल

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